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Showing posts from November, 2021

मजदूर का बेटा

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हम साथ साथ पढ़ते तब , 8 वीं की बात रही होगी, मेरी टक्कर हमेशा से ही उससे हो जाती थी, और मैं हमेशा उससे हार जाता था। खेल में,  कक्षा के रिजल्ट के स्थान में, हमेशा वो मुझसे बाजी मार लेता था। मुझे इस बात से उससे चिढ़ हो गई थी, वो मजदूर का बेटा ,और मैं सरकारी कर्मचारी का बेटा हमारी बराबरी कैसे हो सकती थी, बल्कि वो तो मुझसे दो कदम आगे ही रहता था। मेरी बार बार की हार मुझे तिलमिला देती थी, मैंने एक दिन अपनी हार का बदला ले लिया उससे, जब कक्षा में कोई नहीं था उसके बस्ते से उसकी दो किताबें निकाल कर फाड़ दी। जब उसने अपना बस्ता सम्भाला तो फ़टी हुई किताबें देखकर उसकी आँखों से झर्र झर्र आंसू बहने लगे। उसने केवल रोती हुई आंखों से मुझे देखा था, कुछ कहा नहीं। अगले रोज उसकी आंख के पास चोट का निशान था, एक दोस्त ने बताया उसकी किताब फट गई इसके लिए उसके बापू ने उसे मारा था। मुझे बहुत शांति मिली, उसकी पिटाई का सुनकर। अगली कक्षा में वो पढ़ने नहीं आया, पता चला उसने पढाई छोड़ दी है और अपने बापू के साथ मजदूरी पर जाने लगा है,मुझे ये किसी बड़ी जीत से कम न लगा, उसी साल पापा का ट्रांसफर होने के कारण हमें गांव से दूर जाना प

हरसिंगार.... नाम में ही कितना रस, कितना आकर्षण है

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  हरसिंगार.... नाम में ही कितना रस, कितना आकर्षण है। श्वेत पंखुड़ियां, केसरिया डंडी और पंखुड़ियों के बीच मे लाल तिलक। ऐसा लगता है कि फूल ने सारे शृंगार कर लिए और सादगी भी बनाए रखी। हो सकता है हर तरह के शृंगार का अपभ्रंश हो-हरसिंगार। दुष्यंत जी ने लिखा है: तूने ये हरसिंगार हिलाकर बुरा किया, पांवों की सब ज़मीन को फूलों से ढंक लिया... मैं देखता था Nallasopara में मेरी पुरानी रिहाइश के सामने वाली सोसाइटी में एक मलयाली महिला रहती थीं ग्राउंड फ्लोर पर। उनके फ्लैट के सामने 2 पेड़ थे हरसिंगार के। वो पतली धोती या दुप्पटा जैसा कुछ बिछा दिया करती थीं शाम को और रात को झरते थे हरसिंगार उसे वो भगवान कार्तिकेय या अयप्पा को अर्पित करती थीं।  हरसिंगार को तोड़ते नहीं, इनकी प्रतीक्षा करते हैं खुद से झर जाने की. इतने औषधीय गुणों से भरपूर है कि हरिवंश पुराण में प्रसंग आता है कि स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी भी जब थककर निस्तेज हो जाती थी, वह हरसिंगार को छूती थी तो उसका आकर्षण,उसकी चपलता सब उसे वापस मिल जाती थी। हरसिंगार या पारिजात या शेफ़ाली जो भी कह लें, उसके फूल उस डाल के नीचे नहीं बल्कि थोड़ा आगे गिरते हैं, जिससे वे

बेटी पराई नहीं लगती

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  बेटी जब शादी के मंडप से ससुराल जाती है तब पराई नहीं लगती मगर जब वह मायके आकर हाथ मुंह धोने के बाद सामने टंगे टाविल के बजाय अपने बैग से छोटे से रुमाल से मुंह पौंछती है , तब वह पराई लगती है. जब वह रसोई के दरवाजे पर अपरिचित सी खड़ी हो जाती है , तब वह पराई लगती है. जब वह पानी के गिलास के लिए इधर उधर आँखें घुमाती है , तब वह पराई लगती है. जब वह पूछती है वाशिंग मशीन चलाऊँ क्या तब वह पराई लगती है. जब टेबल पर खाना लगने के बाद भी बर्तन खोल कर नहीं देखती तब वह पराई लगती है. जब पैसे गिनते समय अपनी नजरें चुराती है तब वह पराई लगती है. जब बात बात पर अनावश्यक ठहाके लगाकर खुश होने का नाटक करती है तब वह पराई लगती है..... और लौटते समय 'अब कब आएगी' के जवाब में 'देखो कब आना होता है' यह जवाब देती है, तब हमेशा के लिए पराई हो गई ऐसे लगती है..... लेकिन गाड़ी में बैठने के बाद जब वह चुपके से अपनी आखें छुपा के सुखाने की कोशिश करती । तो वह परायापन एक झटके में बह जाता तब वो पराई सी लगती 😪 नहीं चाहिए हिस्सा भइया मेरा मायका सजाए रखना , कुछ ना देना मुझको बस प्यार बनाए रखना , पापा के इस घर में मेरी याद

अच्छे और बुरे लोगों की पहचान

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  बहुत समय पहले की बात है। नदी के तट पर एक गांव बसा था और उसी के नजदीक एक संत का आश्रम था। एक बार संत अपने शिष्यों के साथ नदी में स्नान कर रहे थे, तभी एक राहगीर वहां आया और संत से पूछने लगा, ‘‘महाराज, मैं परदेस से आया हूं और इस जगह पर नया हूं। क्या आप बता सकते हैं कि इस गांव में किस तरह के लोग रहते हैं?’’ यह सुनकर संत ने उससे कहा, ‘‘भाई, मैं तुम्हारे सवाल का जवाब बाद में दूंगा। पहले तुम मुझे यह बताओ कि तुम अभी जहां से आए हो, वहां किस प्रकार के लोग रहते हैं?’’ इस पर वह व्यक्ति बोला, ‘‘उनके बारे में क्या कहूं महाराज! वहां तो एक से एक कपटी, दुष्ट और बुरे लोग बसे हुए हैं।’’ तब संत ने उससे कहा, ‘‘तुम्हें इस गांव में भी बिल्कुल उसी तरह के लोग मिलेंगे-कपटी, दुष्ट और बुरे।’’ इतना सुनकर वह राहगीर आगे बढ़ गया। कुछ समय बाद वहां से एक और राहगीर का गुजरना हुआ। वह भी किसी नई जगह पर बसने की इच्छा रखता था। उसने संत से पूछा, ‘‘महात्मन, मुझे यहां की आबोहवा ठीक लगती है। क्या आप बता सकते हैं कि इस गांव में कैसे लोग रहते हैं?’’ संत ने उससे भी वही सवाल पूछा, जो उन्होंने पहले राहगीर से पूछा था। इस पर राहगीर

जैसा अन्न वैसा मन...

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एक बार एक ऋषि ने सोचा कि लोग गंगा में पाप धोने जाते है, तो इसका मतलब हुआ कि सारे पाप गंगा में समा गए और गंगा भी पापी हो गयी ! अब यह जानने के लिए तपस्या की, कि पाप कहाँ जाता है ? तपस्या करने के फलस्वरूप देवता प्रकट हुए , ऋषि ने पूछा कि भगवन जो पाप गंगा में धोया जाता है वह पाप कहाँ जाता है ? भगवन ने जहा कि चलो गंगा से ही पूछते है, दोनों लोग गंगा के पास गए और कहा कि "हे गंगे ! जो लोग तुम्हारे यहाँ पाप धोते है तो इसका मतलब आप भी पापी हुई !" गंगा ने कहा "मैं क्यों पापी हुई, मैं तो सारे पापों को ले जाकर समुद्र को अर्पित कर देती हूँ !" अब वे लोग समुद्र के पास गए, "हे सागर ! गंगा जो पाप आपको अर्पित कर देती है तो इसका मतलब आप भी पापी हुए !"समुद्र ने कहा "मैं क्यों पापी हुआ, मैं तो सारे पापों को लेकर भाप बना कर बादल बना देता हूँ !" अब वे लोग बादल के पास गए और कहा "हे बादलो ! समुद्र जो पापों को भाप बनाकर बादल बना देते है, तो इसका मतलब आप पापी हुए !" बादलों ने कहा "मैं क्यों पापी हुआ, मैं तो सारे पापों को वापस पानी बरसा कर धरती पर भेज देता हूँ

भगवान् है साहब ... भगवान् तो है...

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  एक मेजर साहब के नेतृत्व में बीस जवानों की एक टुकड़ी हिमालय के अपने रास्ते पर थी । बेतहाशा ठण्ड में मेजर ने सोचा की अगर उन्हें यहाँ एक कप चाय मिल जाती तो आगे बढ़ने की ताकत आ जाती लेकिन रात का समय था आस पास कोई बस्ती भी नहीं थी।लगभग एक घंटे की चढ़ाई के पश्चात् उन्हें एक जर्जर चाय की दुकान दिखाई दी । लेकिन अफ़सोस उस पर ताला लगा था । भूख और थकान की तीव्रता के चलते जवानों के आग्रह पर मेजर साहब दुकान का ताला तुड़वाने को राज़ी हो गये ताला तोडा गया, तो अंदर उन्हें चाय बनाने का सभी सामान मिल गया । जवानों ने चाय बनाई साथ वहां रखे बिस्किट आदि खाकर खुद को राहत दी । थकान से उबरने के पश्चात् सभी आगे बढ़ने की तैयारी करने लगे , लेकिन मेजर साहब को यूँ चोरो की तरह दुकान का ताला तोड़ने के कारण आत्मग्लानि हो रही थी । उन्होंने अपने पर्स में से दो हज़ार का एक नोट निकाला और चीनी के डब्बे के नीचे दबाकर रख दिया तथा दुकान का शटर ठीक से बंद करवाकर आगे बढ़ गए । चार महीने की समाप्ति पर इस टुकड़ी के सभी बीस जवान सकुशल अपने मेजर के नेतृत्व में उसी रास्ते से वापस आ रहे थे । रास्ते में उसी चाय की दुकान को खुला देखकर वहां सभी व

पुरुष होते ही ऐसे हैं.........

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• वो जो शाम को आफिस से घर से आते समय खुद भले न कुछ खाये पिए लेकिन तुम्हारे लिए हाफ प्लेट ग्रेवी मंचूरियन और एक प्लेट डिमसम पैक करवा लाता है. • वो लड़का है , जो अचानक से बंद कर देता है ब्रांडेड क्लोथिंग्स और उतर जाता है धारीदार शर्ट और सिंगल प्लेट वाली पैंट में ..ये बोलकर की फॉर्मल में आराम फील होता है.ताकि तुम अपने लिए नागपंचमी से लेकर नवरात्रि - दीवाली और मकर संक्रांति पर नए ब्रांडेड टी शर्ट प्लाजो , जैगिंग्स खरीद पाओ. • जो लड़का FZ से धनिया तक खरीदने जाता था वो रोज अब आफिस बस से जाता है..वो भी बस स्टैंड तक पैदल जाकर..कार को बहुत कम हाथ लगाता है.ताकि तुमहे अगर कहीं जाना हो तो एर्टिगा या उसकी दी हुई तुम अपनी यामा फासिनो से जा सको. • उसने बालो में हबीब का हेयर सीरम लगाना छोड़ दिया है..अब विराट कोहली की तरह दाढ़ी रखने का भी ध्यान नही रखता..पर तुम्हारे लिए गार्नियर की लाइट कंपलीट क्रीम और ब्लू हेवन के काजल मस्कारे लाइनर्स तक ले देता है.उसके खुद के तीन चार बाल कानो पर सफेद हुए जाते हैं पर तुम्हारे रिबॉन्डिंग करवाये बालो के लिए लगने वाला वो महंगा लॉरेल प्रोफेशनल शेम्पू हर महीने देना नही भूलता.

एक दौर वो भी था...

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  एक दौर वो भी था... धूप में लेंस लेकर कागज़ जलाने वाला नासा का वैज्ञानिक माना जाता था। जिस लड़के को माउथ ऑर्गन बजाना आता था वो रॉकस्टार माना जाता था। प्लास्टिक की डिस्पोजल में गोबर भर के उस में तार और छोटी बल्ब लगा के लाइट पैदा करने वाले एडिसन कहलाते थे। कुछ लड़के कालर चढाकर और हाथ मेँ रूमाल लपेट कर डॉन बना करते थे। प्लास्टिक की बन्दूक को चलाने के बाद जेम्स बांड वाली फिलिंग बडी ही जोरदार हुआ करती थी। जो लड़का अगरबत्ती वाली थैली में पानी भर के आग में रख देता था और थैली नहीं जलती थी उसे किसी वैज्ञानिक से कम नहीं समझा जाता था और गांव के बूढ़े तो उसे जादूगर ही घोषित कर देते थे। एक हाथ से गिरती चड्डी पकड़े दूसरे से साइकिल के टायर को गली में साइकिल से भी तेज घुमाते हुए दौड़ना भी मैराथन वाली फील देता था और अगले ही मोड़ पर पापा से सामना होते ही चड्डी और टायर दोनों जमीन पर मिलते थे और हाथ दोनों गालों पर।

दीपावली स्पेशल

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  दीपावली स्पेशल दीपावली पर मिठाई बांटने के पीछे भी एक सोच होती थी क्योंकि हर मिठाई कुछ कहती है गौर कीजिए, मिठाइयों के  कुछ ना कुछ संदेश.....😊😇 जैसे: रसगुल्ला कोई फर्क नहीं पड़ता कि, जीवन आपको कितना निचोड़ता है, अपना असली रूप सदा बनाये रखें बेसन के लड्डू यदि दबाव में बिखर भी जाय तो, फिर से बंध कर लड्डू हुआ जा सकता है। परिवार में एकता बनाए रखें गुलाब जामुन सॉफ्ट होना कमजोरी नहीं है! ये आपकी खासियत भी है। नम्रता एक विशेष गुण है जलेबी आकार मायने नहीं रखता, स्वभाव मायने रखता है, जीवन में उलझने कितनी भी हो, रसीले और सरल बने रहो बूंदी के लड्डू बूंदी-बूंदी से लड्डू बनता, छोटे-छोटे प्रयास से ही सब कुछ होता हैं! सकारात्मक प्रयास करते रहे. सोहन पापड़ी हर कोई आपको पसंद नहीं कर सकता, लेकिन बनाने वाले ने कभी हिम्मत नहीं हारी। अपने लक्ष्य पर टिके रहो ॰॰ काजू कतली अपने आप को इतना सस्ता ना रखे, कि राह चलता कोई भी आपका दाम पूछता रहे ! आंतरिक गुणवत्ता हमें सबसे अलग बनाती है इसलिए ........   हँसते रहें,हँसाते रहें  🙏 😄😃😋😄😃