टिफिन लगानाभर नहीं है. ...
क्योंकि टिफिन लगाना
टिफिन लगानाभर नहीं है.
जब टिफिन खोलो तब सुनना
मां की गुनगुनाई लोरियां.
जब टिफिन खोलो तब पढ़ना
पत्नि के लिखे प्रेमपत्र
जब टिफिन खोलो तब गुनना
बहन के संजोए स्वप्न
जब टिफिन खोलो तब पहनना
पिता के तहाए पंख.
जब टिफिन खोलो तब बूझना
बिटिया की बुझाई पहेलियां.
जब टिफिन खोलो तब तोलना
भाई के कंधों पर ठहरा वज़न.
जब भी टिफिन खोलना
दिल से खोलना
क्योंकि हर टिफिन
केवल टिफिनभर नहीं होता
ममता, प्रेम और वात्सल्य से परिपूर्ण
एक अनमोल धरोहर होता है.
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