नदी की याददाश्त.... अक्सर बुज़ुर्ग कहते थे.. "नदी के पास घर मत बसाओ बेटा," वो अपना रास्ता कभी नहीं भूलती। आज की पीढ़ी कहे … "अब वो पुरानी बात है दादाजी, अब तो रिवर-व्यू ही बिकते हैं, लॉन में झूले, और सेल्फी कॉर्नर भी होते हैं “ बुज़ुर्ग फिर चुप हो गए… शायद सोच लिया होगा.. जब तजुर्बा न बिकता हो, तो क्यों ज़ुबान थकाई जाए जी ? हमने नदियों को पत्थर पहनाए, रेत को सीमेंट से पाट दिया, जलधाराओं को गूगल मैप से हटाया, और नाम दे दिया “रिवर व्यू… व्यास व्यू…” फिर एक दिन घनघोर बारिश ने पुरानी फाइलें खोल दीं.. नदी आई ,न नाराज़, न हिंसक… बस याद दिलाने कि "मैं तो यहीं थी, तुम्हीं भूले हो जी …" अब दीवारें गिरीं, छतें बहीं, लोग कहने लगे.. "हाय लुट गए, सब तवाह हो गया!" सरकार प्रशासन को दुहाई देते नहीं थकते कुछ राजनीति गरमाते नहीं भूलते । इधर.. नदी मुस्कराई..और धीरे से बोली.. "मैं तो वही कर रही हूँ, जो तुम्हारे बुज़ुर्ग बताते थे। तुम्हीं थे जो भूल बैठे, कि मैं मेहमान नहीं, मालकिन हूँ इस घाटी की…" अब भी वक्त है, नई पीढ़ी की सोच नदी को दुश्मन ...