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Showing posts from June, 2021

कितना नादान था मैं ...

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    सपने में अपनी मौत को करीब से देखा.. कफ़न में लिपटे तन और जलते अपने शरीर को देखा.. खड़े थे लोग हाथ बांधे कतार में. कुछ थे.परेशान कुछ उदास थे.और कुछ छुपा रहे अपनी मुस्कान थे. देख रहा था मैं ये सारा मंजर. तभी किसी ने हाथ बढा कर मेरा हाथ थाम लिया और जब देखा चेहरा उसका तो मैं बड़ा हैरान था. हाथ थामने वाला कोई और नही मेरा भगवान था. चेहरे पर मुस्कान और नंगे पाँव थे जब देखा मैंने उन की तरफ जिज्ञासा भरी नज़रों से. तो हँस कर बोला-तूने हर दिन दो घडी जपा मेरा नाम था. आज उसी का क़र्ज़ चुकाने आया हूँ. रो दिया मै अपनी बेवक़ूफ़ियों पर ये सोच कर. जिसको दो घडी जपा वो बचाने आये हैं और जिनमें हर घडी रमा रहा वो शम शान पहुचाने आये है. तभी खुली आँख मेरी, बिस्तर पर विराजमान था. कितना नादान था मैं हकीकत से अनजान था....

आत्म मूल्यांकन...

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  कसाई के पीछे घिसटती जा रही बकरी ने सामने से आ रहे संन्यासी को देखा तो उसकी उम्मीद बढ़ी। मौत आंखों में लिए वह फरियाद करने लगी- ‘महाराज! मेरे छोटे-छोटे मेमने हैं। आप इस कसाई से मेरी प्राण-रक्षा करें। मैं जब तक जियूंगी,अपने बच्चों के हिस्से का दूध आपको पिलाती रहूंगी। बकरी की करुण पुकार का संन्यासी पर कोई असर न पड़ा। वह निर्लिप्त भाव से बोला- ‘मूर्ख, बकरी क्या तू नहीं जानती कि मैं एक संन्यासी हूं। जीवन-मृत्यु, हर्ष-शोक, मोह-माया से परे, हर प्राणी को एक न एक दिन तो मरना ही है। समझ ले कि तेरी मौत इस कसाई के हाथों लिखी है। यदि यह पाप करेगा तो ईश्वर इसे भी दंडित करेगा। मेरे बिना मेरे मेमने जीते-जी मर जाएंगे, बकरी रोने लगी। नादान, रोने से अच्छा है कि तू परमात्मा का नाम ले। याद रख, मृत्यु नए जीवन का द्वार है। सांसारिक रिश्ते-नाते प्राणी के मोह का परिणाम हैं। मोह माया से उपजता है। माया विकारों की जननी है। विकार आत्मा को भरमाए रखते हैं। बकरी निराश हो गई। संन्यासी के पीछे आ रहे कुत्ते से रहा न गया। उसने पूछा- संन्यासी महाराज, क्या आप मोह-माया से पूरी तरह मुक्त हो चुके हैं? लपककर संन्यासी ने जवाब