तजुरबे के मुताबिक़ खुद को ढाल लेता हूँ...
तजुरबे के मुताबिक़ खुद को ढाल लेता हूँ,
कोई प्यार जताये तो जेब सम्भाल लेता हूँ
नहीं करता थप्पड़ के बाद, दूसरा गाल आगे,
खंजर खींचें कोई, तो तलवार निकाल लेता हूँ
वक़्त था सांप का तस्सवुर डरा देता था,
अब एक आध मैं, आस्तीन में पाल लेता हूँ
मुझे फांसने की कहीं साज़िश तो नहीं,
हर मुस्कान ठीक से जाँच पड़ताल लेता हूँ
बहुत जला चुका ऊंगलियाँ, मैं पराई आग में,
अब झगड़े में कोई बुलाये, तो टाल देता हूँ
सहेज के रखा था दिल, जब शीशे का था,
पत्थर का हो चुका अब, मज़े से उछाल लेता हूँ.!
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