हम अपने छोटे बच्चों से बहुत ज्यादा उम्मीद कर रहे हैं .....

 


हम अपने छोटे बच्चों से बहुत ज्यादा उम्मीद कर रहे हैं .....

 

हम चाहते हैं की वो चुपचाप बैठे, सारे नियम याद रखे, अपनी भावनाओं पे नियंत्रण रखे और निरासा को वैसे ही संभाले .... जैसे कोई बड़ा संभालता है ..... लेकिन हम नहीं समझ पाते की उन्होंने अपने कपडे पहनना अभी-अभी सिखा है .... वे अभी बहुत छोटे हैं ....

 

उन्हें अभी भी लगता है की बिस्तर के निचे कोई भुत है और जुत्ते सही से पहनना कोई बड़ी बात नहीं है .... वे बार-बार कोई बात क्यूँ पूछते हैं? इशलिये नहीं की वो जिद्दी हैं बल्कि वो जिज्ञासु हैं .... वे छोटी-छोटी बातों पर रो पड़ते हैं .... इशलिये नहीं की वो बदमाश या जिद्दी है .... बल्कि उनके छोटे से संसार में वो बहुत बड़ी बात होती है .....

 

हम तब चिढ़ जाते हैं जब वो अपनी उम्र के हिसाब से बर्ताव करते हैं .... लेकिन शायद समस्या उनमे नहीं, हमारी उम्मीदों में है ....

 

इशलिये अगली बार जब वे किसी बात पर टूट जाएँ या रूठ जाएँ, जो हमें छोटी लगती है .... तो याद रखिये --- वो उनके लिए बहुत बड़ी बात है .....

उन्हें छोटा रहने दीजिये .... उन्हें वहीँ समझिये जहाँ वो हैं .... ना की जहाँ हमें लगता है की उन्हें होना चाहिए ....

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