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Showing posts from 2019

Fresh Fish.....Satisfaction is death...

The Japanese have a great liking for fresh fish.  But the waters close to Japan have not held many fish for decades.  So, to feed the Japanese population, fishing boats got bigger and went farther than ever. The farther the fishermen went, the longer it took to bring back the fish.  The longer it took them to bring back the fish, the stale they grew. The fish were not fresh and the Japanese did not like the taste.  To solve this problem, fishing companies installed the freezers on their boats.  They would catch the fish and freeze them at sea.  Freezers allowed the boats to go farther and stay longer. However, the Japanese could taste the difference between fresh and frozen fish.  And they did not like the taste of frozen fish.  The frozen fish brought a lower price.  So, fishing companies installed fish tanks.  They would catch the fish and stuff them in the tanks, fin to fin.  After a little hashing around, fishes stopped moving.  They were tired and dull, but alive. Unfortunately, t

दर्द कागज़ पर मेरा बिकता रहा...

दर्द कागज़ पर मेरा बिकता रहा मैं बैचैन था रातभर लिखता रहा.... छू रहे थे सब बुलंदियाँ आसमान की मैं सितारों के बीच, चाँद की तरह छिपता रहा.... दरख़्त होता तो, कब का टूट गया होता मैं था नाज़ुक डाली, जो सबके आगे झुकता रहा.... बदले यहाँ लोगों ने, रंग अपने-अपने ढंग से रंग मेरा भी निखरा पर, मैं मेहँदी की तरह पीसता रहा.... जिनको जल्दी थी, वो बढ़ चले मंज़िल की ओर मैं समन्दर से राज गहराई के सीखता रहा....

पौधा लगाओ पानी बचाओ , कहता सब संसार....

धूप सिपाही बन गई , सूरज थानेदार ! गरम हवाएं बन गईं , जुल्मी साहूकार !! : शीतलता शरमा रही , कर घूँघट की ओट ! मुरझाई सी छांव है , पड़ रही लू की चोट !! : चढ़ी दुपहरी हो गया , कर्फ़्यू जैसा हाल ! घर भीतर सब बंद हैं , सूनी है चौपाल !! : लगता है जैसे हुए , सूरज जी नाराज़ ! आग बबूला हो रहे , गिरा रहे हैं गाज !! : तापमान यूँ बढ़ रहा , ज्यों जंगल की आग ! सूर्यदेव गाने लगे , फिर से दीपक राग !! : कूलर हीटर सा लगे , पंखा उगले आग ! कोयलिया कू-कू करे , उत अमवा के बाग़ !! : लिए बीजना हाथ में , दादी करे बयार ! कूलर और पंखा हुए , बिन बिजली बेकार !! : कूए ग़ायब हो गये , सूखे पोखर - ताल ! पशु - पक्षी और आदमी , सभी हुए बेहाल !! : धरती व्याकुल हो रही , बढ़ती जाती प्यास ! दूर अभी आषाढ़ है , रहने लगी उदास !! : सूरज भी औकात में , आयेगा उस रोज ! बरखा रानी आयगी , धरती पर जिस रोज !! :: पौधा लगाओ पानी बचाओ , कहता सब संसार ! ये देख चेते नहीं , तो इक दिन होगा बंटाधार ......

खुदा भी याद आता है ज़रूरत पे यहां सबको...

दरवाज़ों पे खाली तख्तियां अच्छी नहीं लगती, मुझे उजड़ी हुई ये बस्तियां अच्छी नहीं लगती, चलती तो समंदर का भी सीना चीर सकती थीं, यूँ साहिल पे ठहरी कश्तियां अच्छी नहीं लगती, खुदा भी याद आता है ज़रूरत पे यहां सबको, दुनिया की यही खुदगर्ज़ियां अच्छी नहीं लगती, उन्हें कैसे मिलेगी माँ के पैरों के तले जन्नत, जिन्हें अपने घरों में बच्चियां अच्छी नहीं लगती।

ये इंसा है केवल चमन देखता है ....

ये इंसा है केवल चमन देखता है सरे राह बेपर्दा तन देखता है .... हवस का पूजारी हुआ जा रहा है कली में भी कमसिन बदन देखता है .... ज़लालत की हद से गिरा इतना नीचे कि मय्यत पे बेहतर कफन देखता है .... भरी है दिमागों में क्या गन्दगी सी ना माँ-बाप भाई-बहेन देखता है .... बुलन्दी की खाहिश में रिश्ते भूला कर मुक़ददर का अपने वज़न देखता है .... ख़ुदी मे हुआ चूर इतना कहें क्या पड़ोसी के घर को 'रहन' देखता है .... नहीं तेज़ तूफानो का खौ़फ रखता नहीं वक्त़ की ये चुभन देखता है ..... हर एक शख्स इसको लगे दुश्मनों-सा फिजा़ओं में भी ये जलन देखता है ..... हवस की हनक का हुनर इसमे उम्दा ज़माने को खुद सा नगन देखता है...

मैं हर बार गिरा और सम्भलता रहा....

मैं हर बार गिरा और सम्भलता रहा, दौर खुदा की रहमतों का चलता रहा, वक़्त भले ही मेरे विपरीत था, मैं ना जरा सा भी भयभीत था, मुझे यकीं था की एक दिन सूरज जरूर निकलेगा, क्या हुआ जो वो हर रोज ढलता रहा, मैं हर बार गिरा और सम्भलता रहा, जब भी हुआ है दीपक में तेल खत्म, तो समझो हो गया खेल खत्म, निचोड़ कर खून रगों का इसमें, मैं एक दीपक की भाँति जलता रहा, मैं हर बार गिरा और सम्भलता रहा, झिलमिल से ख्वाब थे इन निगाहों में, करता रहा महनत माँ की दुआओं में, सींचता रहा परिश्रम के पौधे को दिन रात, और ये पौधा सफलता के पेड़ में बदलता रहा, मैं हर बार गिरा और सम्भलता रहा, ये सब तुम्हारी सबकी दुआओं का असर है, जो मिली आज इतनी सुहानी डगर है, तह दिल से शुक्रिया मेरे चाहने वालों, आज मेरी किस्मत का सिक्का उछलता रहा, मैं हर बार गिरा और सम्भलता रहा, दौर खुदा की रहमतों का चलता रहा।

क्योंकि मेरी कोई जायदाद नहीं।

तन्हा बैठा था एक दिन मैं अपने मकान में, चिड़िया बना रही थी घोंसला रोशनदान में। पल भर में आती पल भर में जाती थी वो, छोटे छोटे तिनके चोंच में भर लाती थी वो। बना रही थी वो अपना घर एक न्यारा, कोई तिनका था, ना ईंट उसकी कोई गारा। कुछ दिन बाद.... मौसम बदला, हवा के झोंके आने लगे, नन्हे से दो बच्चे घोंसले में चहचहाने लगे। पाल रही थी चिड़िया उन्हे, पंख निकल रहे थे दोनों के, पैरों पर करती थी खड़ा उन्हे। देखता था मैं हर रोज उन्हें, जज्बात मेरे उनसे कुछ जुड़ गए , पंख निकलने पर दोनों बच्चे, मां को छोड़ अकेला उड़ गए। चिड़िया से पूछा मैंने.. तेरे बच्चे तुझे अकेला क्यों छोड़ गए, तू तो थी मां उनकी, फिर ये रिश्ता क्यों तोड़ गए? चिड़िया बोली... परिन्दे और इंसान के बच्चे में यही तो फर्क है, इंसान का बच्चा..... पैदा होते ही अपना हक जमाता है, न मिलने पर वो मां बाप को, कोर्ट कचहरी तक भी ले जाता है। मैंने बच्चों को जन्म दिया, पर करता कोई मुझे याद नहीं, मेरे बच्चे क्यों रहेंगे साथ मेरे क्योंकि मेरी कोई जायदाद नहीं।

भागी हुई लड़कियों का बाप!

भागी हुई लड़कियों का बाप!       वह इस दुनिया का सबसे अधिक टूटा हुआ व्यक्ति होता है। पहले तो वह महीनों तक घर से निकलता नहीं है, और फिर जब निकलता है तो हमेशा सर झुका कर चलता है। अपने आस-पास मुस्कुराते हर चेहरों को देख कर उसे लगता है जैसे लोग उसी को देख कर हँस रहे हैं। वह जीवन भर किसी से तेज स्वर में बात नहीं करता, वह डरता है कि कहीं कोई उसकी भागी हुई बेटी का नाम न ले ले... वह जीवन भर डरा रहता है। वह रोज मरता है। तबतक मरता है जबतक कि मर नहीं जाता।     पुराने दिनों में एक शब्द होता था 'मोछ-भदरा'। जिस पिता की बेटी घर से भाग जाती थी, उसे उसी दिन हजाम के यहाँ जा कर अपनी मूछें मुड़वा लेनी पड़ती थी। यह ग्रामीण सभ्यता का अलिखित संविधान था। तब मनई दो बार ही मूँछ मुड़ाता था, एक पिता की मृत्यु पर और दूसरा बेटी के भागने पर। बेटी का भागना तब पिता की मृत्यु से अधिक पीड़ादायक समझा जाता था। तब और अब में बस इतना इतना ही अंतर है कि अब पिता मूँछ नहीं मुड़ाता, पर मोछ-भदरा तब भी बन जाता है। बिना मूँछ मुड़ाये... किसी के "फेर" में फँस कर घर से भागते बच्चे( लड़के और लड़कियाँ दोनों) यह नहीं जानते क

तजुरबे के मुताबिक़ खुद को ढाल लेता हूँ...

तजुरबे के मुताबिक़ खुद को ढाल लेता हूँ, कोई प्यार जताये तो जेब सम्भाल लेता हूँ नहीं करता थप्पड़ के बाद, दूसरा गाल आगे, खंजर खींचें कोई, तो तलवार निकाल लेता हूँ वक़्त था सांप का तस्सवुर डरा देता था, अब एक आध मैं, आस्तीन में पाल लेता हूँ मुझे फांसने की कहीं साज़िश तो नहीं, हर मुस्कान ठीक से जाँच पड़ताल लेता हूँ बहुत जला चुका ऊंगलियाँ, मैं पराई आग में, अब झगड़े में कोई बुलाये, तो टाल देता हूँ सहेज के रखा था दिल, जब शीशे का था, पत्थर का हो चुका अब, मज़े से उछाल लेता हूँ.!

रिश्ते - बेटी और बहन दो बेहद अनमोल शब्द हैं...

"रिश्ते" Prince ?????? पिताजी जोर से चिल्लाते हैं । प्रिंस दौड़कर आता है पूछता है... क्या बात है पिताजी? पिताजी- तूझे पता नहीं है आज तेरी बहन रश्मि आ रही है?  वह इस बार हम सभी के साथ अपना जन्मदिन मनायेगी..अब जल्दी से जा और अपनी बहन को लेके आ। हाँ और सुन...तू अपनी नई गाड़ी लेके जा जो तूने कल खरीदी है..उसे अच्छा लगेगा। प्रिंस - लेकिन मेरी गाड़ी तो मेरा दोस्त ले गया है सुबह ही...और आपकी गाड़ी भी ड्राइवर ये कहके ले गया की गाड़ी की ब्रेक चेक करवानी है। पिताजी - ठीक है तो तू स्टेशन तो जा कीसी की गाड़ी या किराया की करके? उसे बहुत खुशी मिलेगी । प्रिंस - अरे वह बच्ची है क्या जो आ नहीं सकेगी ? टैक्सी या आटो लेकर आ जायेगी आप चिंता क्यों करते हो .... पिताजी - तूझे शर्म नहीं आती ऐसा बोलते हुए ? घर मे गाडी़यां होते हुए भी घर की बेटी किसी टैक्सी या आटो से आयेगी ? प्रिंस - ठीक है आप जाओ मुझे बहुत काम है मैं नहीं जा सकता... पिताजी - तूझे अपनी बहन की थोड़ी भी फिकर नहीं ? शादी हो गई तो क्या बहन पराया हो गई .... क्या उसे हम सबका प्यार पाने का हक नहीं ? तेरा जितना अधिकार है इस घर

गधे को मंत्री बना दिया...

एक राजा ने अपने जीजा की सिफारिश पर एक आदमी को मौसम विभाग का मंत्री बना दिया। -  एक बार उसने शिकार पर जाने से पहले उस मंत्री से मौसम की भविष्य वाणी पूछी - मंत्री जी बोले "ज़रूर जाइए,,, मौसम कई दिनो  तक बहुत अच्छा है" - राजा थोड़ी दूर गया था कि रास्ते में एक कुम्हार मिला - वो बोला "महाराज तेज़ बारिश आने वाली है...... कहाँ जा रहे हैं ? " अब मंत्री के मुक़ाबले कुम्हार की बात क्या मानी जाती, उसे वही चार जूते मारने की सज़ा सुनाई और आगे बढ़ गये - वोही हुआ। थोड़ी देर  बाद तेज़ आँधी के साथ बारिश आई और जंगल दलदल बन गया , राजा जी जैसे तैसे महल में वापस आए , पहले तो उस मंत्री को बर्खास्त किया , फिर उस कुम्हार को बुलाया - इनाम दिया और मौसम विभाग के मंत्री पद की पेशकश की - कुम्हार बोला हुज़ूर मैं क्या जानू? मौसम- वौसम क्या होता है?  वो तो जब मेरे गधे के कान ढीले हो कर नीचे लटक जाते हैं, मैं समझ जाता हूँ वर्षा होने वाली है, और मेरा गधा कभी ग़लत साबित नहीं हुआ - राजा ने तुरंत कुम्हार को छोड़ कर उसके गधे को मंत्री बना दिया - तब से ही गधों को मंत्री बनाने क

वसीयत और नसीहत

"वसीयत और नसीहत" एक दौलतमंद इंसान ने अपने बेटे को वसीयत देते हुए कहा, "बेटा मेरे मरने के बाद मेरे पैरों में ये फटे हुऐ मोज़े (जुराबें) पहना देना, मेरी यह इक्छा जरूर पूरी करना । पिता के मरते ही नहलाने के बाद, बेटे ने पंडितजी से पिता की आखरी इक्छा बताई । पंडितजी ने कहा: हमारे धर्म में कुछ भी पहनाने की इज़ाज़त नही है। पर बेटे की ज़िद थी कि पिता की आखरी इक्छ पूरी हो । बहस इतनी बढ़ गई की शहर के पंडितों को जमा किया गया, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला । इसी माहौल में एक व्यक्ति आया, और आकर बेटे के हाथ में पिता का लिखा हुआ खत दिया, जिस में पिता की नसीहत लिखी थी "मेरे प्यारे बेटे" देख रहे हो..? दौलत, बंगला, गाड़ी और बड़ी-बड़ी फैक्ट्री और फॉर्म हाउस के बाद भी, मैं एक फटा हुआ मोजा तक नहीं ले जा सकता । एक रोज़ तुम्हें भी मृत्यु आएगी, आगाह हो जाओ, तुम्हें भी एक सफ़ेद कपडे में ही जाना पड़ेगा । लिहाज़ा कोशिश करना,पैसों के लिए किसी को दुःख मत देना, ग़लत तरीक़े से पैसा ना कमाना, धन को धर्म के कार्य में ही लगाना । सबको यह जानने का हक है कि शरीर छूटने के बाद सिर्फ कर्म ही साथ जाएंगे

कहानी - बहन आप बहुत अमीर हो ..

✅ कहानी ✅ लगभग दस साल का अख़बार बेचने वाला बालक एक मकान का गेट बजा रहा है।(उस दिन अखबार नहीं छपा होगा) मालकिन - बाहर आकर पूछी "क्या है ? " बालक - "आंटी जी क्या मैं आपका गार्डेन साफ कर दूं ?" मालकिन - नहीं, हमें नहीं करवाना।" बालक - हाथ जोड़ते हुए दयनीय स्वर में.. "प्लीज आंटी जी करा लीजिये न, अच्छे से साफ करूंगा।" मालकिन - द्रवित होते हुए "अच्छा ठीक है, कितने पैसा लेगा ?" बालक - पैसा नहीं आंटी जी, खाना दे देना।" मालकिन- ओह !! आ जाओ अच्छे से काम करना..! (लगता है बेचारा भूखा है पहले खाना दे देती हूँ..मालकिन बुदबुदायी।) मालकिन- ऐ लड़के..! पहले खाना खा ले, फिर काम करना। बालक -नहीं आंटी जी, पहले काम कर लूँ फिर आप खाना दे देना। मालकिन - ठीक है ! कहकर  अपने काम में लग गयी। बालक - एक घंटे बाद "आंटी जी देख लीजिए, सफाई अच्छे से हुई कि नहीं। मालकिन -अरे वाह! तूने तो बहुत बढ़िया सफाई की है, गमले भी करीने से जमा दिए। यहां बैठ, मैं खाना लाती हूँ। जैसे ही मालकिन ने उसे खाना दिया! बालक जेब से पन्नी निकाल कर उसमें खाना रखने लगा। मालकि

आपका मजहब कौनसा है ?

मस्जिद पे गिरता है .... मंदिर पे भी बरसता है ... ए बादल बता तेरा ... मजहब कौनसा है? इमाम की तू प्यास बुझाए... पुजारी की भी तृष्णा मिटाए.... ए पानी बता तेरा.... मजहब कौन सा है? मज़ारों की शान बढाता है... मूर्तियों को भी सजाता है... ए फूल बता तेरा.... मजहब कौनसा है? सारे जहाँ को रोशन करता है.... सृष्टी को उजाला देता है.... ए सूरज बता तेरा.... मजहब कौनसा है? मुस्लिम तूझ पे कब्र बनाता है .... हिंदू आखिर तूझ में ही... विलीन होता है... ए मिट्टी बता तेरा... मजहब कौनसा है? खुदा भी तू है.. ईश्वर भी तू.. पर आज बता ही दे.. ए परवरदिगार..... आपका मजहब कौनसा है? सोचकर यही मंदिर, मस्जिद भी दंग है कि.... हमें ख़बर भी नहीं और हमारी जंग है.... ऐ दोस्त मजहब से दूर हटकर...इंसान बनो.. क्योंकि इंसानियत का कोई मजहब नहीं होता...

जागो ग्राहक जागो...

स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के ऑफिस के बाहर राजू केले बेच रहा था। बिजली विभाग के एक बड़े  अधिकारी ने पूछा : - केले कैसे दिए ? राजू : - केले किस लिए खरीद रहे हैं साहब ? अधिकारी :-  मतलब ?? राजू :-  मतलब ये साहब कि, मंदिर के प्रसाद के लिए ले रहे हैं तो 10 रुपए दर्जन। वृद्धाश्रम में देने हों तो 15 रुपए दर्जन। बच्चों के टिफिन में रखने हों तो 20 रुपए दर्जन। घर में खाने के लिए ले जा रहे हों तो, 25 रुपए दर्जन और अगर पिकनिक के लिए खरीद रहे हों तो 30 रुपए दर्जन। अधिकारी : - ये क्या बेवकूफी है ? अरे भई, जब सारे केले एक जैसे ही हैं तो, भाव अलग अलग क्यों बता रहे हो ?? राजू : - ये तो पैसे वसूली का, आप ही का स्टाइल है साहब। 1 से 100 रिडींग का रेट अलग, 100 से 200 का अलग, 200 से 300 का अलग। अरे आपके बाप की बिजली है क्या ? आप भी तो एक ही खंभे से बिजली देते हो। तो फिर घर के लिए अलग रेट, दुकान के लिए अलग रेट, कारखाने के लिए अलग रेट और फिर इंधन भार, विज आकार..... और हाँ, एक बात और साहब, मीटर का भाड़ा। मीटर क्या अमेरिका से आयात किया है क्या ? 25 सालों से उसका भाड़ा भर रहा हूँ, आखिर उ

मंजिलो को प्यार कर, रास्तो को पार कर.....

"मंजिलो को प्यार कर, रास्तो को पार कर, गर न हो सके सफल, तो बैठ मत तू हार कर। है जरूर तू टूटा अंदर से, निकल निराश के समंदर से, मेहनत को गुना चार कर, मंज़िलो को प्यार कर। कदम तुझे ही है बढ़ाने, छोड़ कर सारे बहाने, उठ खड़ा हो वार कर, रास्तो को पार कर, मंजिलो को प्यार कर। है गांडीव तू अर्जुन का, है महीना तू जून का, खुद को बस सम्भाल अब, उठा मस्तक भाल अब, अपने डरो को मार कर, मंजिलो को प्यार कर, रास्तो को पार कर।" ................................................