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पैसा मर्द होता है..😑

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  क्या लगता है मैंने एक दिन खुद से पूछा, पूछा कि क्या सच में आदमी मर्द होता है.. फिर मैंने महसूस किया, हर वो शख़्स जो पैसा कमाना जानता है, दुनिया की नज़र में उसकी हैसियत, औकात कुछ अलग रही.... चाहे वो कोई भी रहा हो .... तब जाके ये बात में ठीक ठीक पता लगा कि आदमी मर्द नहीं होता, पैसा मर्द होता है..😑

हम अपने छोटे बच्चों से बहुत ज्यादा उम्मीद कर रहे हैं .....

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  हम अपने छोटे बच्चों से बहुत ज्यादा उम्मीद कर रहे हैं .....   हम चाहते हैं की वो चुपचाप बैठे, सारे नियम याद रखे, अपनी भावनाओं पे नियंत्रण रखे और निरासा को वैसे ही संभाले .... जैसे कोई बड़ा संभालता है ..... लेकिन हम नहीं समझ पाते की उन्होंने अपने कपडे पहनना अभी-अभी सिखा है .... वे अभी बहुत छोटे हैं ....   उन्हें अभी भी लगता है की बिस्तर के निचे कोई भुत है और जुत्ते सही से पहनना कोई बड़ी बात नहीं है .... वे बार-बार कोई बात क्यूँ पूछते हैं? इशलिये नहीं की वो जिद्दी हैं बल्कि वो जिज्ञासु हैं .... वे छोटी-छोटी बातों पर रो पड़ते हैं .... इशलिये नहीं की वो बदमाश या जिद्दी है .... बल्कि उनके छोटे से संसार में वो बहुत बड़ी बात होती है .....   हम तब चिढ़ जाते हैं जब वो अपनी उम्र के हिसाब से बर्ताव करते हैं .... लेकिन शायद समस्या उनमे नहीं, हमारी उम्मीदों में है ....   इशलिये अगली बार जब वे किसी बात पर टूट जाएँ या रूठ जाएँ, जो हमें छोटी लगती है .... तो याद रखिये --- वो उनके लिए बहुत बड़ी बात है ..... उन्हें छोटा रहने दीजिये .... उन्हें वहीँ समझिये जहाँ वो है...

सच कहा ना ?

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  एक दिन सब ठीक हो जायेगा का इन्तेजार करते-करते आधी उम्र बीत गई ..... पर अब तक कुछ ठीक नहीं हुआ बल्कि और उलझ गई है जिंदगी .... खुद को दिलासा देते देते ना जाने कितनी ख्वाहिश कितनी उम्मीदें मर गई है मेरे अन्दर .... अब तो जिंदगी भी बोझ सी लगती है, बढ़ती उम्र और बदलते लोगों ने मेरे शोक मेरे सपने मेरी खुशियाँ सब छीन लिया है... अब तो कुछ चाहने की इछा ही नहीं रही .... सब्र करते-करते जिंदगी कब Feeling Less हो गई पता ही नहीं चला .... बचपन कितनी जल्दी गुजर गया, जवानी कैसे बीत रही है कुछ समझ ही नहीं आ रहा .... बस अब भी इशी उम्मीद पे जिए जा रहे हैं की एक दिन सब ठीक हो जायेगा ..... क्यूँ चल रही है ना, आप सब की ज़िंदगी भी ऐसे ही .... देखते हैं शायद एक दिन सब ठीक हो जाये .... क्यूंकि उम्मीद पर दुनिया कायम है ....

आत्महत्या से पहले लोग क्या सोंचते होंगे ?

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आखरी सोंच ..... सोंचते होंगे की शायद ये रात आखरी है .... या शायद सुबह अब आयेगी ही नहीं .... शायद यादों की गठरी को खोलते होंगे ... कभी हँसते होंगे कभी रोते होंगे ... वो गलियां वो चेहरे वो बातें .... सब आँखों में किसी फिल्म की तरह चलते होंगे  क्या कोई रोक लेगा ? क्या कोई पुकारेगा मेरा नाम ? या बस एक ख़ामोशी होगी ..... जो निगल जाएगी हर इल्जाम ? शायद सोंचते होंगे .... की अगर एक मौका और होता .... अगर कोई हाथ थम लेता .... अगर कोई कहता की --- “ तू ज़रूरी है ” पर अब अँधेरा बढ़ चूका है  और कदम रुकने को तयार नहीं .... शायद कहीं कोई उम्मीद होगी  पर इश दिल को अब एतबार नहीं ....

दर्द को थाम ले ....

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दर्द को थाम ले, वो पुड़िया बनाते हैं हम .... प्यास होठों पे लिये, दरिया बनाते हैं हम ...

मैंने माफ़ करके....

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मुझे नफ़रत करना कभी आया ही नहीं.... मैंने माफ़ करके....  हमेशा लोगों की ज़िंदगी से विदा ही ली है....

एक बार बिखरकर तो देखो....

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एक बार बिखरकर तो देखो... कितने समेटने वाले मिलते हैं....