भरोसा खुद से....


 

 भरोसा खुद से

मत कहो किसी से
की तुम चटक रहे हो....
टूट रही दरख्तों का
अहसास न होने देना.....
रिसते हुए जख्मों को न दिखाना
आंसू, आखों से न गिराना.....

सुना हैं टूटे घरों से
लोग ईंट तक चुरा लेते है ....
रिसते जख्मों पर नमक लगाते है
जो खुद को शुभचिंतक कहते है....
 सच्ची चिंता बही बढ़ाते हैं....

कितना भी खास क्यों न हो तेरा
बस खुद से ही रिश्ता निभाना.....
अपना दुःख दर्द किसी को न बताना
ज़माना सहानुभूति ही दिया करता है.....
और बक्त पर कन्नी काट लिया करता है.....

मैं हु न ......
कहने वाले सबसे पहले खिसकते हैं
बहाने मुंह पर तैयार रखते है....
मत रहना किसी मुगालते में
शाख भी कमज़ोर पत्तों को....
बक्त पर छोड़ दिया करते है.....

Comments

Popular posts from this blog

तू अपनी खूबियां ढूंढ .... कमियां निकालने के लिए लोग हैं |

जो कह दिया वह शब्द थे...

ख़याल जिस का था मुझे ख़याल में मिला मुझे - मुनीर नियाज़ी