आत्महत्या से पहले लोग क्या सोंचते होंगे ?

आखरी सोंच .....

सोंचते होंगे की शायद ये रात आखरी है ....
या शायद सुबह अब आयेगी ही नहीं ....

शायद यादों की गठरी को खोलते होंगे ...
कभी हँसते होंगे कभी रोते होंगे ...
वो गलियां वो चेहरे वो बातें ....
सब आँखों में किसी फिल्म की तरह चलते होंगे 

क्या कोई रोक लेगा ?
क्या कोई पुकारेगा मेरा नाम ?
या बस एक ख़ामोशी होगी .....
जो निगल जाएगी हर इल्जाम ?

शायद सोंचते होंगे ....
की अगर एक मौका और होता ....
अगर कोई हाथ थम लेता ....
अगर कोई कहता की --- “ तू ज़रूरी है ”

पर अब अँधेरा बढ़ चूका है 
और कदम रुकने को तयार नहीं ....
शायद कहीं कोई उम्मीद होगी 
पर इश दिल को अब एतबार नहीं ....

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