एक युवक की विनती – बुद्ध की शिक्षा

एक युवक की विनती – बुद्ध की शिक्षा

एक दिन एक युवक बुद्ध के पास गया. युवक बहुत ही उदास था, उस युवक की उदासी को देखकर महात्मा बुद्ध ने उसके उदासी का कारण पुछा. युवक ने बुद्ध को बताया की हाल ही में उसके पिता का निधन हुआ हैं, और अब वह उनके मरने के बाद उनके क्रिया कर्म(अनुष्ठान) को इस ढंग से करन चाहता हैं कि उसके पिता के कर्म चाहे अच्छे हो या बुरे, उसके पिता की आत्मा स्वर्ग में जाये.

वह युवक बुद्ध से कहता हैं की इस प्रार्थना से मैं किसी पंडित के पास जा रहा था लेकिन मैंने आपके पास आने का निश्चय किया. मैं चाहता हूँ की आप मुझे बताये कि मैं किस प्रकार उनका क्रिया कर्म(अनुष्ठान) करू ताकि उनकी आत्मा हमेशा के लिए परमात्मा में मिल जाये.

बुद्ध उस युवक को ध्यान से सुन रहे थे. बुद्ध ने उस युवक से कहा – बाज़ार जाओ और दो मिटटी के बर्तन(घड़े) लेकर आओ. साथ में कुछ मक्खन और कुछ कंकड़ भी लेकर आना.

वह युवक गया और बाजार से दो मिटटी के घड़े खरीद कर लाया, यह सोच कर कि यह कोई अनुष्ठान का हिस्सा होगा. बुद्ध के सामने उसने उन दोनों घड़े को माखन और कंकड़ से पूरा भर दिया. अब बुद्ध ने कहा की इन दोनों घडो को किसी तालाब के पास रख दो.
 

अब बुद्ध ने उस युवक से एक लकड़ी मंगवाई. उस युवक को आदेश दिया की तुम इस लकड़ी से इन घड़ों को फोड़ दो. बुद्ध के कहे अनुसार उस व्यक्ति ने दोनों घड़ों को फोड़ दिया. और देखो तुम्हारे पिताजी का अनुष्ठान हो गया. उस युवक ने देखा कि मक्खन चारों और फ़ैल गया था, जबकि कंकड़ नीचे मटके के पैंदे में पड़े रहे.

बुद्ध ने कहा की मैंने यह कई बार किया हैं. अब तुम अपने सभी पंडितो को बुलाकर लाओ, और उनसे कहो की आकर प्रार्थना करें की कंकड़ चारों और फ़ैल जाओ और मक्खन पैंदे में आ जाये.

उस युवक ने कहा की हे बुद्ध ये आप क्या मजाक कर रहे हैं? ये कभी संभव नहीं हैं. यह प्रकृति के नियम के खिलाफ हैं. कंकड़ मक्खन से भारी हैं जो कभी भी पानी में तैर नहीं सकते हैं, जब पानी तैर नहीं सकते तो भला ये चारों और कैसे फ़ैल सकते हैं.

बुद्ध ने कहा – हे युवक, तुम प्रकृति के नियमो को भली भांति जानते हो, पर तुम यह नहीं जानते हो की यह सभी जगह पर समान रूप से लागु होता हैं.

यदि तुम्हारे पिताजी के जीवन के कर्म अगर गलत यानि कंकड़ की भांति रहे होंगे तो निश्चित ही वह हमेशा नीचे ही रहेंगे कोई भी उनको खीचकर ऊपर नहीं ला सकता हैं. लेकिन यदि उनके जीवन के कर्म की गतिविधियाँ सकारात्मक रही होंगी तो हमेशा वह सबसे ऊपर ही रहेगी.

सीख – हमारी मुसीबतें को लेकर कभी कभी हम यह सोचने लगते हैं की कोई अदृश्य शक्ति उनका संबल करेगी, लेकिन जब तक हम अपने व्यवहार(कर्म के प्रति) में बदलाव नहीं करेंगे तब तक उसका कोई हल नहीं निकलेगा.

हमको यह जानना चाहिए की प्रकृति का यह सनातन नियम हैं कि – फल हमेशा कर्म पर निर्भर करता हैं. इसलिए कर्म को लेकर हमेशा सावधान रहना चाहिए.

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