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Showing posts from July, 2019

खुदा भी याद आता है ज़रूरत पे यहां सबको...

दरवाज़ों पे खाली तख्तियां अच्छी नहीं लगती, मुझे उजड़ी हुई ये बस्तियां अच्छी नहीं लगती, चलती तो समंदर का भी सीना चीर सकती थीं, यूँ साहिल पे ठहरी कश्तियां अच्छी नहीं लगती, खुदा भी याद आता है ज़रूरत पे यहां सबको, दुनिया की यही खुदगर्ज़ियां अच्छी नहीं लगती, उन्हें कैसे मिलेगी माँ के पैरों के तले जन्नत, जिन्हें अपने घरों में बच्चियां अच्छी नहीं लगती।

ये इंसा है केवल चमन देखता है ....

ये इंसा है केवल चमन देखता है सरे राह बेपर्दा तन देखता है .... हवस का पूजारी हुआ जा रहा है कली में भी कमसिन बदन देखता है .... ज़लालत की हद से गिरा इतना नीचे कि मय्यत पे बेहतर कफन देखता है .... भरी है दिमागों में क्या गन्दगी सी ना माँ-बाप भाई-बहेन देखता है .... बुलन्दी की खाहिश में रिश्ते भूला कर मुक़ददर का अपने वज़न देखता है .... ख़ुदी मे हुआ चूर इतना कहें क्या पड़ोसी के घर को 'रहन' देखता है .... नहीं तेज़ तूफानो का खौ़फ रखता नहीं वक्त़ की ये चुभन देखता है ..... हर एक शख्स इसको लगे दुश्मनों-सा फिजा़ओं में भी ये जलन देखता है ..... हवस की हनक का हुनर इसमे उम्दा ज़माने को खुद सा नगन देखता है...

मैं हर बार गिरा और सम्भलता रहा....

मैं हर बार गिरा और सम्भलता रहा, दौर खुदा की रहमतों का चलता रहा, वक़्त भले ही मेरे विपरीत था, मैं ना जरा सा भी भयभीत था, मुझे यकीं था की एक दिन सूरज जरूर निकलेगा, क्या हुआ जो वो हर रोज ढलता रहा, मैं हर बार गिरा और सम्भलता रहा, जब भी हुआ है दीपक में तेल खत्म, तो समझो हो गया खेल खत्म, निचोड़ कर खून रगों का इसमें, मैं एक दीपक की भाँति जलता रहा, मैं हर बार गिरा और सम्भलता रहा, झिलमिल से ख्वाब थे इन निगाहों में, करता रहा महनत माँ की दुआओं में, सींचता रहा परिश्रम के पौधे को दिन रात, और ये पौधा सफलता के पेड़ में बदलता रहा, मैं हर बार गिरा और सम्भलता रहा, ये सब तुम्हारी सबकी दुआओं का असर है, जो मिली आज इतनी सुहानी डगर है, तह दिल से शुक्रिया मेरे चाहने वालों, आज मेरी किस्मत का सिक्का उछलता रहा, मैं हर बार गिरा और सम्भलता रहा, दौर खुदा की रहमतों का चलता रहा।

क्योंकि मेरी कोई जायदाद नहीं।

तन्हा बैठा था एक दिन मैं अपने मकान में, चिड़िया बना रही थी घोंसला रोशनदान में। पल भर में आती पल भर में जाती थी वो, छोटे छोटे तिनके चोंच में भर लाती थी वो। बना रही थी वो अपना घर एक न्यारा, कोई तिनका था, ना ईंट उसकी कोई गारा। कुछ दिन बाद.... मौसम बदला, हवा के झोंके आने लगे, नन्हे से दो बच्चे घोंसले में चहचहाने लगे। पाल रही थी चिड़िया उन्हे, पंख निकल रहे थे दोनों के, पैरों पर करती थी खड़ा उन्हे। देखता था मैं हर रोज उन्हें, जज्बात मेरे उनसे कुछ जुड़ गए , पंख निकलने पर दोनों बच्चे, मां को छोड़ अकेला उड़ गए। चिड़िया से पूछा मैंने.. तेरे बच्चे तुझे अकेला क्यों छोड़ गए, तू तो थी मां उनकी, फिर ये रिश्ता क्यों तोड़ गए? चिड़िया बोली... परिन्दे और इंसान के बच्चे में यही तो फर्क है, इंसान का बच्चा..... पैदा होते ही अपना हक जमाता है, न मिलने पर वो मां बाप को, कोर्ट कचहरी तक भी ले जाता है। मैंने बच्चों को जन्म दिया, पर करता कोई मुझे याद नहीं, मेरे बच्चे क्यों रहेंगे साथ मेरे क्योंकि मेरी कोई जायदाद नहीं।

भागी हुई लड़कियों का बाप!

भागी हुई लड़कियों का बाप!       वह इस दुनिया का सबसे अधिक टूटा हुआ व्यक्ति होता है। पहले तो वह महीनों तक घर से निकलता नहीं है, और फिर जब निकलता है तो हमेशा सर झुका कर चलता है। अपने आस-पास मुस्कुराते हर चेहरों को देख कर उसे लगता है जैसे लोग उसी को देख कर हँस रहे हैं। वह जीवन भर किसी से तेज स्वर में बात नहीं करता, वह डरता है कि कहीं कोई उसकी भागी हुई बेटी का नाम न ले ले... वह जीवन भर डरा रहता है। वह रोज मरता है। तबतक मरता है जबतक कि मर नहीं जाता।     पुराने दिनों में एक शब्द होता था 'मोछ-भदरा'। जिस पिता की बेटी घर से भाग जाती थी, उसे उसी दिन हजाम के यहाँ जा कर अपनी मूछें मुड़वा लेनी पड़ती थी। यह ग्रामीण सभ्यता का अलिखित संविधान था। तब मनई दो बार ही मूँछ मुड़ाता था, एक पिता की मृत्यु पर और दूसरा बेटी के भागने पर। बेटी का भागना तब पिता की मृत्यु से अधिक पीड़ादायक समझा जाता था। तब और अब में बस इतना इतना ही अंतर है कि अब पिता मूँछ नहीं मुड़ाता, पर मोछ-भदरा तब भी बन जाता है। बिना मूँछ मुड़ाये... किसी के "फेर" में फँस कर घर से भागते बच्चे( लड़के और लड़कियाँ दोनों) यह नहीं जानते क

तजुरबे के मुताबिक़ खुद को ढाल लेता हूँ...

तजुरबे के मुताबिक़ खुद को ढाल लेता हूँ, कोई प्यार जताये तो जेब सम्भाल लेता हूँ नहीं करता थप्पड़ के बाद, दूसरा गाल आगे, खंजर खींचें कोई, तो तलवार निकाल लेता हूँ वक़्त था सांप का तस्सवुर डरा देता था, अब एक आध मैं, आस्तीन में पाल लेता हूँ मुझे फांसने की कहीं साज़िश तो नहीं, हर मुस्कान ठीक से जाँच पड़ताल लेता हूँ बहुत जला चुका ऊंगलियाँ, मैं पराई आग में, अब झगड़े में कोई बुलाये, तो टाल देता हूँ सहेज के रखा था दिल, जब शीशे का था, पत्थर का हो चुका अब, मज़े से उछाल लेता हूँ.!

रिश्ते - बेटी और बहन दो बेहद अनमोल शब्द हैं...

"रिश्ते" Prince ?????? पिताजी जोर से चिल्लाते हैं । प्रिंस दौड़कर आता है पूछता है... क्या बात है पिताजी? पिताजी- तूझे पता नहीं है आज तेरी बहन रश्मि आ रही है?  वह इस बार हम सभी के साथ अपना जन्मदिन मनायेगी..अब जल्दी से जा और अपनी बहन को लेके आ। हाँ और सुन...तू अपनी नई गाड़ी लेके जा जो तूने कल खरीदी है..उसे अच्छा लगेगा। प्रिंस - लेकिन मेरी गाड़ी तो मेरा दोस्त ले गया है सुबह ही...और आपकी गाड़ी भी ड्राइवर ये कहके ले गया की गाड़ी की ब्रेक चेक करवानी है। पिताजी - ठीक है तो तू स्टेशन तो जा कीसी की गाड़ी या किराया की करके? उसे बहुत खुशी मिलेगी । प्रिंस - अरे वह बच्ची है क्या जो आ नहीं सकेगी ? टैक्सी या आटो लेकर आ जायेगी आप चिंता क्यों करते हो .... पिताजी - तूझे शर्म नहीं आती ऐसा बोलते हुए ? घर मे गाडी़यां होते हुए भी घर की बेटी किसी टैक्सी या आटो से आयेगी ? प्रिंस - ठीक है आप जाओ मुझे बहुत काम है मैं नहीं जा सकता... पिताजी - तूझे अपनी बहन की थोड़ी भी फिकर नहीं ? शादी हो गई तो क्या बहन पराया हो गई .... क्या उसे हम सबका प्यार पाने का हक नहीं ? तेरा जितना अधिकार है इस घर

गधे को मंत्री बना दिया...

एक राजा ने अपने जीजा की सिफारिश पर एक आदमी को मौसम विभाग का मंत्री बना दिया। -  एक बार उसने शिकार पर जाने से पहले उस मंत्री से मौसम की भविष्य वाणी पूछी - मंत्री जी बोले "ज़रूर जाइए,,, मौसम कई दिनो  तक बहुत अच्छा है" - राजा थोड़ी दूर गया था कि रास्ते में एक कुम्हार मिला - वो बोला "महाराज तेज़ बारिश आने वाली है...... कहाँ जा रहे हैं ? " अब मंत्री के मुक़ाबले कुम्हार की बात क्या मानी जाती, उसे वही चार जूते मारने की सज़ा सुनाई और आगे बढ़ गये - वोही हुआ। थोड़ी देर  बाद तेज़ आँधी के साथ बारिश आई और जंगल दलदल बन गया , राजा जी जैसे तैसे महल में वापस आए , पहले तो उस मंत्री को बर्खास्त किया , फिर उस कुम्हार को बुलाया - इनाम दिया और मौसम विभाग के मंत्री पद की पेशकश की - कुम्हार बोला हुज़ूर मैं क्या जानू? मौसम- वौसम क्या होता है?  वो तो जब मेरे गधे के कान ढीले हो कर नीचे लटक जाते हैं, मैं समझ जाता हूँ वर्षा होने वाली है, और मेरा गधा कभी ग़लत साबित नहीं हुआ - राजा ने तुरंत कुम्हार को छोड़ कर उसके गधे को मंत्री बना दिया - तब से ही गधों को मंत्री बनाने क