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Showing posts from 2025

हम अपने छोटे बच्चों से बहुत ज्यादा उम्मीद कर रहे हैं .....

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  हम अपने छोटे बच्चों से बहुत ज्यादा उम्मीद कर रहे हैं .....   हम चाहते हैं की वो चुपचाप बैठे, सारे नियम याद रखे, अपनी भावनाओं पे नियंत्रण रखे और निरासा को वैसे ही संभाले .... जैसे कोई बड़ा संभालता है ..... लेकिन हम नहीं समझ पाते की उन्होंने अपने कपडे पहनना अभी-अभी सिखा है .... वे अभी बहुत छोटे हैं ....   उन्हें अभी भी लगता है की बिस्तर के निचे कोई भुत है और जुत्ते सही से पहनना कोई बड़ी बात नहीं है .... वे बार-बार कोई बात क्यूँ पूछते हैं? इशलिये नहीं की वो जिद्दी हैं बल्कि वो जिज्ञासु हैं .... वे छोटी-छोटी बातों पर रो पड़ते हैं .... इशलिये नहीं की वो बदमाश या जिद्दी है .... बल्कि उनके छोटे से संसार में वो बहुत बड़ी बात होती है .....   हम तब चिढ़ जाते हैं जब वो अपनी उम्र के हिसाब से बर्ताव करते हैं .... लेकिन शायद समस्या उनमे नहीं, हमारी उम्मीदों में है ....   इशलिये अगली बार जब वे किसी बात पर टूट जाएँ या रूठ जाएँ, जो हमें छोटी लगती है .... तो याद रखिये --- वो उनके लिए बहुत बड़ी बात है ..... उन्हें छोटा रहने दीजिये .... उन्हें वहीँ समझिये जहाँ वो है...

सच कहा ना ?

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  एक दिन सब ठीक हो जायेगा का इन्तेजार करते-करते आधी उम्र बीत गई ..... पर अब तक कुछ ठीक नहीं हुआ बल्कि और उलझ गई है जिंदगी .... खुद को दिलासा देते देते ना जाने कितनी ख्वाहिश कितनी उम्मीदें मर गई है मेरे अन्दर .... अब तो जिंदगी भी बोझ सी लगती है, बढ़ती उम्र और बदलते लोगों ने मेरे शोक मेरे सपने मेरी खुशियाँ सब छीन लिया है... अब तो कुछ चाहने की इछा ही नहीं रही .... सब्र करते-करते जिंदगी कब Feeling Less हो गई पता ही नहीं चला .... बचपन कितनी जल्दी गुजर गया, जवानी कैसे बीत रही है कुछ समझ ही नहीं आ रहा .... बस अब भी इशी उम्मीद पे जिए जा रहे हैं की एक दिन सब ठीक हो जायेगा ..... क्यूँ चल रही है ना, आप सब की ज़िंदगी भी ऐसे ही .... देखते हैं शायद एक दिन सब ठीक हो जाये .... क्यूंकि उम्मीद पर दुनिया कायम है ....

आत्महत्या से पहले लोग क्या सोंचते होंगे ?

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आखरी सोंच ..... सोंचते होंगे की शायद ये रात आखरी है .... या शायद सुबह अब आयेगी ही नहीं .... शायद यादों की गठरी को खोलते होंगे ... कभी हँसते होंगे कभी रोते होंगे ... वो गलियां वो चेहरे वो बातें .... सब आँखों में किसी फिल्म की तरह चलते होंगे  क्या कोई रोक लेगा ? क्या कोई पुकारेगा मेरा नाम ? या बस एक ख़ामोशी होगी ..... जो निगल जाएगी हर इल्जाम ? शायद सोंचते होंगे .... की अगर एक मौका और होता .... अगर कोई हाथ थम लेता .... अगर कोई कहता की --- “ तू ज़रूरी है ” पर अब अँधेरा बढ़ चूका है  और कदम रुकने को तयार नहीं .... शायद कहीं कोई उम्मीद होगी  पर इश दिल को अब एतबार नहीं ....

दर्द को थाम ले ....

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दर्द को थाम ले, वो पुड़िया बनाते हैं हम .... प्यास होठों पे लिये, दरिया बनाते हैं हम ...

मैंने माफ़ करके....

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मुझे नफ़रत करना कभी आया ही नहीं.... मैंने माफ़ करके....  हमेशा लोगों की ज़िंदगी से विदा ही ली है....

एक बार बिखरकर तो देखो....

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एक बार बिखरकर तो देखो... कितने समेटने वाले मिलते हैं....

नदी की याददाश्त....

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नदी की याददाश्त....  अक्सर बुज़ुर्ग कहते थे.. "नदी के पास घर मत बसाओ बेटा," वो अपना रास्ता कभी नहीं भूलती। आज की पीढ़ी कहे … "अब वो पुरानी बात है दादाजी, अब तो रिवर-व्यू  ही बिकते हैं, लॉन में झूले, और सेल्फी कॉर्नर भी होते हैं “ बुज़ुर्ग फिर चुप हो गए… शायद सोच लिया होगा.. जब तजुर्बा न बिकता हो, तो क्यों ज़ुबान थकाई जाए जी ? हमने नदियों को पत्थर पहनाए, रेत को सीमेंट से पाट दिया, जलधाराओं को गूगल मैप से हटाया, और नाम दे दिया  “रिवर व्यू… व्यास व्यू…” फिर एक दिन घनघोर  बारिश ने  पुरानी फाइलें खोल दीं.. नदी आई ,न नाराज़, न हिंसक… बस याद दिलाने कि "मैं तो यहीं थी, तुम्हीं भूले हो जी …" अब दीवारें गिरीं, छतें बहीं, लोग कहने लगे.. "हाय लुट गए, सब तवाह हो गया!" सरकार प्रशासन को दुहाई देते नहीं थकते  कुछ राजनीति गरमाते नहीं भूलते । इधर.. नदी मुस्कराई..और धीरे से बोली.. "मैं तो वही कर रही हूँ, जो तुम्हारे बुज़ुर्ग बताते थे। तुम्हीं थे जो भूल बैठे, कि मैं मेहमान नहीं,  मालकिन हूँ इस घाटी की…" अब भी वक्त है, नई पीढ़ी की सोच  नदी को दुश्मन ...