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पौधा लगाओ पानी बचाओ , कहता सब संसार....

धूप सिपाही बन गई , सूरज थानेदार ! गरम हवाएं बन गईं , जुल्मी साहूकार !! : शीतलता शरमा रही , कर घूँघट की ओट ! मुरझाई सी छांव है , पड़ रही लू की चोट !! : चढ़ी दुपहरी हो गया , कर्फ़्यू जैसा हाल ! घर भीतर सब बंद हैं , सूनी है चौपाल !! : लगता है जैसे हुए , सूरज जी नाराज़ ! आग बबूला हो रहे , गिरा रहे हैं गाज !! : तापमान यूँ बढ़ रहा , ज्यों जंगल की आग ! सूर्यदेव गाने लगे , फिर से दीपक राग !! : कूलर हीटर सा लगे , पंखा उगले आग ! कोयलिया कू-कू करे , उत अमवा के बाग़ !! : लिए बीजना हाथ में , दादी करे बयार ! कूलर और पंखा हुए , बिन बिजली बेकार !! : कूए ग़ायब हो गये , सूखे पोखर - ताल ! पशु - पक्षी और आदमी , सभी हुए बेहाल !! : धरती व्याकुल हो रही , बढ़ती जाती प्यास ! दूर अभी आषाढ़ है , रहने लगी उदास !! : सूरज भी औकात में , आयेगा उस रोज ! बरखा रानी आयगी , धरती पर जिस रोज !! :: पौधा लगाओ पानी बचाओ , कहता सब संसार ! ये देख चेते नहीं , तो इक दिन होगा बंटाधार ......