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देखो हमारे ख्वाब कैसे बिखर गए ....

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    देखो हमारे ख्वाब कैसे बिखर गए , हाथ मै टिकट था मगर हम घर नही गए ।   सफर शुरू किया था की घर जायेंगे , ये किसने सोचा था की मर जायेंगे ।   रो रहा था बहुत परेशान था वह सबसे पूछ रहा था , एक बाप लाशों के ढेर में अपना बेटा ढूँढ रहा था।

शायद जिंदगी ईसीको कहेते है.....

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दिल के टूटने पर भी हँसना ..... शायद जिंदादिली ईसीको कहेते है.... ठोकर लगने पर भी मंजिल तक भटकना.... शायद तलाश ईसीको कहेते है .... किसीको चाहकर भी न पाना.... शायद चाहत ईसीको कहेते है.... टूटे खंडहरमें बिना तेल के दिया जलाना.... शायद उम्मीद ईसीको कहेते है.... गिरजाने पर भी फिरसे खडा होना..... शायद हिम्मत ईसीको कहेते है.... और ये उम्मीद, हिम्मत, चाहत, तलाश... शायद जिंदगी ईसीको कहेते है...!!  

कभी रो कर समझौता कर लिया...

 कभी रो कर समझौता कर लिया... तो कभी हंस कर ख्वाहिशों को मार गए... लोग समझते रहें, हमें कद्र नहीं रिश्तों की... और हम रिश्ते बचाते-बचाते ख़ुद से ही हार गए....

मैं 1983 का प्रोडक्ट हूँ साहब...

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  मैं 1983 का प्रोडक्ट हूँ साहब... मैंने एनर्जी के लिए रूहअफजा से लेकर रेड बुल तक का सफर तय किया है। माचिस की डब्बी वाले फोन से स्मार्टफोन तक का सफर तय किया है। मै वो समय हूँ जब तरबूज बहुत ही बड़ा और गोलाकार होता था पर अब तो अजीब सा लम्बा हो गया है। मैंने चाचा चौधरी से लेकर सपना चौधरी तक का सफर तय किया है। कच्चे घरों से पक्के मकानों तक का सफर... अन्तर्देशी कागज से लेकर वाट्सएप मैसेज तक का...किया है। टांके लगी निक्कर से जींस तक का सफर...किया है। मैंने बालों में सरसों के तेल से लेकर जैल तक का सफर तय किया है। चूल्हे की रोटी में लगी राख़ का भी स्वाद लिया है तो पिज़ा ओर बर्गर भी। मैंने दूरदर्शन से लेकर 500 निजी चैनल तक का सफर तय किया है। मैंने खट्टे मीठे बेरों से लेकर कीवी तक का सफर तय किया है। संतरे की गोली से किंडर जोय तक का सफर तय किया है। आज की पीढ़ी का दम तोड़ता हुआ बचपन में देख रहा हूं लेकिन आज की पीढ़ी मेरे समय के बचपन की कल्पना भी नहीं कर सकती। मैंने ब्लैक एंड व्हाइट समय में भी रंगीन बचपन जिया है।💞

एक कड़वा सच .....

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  बकरी के बच्चे पाले तो देने की हिम्मत नहीं होती.... शादी में माँ बाप तुम्हें अपनी बेटी दे देते हैं... तुम्हारी नस्ल बढ़ाने के लिए.... उनके सामने नज़र और आवाज़ किस हक्क से उठा सकते हो....

चार दिन गायब होकर देख लीजिए, लोग आपको भूल जाएंगे।

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चार दिन गायब होकर देख लीजिए, लोग आपको भूल जाएंगे। इंसान सारी जिंदगी इस धोखे में रहता है कि वह लोगों के लिए अहम है। लेकिन हकीकत यह है कि आपके होने न होने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। जिसकी जितनी जरूरत होती है, उसकी उतनी ही अहमियत होती है। इसलिए खुद पर काम करना शुरू करों लोगों को आपसे नहीं अपने स्वार्थ के लिए आपसे मतलब है।