सच कहा ना ?
एक दिन सब ठीक हो जायेगा का इन्तेजार करते-करते आधी उम्र बीत गई .....
पर अब तक कुछ ठीक नहीं हुआ बल्कि और उलझ गई है जिंदगी ....
खुद को दिलासा देते देते ना जाने कितनी ख्वाहिश कितनी उम्मीदें मर गई है मेरे अन्दर ....
अब तो जिंदगी भी बोझ सी लगती है, बढ़ती उम्र और बदलते लोगों ने मेरे शोक मेरे सपने मेरी खुशियाँ सब छीन लिया है... अब तो कुछ चाहने की इछा ही नहीं रही ....
सब्र करते-करते जिंदगी कब Feeling Less हो गई पता ही नहीं चला ....
बचपन कितनी जल्दी गुजर गया, जवानी कैसे बीत रही है कुछ समझ ही नहीं आ रहा ....
बस अब भी इशी उम्मीद पे जिए जा रहे हैं की एक दिन सब ठीक हो जायेगा .....
क्यूँ चल रही है ना, आप सब की ज़िंदगी भी ऐसे ही .... देखते हैं शायद एक दिन सब ठीक हो जाये .... क्यूंकि उम्मीद पर दुनिया कायम है ....
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