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Showing posts from May, 2022

हर बात तुम्हारी अच्छी है ...

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  मैं तुमसे बेहतर लिखता हूँ पर जज्बात तुम्हारे अच्छे हैं ! मैं तुमसे बेहतर दिखता हूँ, पर अदा तुम्हारी अच्छी हैं ! मैं खुश हरदम रहता हूँ, पर मुस्कान तुम्हारी अच्छी हैं ! मैं अपने उसूलों पर चलता हूँ, पर ज़िद तुम्हारी अच्छी हैं ! मैं एक बेहतर शख्सियत हूँ, पर सीरत तुम्हारी अच्छी हैं मैं आसमान की चाह रखता हूँ, पर उड़ानें तुम्हारी अच्छी हैं ! मैं तुमसे बहुत बहस करता हूँ, पर दलीलें तुम्हारी अच्छी हैं ! मैं तुमसे बेहतर गाता हूँ, पर धुन तुम्हारी अच्छी हैं ! मैं गज़ल खूब कहता हूँ, पर तकरीर तुम्हारी अच्छी हैं ! मैं कितना भी कुछ कहता रहूँ, पर हर बात तुम्हारी अच्छी है !

'परमवीर' को आप क्या कहेंगे ...?

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  जिस व्यक्ति ने अपनी आयु के 20 वे वर्ष में पेशवाई के सूत्र संभाले हो ...40 वर्ष  तक के कार्यकाल में 42 युद्ध लड़े हो और सभी जीते हो यानि जो सदा "अपराजेय" रहा हो ...जिसके एक युद्ध को अमेरिका जैसा राष्ट्र अपने सैनिकों को पाठ्यक्रम के रूप में पढ़ा रहा हो ..ऐसे 'परमवीर' को आप क्या कहेंगे ...? आप उसे नाम नहीं दे पाएंगे ..क्योंकि आपका उससे परिचय ही नहीं ... सन 18 अगस्त सन् 1700 में जन्मे उस महान पराक्रमी पेशवा का नाम है -  " बाजीराव पेशवा " जिनका इतिहास में कोई विस्तृत उल्लेख हमने नहीं पढ़ा .. हम बस इतना जानते हैं कि संजय 'लीला' भंसाली की फिल्म है "बाजीराव-मस्तानी" "अगर मुझे पहुँचने में देर हो गई तो इतिहास लिखेगा कि एक राजपूत ने मदद मांगी और ब्राह्मण भोजन करता रहा " ऐसा कहते हुए भोजन की थाली छोड़कर बाजीराव अपनी सेना के साथ राजा छत्रसाल की मदद को बिजली की गति से दौड़ पड़े । धरती के महानतम योद्धाओं में से एक , अद्वितीय , अपराजेय और अनुपम योद्धा थे बाजीराव बल्लाल । छत्रपति शिवाजी महाराज का हिन्दवी स्वराज का सपना जिसे पूरा कर दिखाया तो सिर्फ - ब

अहंकार की भाषा

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  हम सभी में अलग अलग खूबियां होती है इसलिए हमें अलग अलग बातों पर अहंकार होता है ।  यही वजह है कि अहंकार की भाषा अलग अलग है उसकी शब्दावली अलग अलग है , लेकिन खुद को न समझे जाने का दर्द हर किसी का एक जैसा ही होता है इसीलिए दर्द की एक ही भाषा है .. अगर हम किसी को कुछ नही समझा पा रहे है तो सम्भवतः हम अहंकार की भाषा बोल रहे हैं , अगर हम किसी को नही समझ पा रहे है तो संभवतः वो अहंकार की भाषा बोल रहा है ।  अगर हम अहंकार में है तो अपने अहंकार को दरकिनार कर शब्दों में अपने दर्द को जगह दीजिए । अगर वो अहंकार में है तो उसके अहंकार के पीछे छुपे उसके दर्द को महसूस कीजिए । इंसान का इंसान से जुड़े रहने का बस एक यही रास्ता है और दूसरा कोई रास्ता नही .

टिफिन लगानाभर नहीं है. ...

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  क्योंकि टिफिन लगाना टिफिन लगानाभर नहीं है. जब टिफिन खोलो तब सुनना मां की गुनगुनाई लोरियां. जब टिफिन खोलो तब पढ़ना पत्नि के लिखे प्रेमपत्र जब टिफिन खोलो तब गुनना बहन के संजोए स्वप्न जब टिफिन खोलो तब पहनना पिता के तहाए पंख. जब टिफिन खोलो तब बूझना बिटिया की बुझाई पहेलियां. जब टिफिन खोलो तब तोलना भाई के कंधों पर ठहरा वज़न. जब भी टिफिन खोलना दिल से खोलना क्योंकि हर टिफिन केवल टिफिनभर नहीं होता ममता, प्रेम और वात्सल्य से परिपूर्ण एक अनमोल धरोहर होता है.

सच्ची लॉटरी....

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  ये बहुत पुरानी बात है, 1989 की मैं जब कक्षा 6 में पढ़ता था। पापा सरकारी महकमें में थे। वो एक छोटा कस्बा था, हम एक सरकारी कॉलोनी में रहते थे। हमारी कॉलोनी से बिल्कुल जुड़ा हुआ एक खेत था, कॉलोनी के लगभग सभी लोग सब्ज़ियां और फल उसी खेत से लेते थे। खेत का मालिक था तुलसा राम वो उस वक़्त कोई 40 बरस का रहा होगा पर वो सब कॉलोनी वालों के तुलसा बाबा ही था, क्या महिलाएं क्या बच्चे और क्या बड़े सब उसे तुलसा बाबा ही कहते थे। उसका कॉलोनी वासियों से बड़ा प्रेम था, सावन में अपने खेत में वो झूला लगाता था, सारे बच्चे और महिलाएं उसके खेत में झूला झूलते थे। मैं अक्सर तुलसा बाबा के खेत में मस्ती करने चला जाता था, तुलसा बाबा किसी को कभी डांटते नहीं थे, वो अक्सर कुछ न कुछ खाने को दे देते थे। मुझे वो सिंकडी पहलवान कहते थे क्योंकि मैं दुबला पतला था। तुलसा बाबा से मेरा लगाव बहुत ज्यादा था, इसलिए मेरा अधिकतर खेल का समय उनके खेत में ही बीतता था। उन दिनों एक लॉटरी का बड़ा सा कागज होता था जिसमें कुछ पर्चियां चिपकी रहती थीं। उन्हें 5 पैसे में खोला जाता था , मैं अक्सर वो लॉटरी दुकान पर देखा करता था , सबसे बड़ा इनाम 5 रुपये