मैं सुलग रहा हूं बुझा नहीं ...
कहीं मन्दिरों में दिया नहीं, कहीं मस्जिदों में दुआ नहीं ..
मेरे शह्र में हैं ख़ुदा बहोत हैं, मगर आदमी का पता नहीं ।।
कहीं यूं न हो, तेरे हाथ में, मैं हवा से मिल के भड़क उठूं ...
अभी खेल मत मेरी राख से, मैं सुलग रहा हूं बुझा नहीं ...
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