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Showing posts from June, 2019

वसीयत और नसीहत

"वसीयत और नसीहत" एक दौलतमंद इंसान ने अपने बेटे को वसीयत देते हुए कहा, "बेटा मेरे मरने के बाद मेरे पैरों में ये फटे हुऐ मोज़े (जुराबें) पहना देना, मेरी यह इक्छा जरूर पूरी करना । पिता के मरते ही नहलाने के बाद, बेटे ने पंडितजी से पिता की आखरी इक्छा बताई । पंडितजी ने कहा: हमारे धर्म में कुछ भी पहनाने की इज़ाज़त नही है। पर बेटे की ज़िद थी कि पिता की आखरी इक्छ पूरी हो । बहस इतनी बढ़ गई की शहर के पंडितों को जमा किया गया, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला । इसी माहौल में एक व्यक्ति आया, और आकर बेटे के हाथ में पिता का लिखा हुआ खत दिया, जिस में पिता की नसीहत लिखी थी "मेरे प्यारे बेटे" देख रहे हो..? दौलत, बंगला, गाड़ी और बड़ी-बड़ी फैक्ट्री और फॉर्म हाउस के बाद भी, मैं एक फटा हुआ मोजा तक नहीं ले जा सकता । एक रोज़ तुम्हें भी मृत्यु आएगी, आगाह हो जाओ, तुम्हें भी एक सफ़ेद कपडे में ही जाना पड़ेगा । लिहाज़ा कोशिश करना,पैसों के लिए किसी को दुःख मत देना, ग़लत तरीक़े से पैसा ना कमाना, धन को धर्म के कार्य में ही लगाना । सबको यह जानने का हक है कि शरीर छूटने के बाद सिर्फ कर्म ही साथ जाएंगे

कहानी - बहन आप बहुत अमीर हो ..

✅ कहानी ✅ लगभग दस साल का अख़बार बेचने वाला बालक एक मकान का गेट बजा रहा है।(उस दिन अखबार नहीं छपा होगा) मालकिन - बाहर आकर पूछी "क्या है ? " बालक - "आंटी जी क्या मैं आपका गार्डेन साफ कर दूं ?" मालकिन - नहीं, हमें नहीं करवाना।" बालक - हाथ जोड़ते हुए दयनीय स्वर में.. "प्लीज आंटी जी करा लीजिये न, अच्छे से साफ करूंगा।" मालकिन - द्रवित होते हुए "अच्छा ठीक है, कितने पैसा लेगा ?" बालक - पैसा नहीं आंटी जी, खाना दे देना।" मालकिन- ओह !! आ जाओ अच्छे से काम करना..! (लगता है बेचारा भूखा है पहले खाना दे देती हूँ..मालकिन बुदबुदायी।) मालकिन- ऐ लड़के..! पहले खाना खा ले, फिर काम करना। बालक -नहीं आंटी जी, पहले काम कर लूँ फिर आप खाना दे देना। मालकिन - ठीक है ! कहकर  अपने काम में लग गयी। बालक - एक घंटे बाद "आंटी जी देख लीजिए, सफाई अच्छे से हुई कि नहीं। मालकिन -अरे वाह! तूने तो बहुत बढ़िया सफाई की है, गमले भी करीने से जमा दिए। यहां बैठ, मैं खाना लाती हूँ। जैसे ही मालकिन ने उसे खाना दिया! बालक जेब से पन्नी निकाल कर उसमें खाना रखने लगा। मालकि

आपका मजहब कौनसा है ?

मस्जिद पे गिरता है .... मंदिर पे भी बरसता है ... ए बादल बता तेरा ... मजहब कौनसा है? इमाम की तू प्यास बुझाए... पुजारी की भी तृष्णा मिटाए.... ए पानी बता तेरा.... मजहब कौन सा है? मज़ारों की शान बढाता है... मूर्तियों को भी सजाता है... ए फूल बता तेरा.... मजहब कौनसा है? सारे जहाँ को रोशन करता है.... सृष्टी को उजाला देता है.... ए सूरज बता तेरा.... मजहब कौनसा है? मुस्लिम तूझ पे कब्र बनाता है .... हिंदू आखिर तूझ में ही... विलीन होता है... ए मिट्टी बता तेरा... मजहब कौनसा है? खुदा भी तू है.. ईश्वर भी तू.. पर आज बता ही दे.. ए परवरदिगार..... आपका मजहब कौनसा है? सोचकर यही मंदिर, मस्जिद भी दंग है कि.... हमें ख़बर भी नहीं और हमारी जंग है.... ऐ दोस्त मजहब से दूर हटकर...इंसान बनो.. क्योंकि इंसानियत का कोई मजहब नहीं होता...

जागो ग्राहक जागो...

स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के ऑफिस के बाहर राजू केले बेच रहा था। बिजली विभाग के एक बड़े  अधिकारी ने पूछा : - केले कैसे दिए ? राजू : - केले किस लिए खरीद रहे हैं साहब ? अधिकारी :-  मतलब ?? राजू :-  मतलब ये साहब कि, मंदिर के प्रसाद के लिए ले रहे हैं तो 10 रुपए दर्जन। वृद्धाश्रम में देने हों तो 15 रुपए दर्जन। बच्चों के टिफिन में रखने हों तो 20 रुपए दर्जन। घर में खाने के लिए ले जा रहे हों तो, 25 रुपए दर्जन और अगर पिकनिक के लिए खरीद रहे हों तो 30 रुपए दर्जन। अधिकारी : - ये क्या बेवकूफी है ? अरे भई, जब सारे केले एक जैसे ही हैं तो, भाव अलग अलग क्यों बता रहे हो ?? राजू : - ये तो पैसे वसूली का, आप ही का स्टाइल है साहब। 1 से 100 रिडींग का रेट अलग, 100 से 200 का अलग, 200 से 300 का अलग। अरे आपके बाप की बिजली है क्या ? आप भी तो एक ही खंभे से बिजली देते हो। तो फिर घर के लिए अलग रेट, दुकान के लिए अलग रेट, कारखाने के लिए अलग रेट और फिर इंधन भार, विज आकार..... और हाँ, एक बात और साहब, मीटर का भाड़ा। मीटर क्या अमेरिका से आयात किया है क्या ? 25 सालों से उसका भाड़ा भर रहा हूँ, आखिर उ

मंजिलो को प्यार कर, रास्तो को पार कर.....

"मंजिलो को प्यार कर, रास्तो को पार कर, गर न हो सके सफल, तो बैठ मत तू हार कर। है जरूर तू टूटा अंदर से, निकल निराश के समंदर से, मेहनत को गुना चार कर, मंज़िलो को प्यार कर। कदम तुझे ही है बढ़ाने, छोड़ कर सारे बहाने, उठ खड़ा हो वार कर, रास्तो को पार कर, मंजिलो को प्यार कर। है गांडीव तू अर्जुन का, है महीना तू जून का, खुद को बस सम्भाल अब, उठा मस्तक भाल अब, अपने डरो को मार कर, मंजिलो को प्यार कर, रास्तो को पार कर।" ................................................