18 दिन के युद्ध ने, द्रोपदी की उम्र को 80 वर्ष जैसा कर दिया था ... शारीरिक रूप से भी और मानसिक रूप से भी शहर में चारों तरफ़ विधवाओं का बाहुल्य था.. पुरुष इक्का-दुक्का ही दिखाई पड़ता था अनाथ बच्चे घूमते दिखाई पड़ते थे और उन सबकी वह महारानी द्रौपदी हस्तिनापुर के महल में निश्चेष्ट बैठी हुई शून्य को निहार रही थी । तभी, श्रीकृष्ण कक्ष में दाखिल होते हैं द्रौपदी कृष्ण को देखते ही दौड़कर उनसे लिपट जाती है ... कृष्ण उसके सिर को सहलाते रहते हैं और रोने देते हैं थोड़ी देर में, उसे खुद से अलग करके समीप के पलंग पर बैठा देते हैं । द्रोपदी : यह क्या हो गया सखा ?? ऐसा तो मैंने नहीं सोचा था । कृष्ण : नियति बहुत क्रूर होती है पांचाली.. वह हमारे सोचने के अनुरूप नहीं चलती ! वह हमारे कर्मों को परिणामों में बदल देती है.. तुम प्रतिशोध लेना चाहती थी और, तुम सफल हुई, द्रौपदी ! तुम्हारा प्रतिशोध पूरा हुआ... सिर्फ दुर्योधन और दुशासन ही नहीं, सारे कौरव समाप्त हो गए तुम्हें तो प्रसन्न होना चाहिए ! द्रोपदी: सखा,...