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Showing posts from March, 2022

मास्टरपीस ...

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मेरी वो काली स्लेट याद है तुम्हें? वही जिसके कोनों पर मेटल लगी थी, जिन्हें जंग खाये जा रही थी । गोद में रखकर, छुपाकर उसपर कुछ लिख रही थी तुम शायद । बिल्कुल वैसे ही जैसे किसी बच्चे को गोद में लेते हैं । पूछने पर तुमने कहा था 'मास्टरपीस' बना रही हो।  पता नहीं क्यों मुझसे ये देखा नहीं गया, और मैंने ज़िद कर दी कि "वापस करो मेरी स्लेट ..ये मेरी है... तुमने क्यों ली?" और ये कहते हुए मैंने अपनी ओर जोर से खींचा था। उस कोने से तुम्हारी हथेली थोड़ी कट भी गयी थी,शायद। और फिर गुस्से में तुमने सब कुछ मिटा डाला...जो लिखा था वो, और जो हम लिख सकते थे वो भी। हालाँकि जो था वो पूरी तरह मिट तो नहीं पाया और स्लेट भद्दी सी हो गयी थी...काले आसमान पर राख के तूफान सी। तब से लेकर आजतक उसपे कुछ लिखा नहीं मैंने और ना ही किसी और को लिखने दिया। कोई लिखता भी कैसे,मैंने इसे छुपा जो रखा था । वो स्लेट आज भी वैसी ही, थोड़ी सफेद,थोड़ी काली छोड़ी हुई है।  और सबकुछ 'काश' पे रुक गया है। काश! मैंने उस दिन तुम्हारा हाथ पकड़ लिया होता। काश! मैंने तुम्हें मिटाने नहीं दिया होता। काश! तुमने हल्के हाथों से मिटा

सुनो न......

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  ये जो तुम हमेशा कहती हो की, हम तुम्हें समझते नहीं हैं, क्या तुम्हें सच में ऐसा लगता है? क्या तुम्हें नहीं लगता कि तुम्हें हमसे ज़्यादा कोई नहीं समझ सका...? अपना ग़म ज़ाहिर कर देना आसान है, मुश्किल है तो उस ग़म को भीतर छुपा के रखना, तुम तो सबकुछ कह देती हो, ग़ुस्सा आए तो बात भी ना करती हो, गुस्से मे आखें भी दिखाती हो 😌मगर हम क्या करें? जब गुस्सा करती हो तो मैं सहेम सा जाता हूँ,   "बात बात पर झगड़ता नहीं हूं ।" तो कैसे ज़ाहिर करें ख़ुद को! तुम्हारा एक छोटा सा सेंटिमेंटल मैसेज आता है, और हमारी पूरी रात सिर्फ़ करवटें बदलने में बीत जाती है... मगर हम उसका जवाब नहीं देते हैं, जानती हो क्यों? फिर तुम्हारा सर दर्द होगा तुम्हारा तबियत ख़राब हो जाता है । और हमसे नहीं देखी जाता तुम्हारा सर दर्द ओर तुम्हे बीमार, तो क्या करू? कभी -कभी हमारा भी मन करता है कि भाग चलें तुम्हारे संग कहीं दूर, इतनी दूर जहाँ हम भी सड़कों पर नाच सके! इतनी दूर जहाँ हम तुम्हारे साथ गोलगप्पे खा सके! इतनी दूर जहाँ हम तुम्हारे कांधे पर सिर रख के चंद पल बिता सके ! इतनी दूर जहाँ हम तुम्हें बता सके की ये रूड बिहेवियर, ये ईगो म

निष्ठुर ...

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––– ट्रेन में समय गुजारने के लिए बगल में बैठे अधेड़ से बात करना शुरु किया नीति ने " आप कहाँ तक जाएंगे अंकल। "  " इलाहाबाद तक । "  उसने ठिठोली की " कुंभ लगने में तो अभी बहुत टाइम है । "  " वहीं तट पर इंतजार करेंगे कुंभ का, बेटी ब्याह लिए , अब तो जीवन में कुंभ नहाना ही रह गया है । "  " अच्छा परिवार में कौन कौन है । " " कोई नहीं बस बेटी थी पिछले हफ्ते उसका ब्याह कर दिया । " " अच्छा ! दामाद क्या करता है । " " उ हमरे बेटी से पियार करता है । "  कहते हुए उसने आंखें पंखे पर टिका दी । थोड़ी देर की चुप्पी के बाद जब नीति ने उसके कंधे पर हाथ रखकर धीरे से कहा " दुख बांटने से कम होता है अंकल " तो मानों भाखडा बांध के चौबीसो गेट एक साथ खुल गए । थोडा संयत होने के बाद उसने बताया " बेटी ने कहा अगर उससे शादी नहीं हुई तो जहर खा लेगी । बिन मां की बच्ची थी उसकी खुशी के लिए सबकुछ जानते हुए भी मैंने हां कह दी  और पूरे धूमधाम से शादी की व्यवस्था में जुट गया जो कुछ मेरे पास था सब गहने जेवर आवभगत की तैयारियों में लगा दिया

गोल गप्पे ...

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  तेज बरसात और चप्पल टूट गयी है सामने राजू मोची का बोर्ड है राहत  की सांस लेती हूँ चप्पल सिल गयी है कितना हुआ ? बोलता नहीं..  मेरी ओर देखता है शरमाया सा धीरे से कहता है गोलगप्पे खिला देंगी पैसे तो दीदी ले लेती है.. मान जाती हूँ दस बारह साल का राजू खुश हो जाता है .. अब जब भी उधर से गुजरती हूँ बहाने से थमती हूँ और हम दोनों बाते करते है   गोलगप्पे भी खाते है अब हम  दोस्त है तरह तरह के सवाल पूछता है पढ़ना  चाहता है ... एक शाम उसकी बातें रोक कर बताती हूँ दो दिन बाद जा रही हूँ अपने बेटे के पास .. साल भर बाद ही वापिस आना होगा ये भी की कल मेरा जन्म दिन है जो मनाती नहीं हूँ ... घर आ जाती हूँ जन्मदिन की सुबह .. अखबार में लिपटी गिफ्ट दरवाजे से देकर झट चला जाता है   हरे रंग की सूती साड़ी है .. पहनती हूँ .. उसकी सिली चप्पल भी . चल देती हूँ . दुकान पर चुपचाप बैठा है मुझे देखते ही पास आता है हंसता है .. तारीफ़ करता है तुमने कैसे जाना मेरी पसंद का रंग ? पूछती हूँ .. “ माँ को यही रंग अच्छा लगता था “  पानी बरस रहा है हम दोनों के चेहरे भीगे है मालूम नहीं  बरसात है या आंसू ....

चार मिले चौंसठ खिले ....

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  "चार मिले चौंसठ खिले, बीस रहे कर जोड़! प्रेमी सज्जन दो मिले, खिल गए सात करोड़!!" मुझसे एक बुजुर्गवार ने इस कहावत का अर्थ पूछा, काफी सोच- विचार के बाद भी जब मैं बता नहीं पाया, तो मैंने कहा – "बाबा आप ही बताइए, मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा !" तब एक रहस्यमयी मुस्कान के साथ बाबा समझाने लगे – "देखो बेटे, यह बड़े रहस्य की बात है... चार मिले – मतलब जब भी कोई मिलता है, तो सबसे पहले आपस में दोनों की आंखें मिलती हैं, इसलिए कहा, चार मिले ! फिर कहा, चौसठ खिले, यानि दोनों के बत्तीस-बत्तीस दांत – कुल मिलाकर चौंसठ हो गए, इस तरह “चार मिले, चौंसठ खिले” हुआ! “बीस रहे कर जोड़” – दोनों हाथों की दस उंगलियां – दोनों व्यक्तियों की 20 हुईं – बीसों मिलकर ही एक, दूसरे को प्रणाम की मुद्रा में हाथ बरबस उठ ही जाते हैं!" “प्रेमी सज्जन दो मिले” – जब दो आत्मीय जन मिलें – यह बड़े रहस्य की बात है – क्योंकि मिलने वालों में आत्मीयता नहीं हुई तो “न बीस रहे कर जोड़” होगा और न "चौंसठ खिलेंगे” उन्होंने आगे कहा, "वैसे तो शरीर में रोम की गिनती करना असम्भव है, लेकिन मोटा-मोटा साढ़े तीन करोड़

पिता का आशीर्वाद ....

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  एक व्यापारी की यह सत्य घटना है। जब मृत्यु का समय सन्निकट आया तो पिता ने अपने एकमात्र पुत्र धनपाल को बुलाकर कहा कि.. बेटा मेरे पास धनसंपत्ति नहीं है कि मैं तुम्हें विरासत में दूं। पर मैंने जीवनभर सच्चाई और प्रामाणिकता से काम किया है। तो मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं कि, तुम जीवन में बहुत सुखी रहोगे और धूल को भी हाथ लगाओगे तो वह सोना बन जायेगी। बेटे ने सिर झुकाकर पिताजी के पैर छुए। पिता ने सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया और संतोष से अपने प्राण त्याग कर दिए। अब घर का खर्च बेटे धनपाल को संभालना था। उसने एक छोटी सी ठेला गाड़ी पर अपना व्यापार शुरू किया। धीरे धीरे व्यापार बढ़ने लगा। एक छोटी सी दुकान ले ली। व्यापार और बढ़ा। अब नगर के संपन्न लोगों में उसकी गिनती होने लगी। उसको विश्वास था कि यह सब मेरे पिता के आशीर्वाद का ही फल है। क्योंकि, उन्होंने जीवन में दु:ख उठाया, पर कभी धैर्य नहीं छोड़ा, श्रद्धा नहीं छोड़ी, प्रामाणिकता नहीं छोड़ी इसलिए उनकी वाणी में बल था। और उनके आशीर्वाद फलीभूत हुए। और मैं सुखी हुआ। उसके मुंह से बारबार यह बात निकलती थी। एक दिन एक मित्र ने पूछा: तुम्हारे पिता में इतना बल

संसार का नियम भी ऐसा ही है ...

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  एक परिवार था बेहद गरीब । घर में खाने को कुछ नहीं था। काफी सोचा की काम मिले मगर काम नहीं मिला। दो बच्चे थे, पत्नी थी। एक दिन उन्हें विचार आया कि इस गांव में काम मिलना मुश्किल है। चलो कहीं और चलते हैं। इस इरादे से वे एक दिन गांव छोड़कर चल दिये। रात का समय था, रास्ता भी जंगली था। सोचा वृक्ष के नीचे रात गुजारी जाये। आदमी ने अपने एक लड़के को लकड़ी चुनने तथा दूसरे को पानी लाने के लिए भेज दिया तथा पत्नी को चूल्हा बनाने के लिए कहा। और उसने जगह साफ कर दी। चारों ने अपने-अपने काम कर लिए। चूल्हा जलाया गया पानी गर्म होने लग गया। वृक्ष के ऊपर हंस रहता था वो सोचने लगा यह कैसा मूर्ख हैं इन्होनें चूल्हा तो जला दिया मगर इन के पास पकाने को तो है ही नहीं कुछ भी। हंस ने उनसे पूछा - तुम्हारे पास पकाने को क्या है ? वो आदमी बोला-तुझे मार के खायेंगे। हंस बोला - मुझे क्यों मारोगे ? आदमी बोला - हमारे पास न पैसा है और न ही सामान तो क्या करें ? हंस सोच में पड़ गया। इन्होनें चूल्हा भी जला लिया है। सब कर्मशील हैं, मुझे तो यह खा ही जायेंगे तो हंस बोला - अगर मैं आपको धन दे दूं तो मुझे छोड़ दोगे। घर का स्वामी बोला - हां,

जब भगवान ने बनाई स्त्री ..

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जब भगवान स्त्री की रचना कर रहे थे तब उन्हें काफी समय लग गया। छठा दिन था और स्त्री की रचना अभी अधूरी थी। इसलिए देवदूत ने पूछा- भगवान, आप इसमें इतना समय क्यों ले रहे हो? भगवान ने जवाब दिया- क्या तुमने इसके सारे गुणधर्म देखे हैं, जो इसकी रचना के लिए जरूरी हैं। यह हर प्रकार की परिस्थितियों को संभाल सकती है। यह एकसाथ अपने सभी बच्चों को संभाल सकती है एवं खुश रख सकती है। यह अपने प्यार से घुटनों की खरोंच से लेकर टूटे दिल के घाव भी भर सकती है। यह सब सिर्फ अपने दो हाथों से कर सकती है। इसमें सबसे बड़ा गुणधर्म यह है कि बीमार होने पर अपना ख्याल खुद रख सकती है एवं 18 घंटे काम भी कर सकती है। देवदूत चकित रह गया और आश्चर्य से पूछा कि भगवान क्या यह सब दो हाथों से कर पाना संभव है? भगवान ने कहा- यह मेरी अद्भुत रचना है। देवदूत ने नजदीक जाकर स्त्री को हाथ लगाया और कहा- भगवान यह तो बहुत नाजुक है। भगवान ने कहा- हां, यह बाहर से बहुत ही नाजुक है, मगर इसे अंदर से बहुत मजबूत बनाया है। इसमें हर परिस्थितियों का संभालने की ताकत है। यह कोमल है पर कमजोर नहीं है। देवदूत ने पूछा- क्या यह सोच भी सकती है? भगवान ने कहा- यह

यार लड़कियों ...

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  यार लड़कियों तुम न ! लड़कों की बराबरी करने की कोशिश कभी मत करना ! इसलिए नहीं, क्योंकि तुम लड़कों की बराबरी कर नहीं सकती, बल्कि इसलिए, क्योंकि तुम हम लड़कों से बहुत बेहतर हो. और ये सिर्फ़ मैं नहीं कह रहा ... ऐसा साइंस कहता है. स्टैट्स कहते हैं. और तमाम हज़ार साल का इंसानी तजुर्बा कहता है. इसलिए मेरी तुमसे गुज़ारिश है कि यार प्लीज़ ! तुम हम लड़कों जैसा बनकर दुनिया को कम-क़ाबिल और अधिक-बोरिंग मत बना देना. - साइंस और स्टैट्स की बात करें? तुम्हें मालूम भी नहीं होगा कि तुम्हारा दिल लड़कों से अधिक तेज़ धड़कता है. हर मिनट पूरे 8 बीट्स अधिक. मिनट में 78 बार. शायद इसीलिए तुम हम लड़कों से अधिक प्यारी और दिल-क़श होती हो. पास से गुज़र जाती हो तो हमारा दिल धक् से हो जाता है (शायद इसीलिए हम तुमसे 8 बीट्स कम रह जाते हैं) - जानती हो? दसवीं और बारहवीं में लडकियाँ हर इक साल लड़कों से बेहतर ग्रेड्स लाती हैं, और ये स्टैट्स सिर्फ़ हमारे देश का ही नहीं है. ग्लोबल है. ग़र अब जो कोई तुम्हारे IQ का मज़ाक उड़ाए या फिर ये कहे कि लडकियाँ ख़राब ड्राइवर होती हैं तो ये फैक्ट उसके मुह पर मारना. इन फैक्ट ड्राइविंग तो

नारी अबला नही सबला बनो....

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  दुर्योधन ने उस अबला स्त्री को दिखा कर अपनी जंघा ठोकी थी, तो उसकी जंघा तोड़ी गयी। दु:शासन ने छाती ठोकी तो उसकी छाती फाड़ दी गयी। महारथी कर्ण ने एक असहाय स्त्री के अपमान का समर्थन किया, तो श्रीकृष्ण ने असहाय दशा में ही उसका वध कराया। भीष्म ने यदि प्रतिज्ञा में बंध कर एक स्त्री के अपमान को देखने और सहन करने का पाप किया, तो असँख्य तीरों में बिंध कर अपने पूरे कुल को एक-एक कर मरते हुए भी देखा...। भारत का कोई बुजुर्ग अपने सामने अपने बच्चों को मरते देखना नहीं चाहता, पर भीष्म अपने सामने चार पीढ़ियों को मरते देखते रहे। जब-तक सब देख नहीं लिया, तब-तक मर भी न सके... यही उनका दण्ड था। धृतराष्ट्र का दोष था पुत्रमोह, तो सौ पुत्रों के शव को कंधा देने का दण्ड मिला उन्हें। सौ हाथियों के बराबर बल वाला धृतराष्ट्र सिवाय रोने के और कुछ नहीं कर सका। दण्ड केवल कौरव दल को ही नहीं मिला था। दण्ड पांडवों को भी मिला। द्रौपदी ने वरमाला अर्जुन के गले में डाली थी, सो उनकी रक्षा का दायित्व सबसे अधिक अर्जुन पर था। अर्जुन यदि चुपचाप उनका अपमान देखते रहे, तो सबसे कठोर दण्ड भी उन्ही को मिला। अर्जुन पितामह भीष्म को सबसे अधिक

The काश्मीर फाइल्स ...

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  आज दोपहर बाद कश्मीर फाइल्स देखने गया,,कला,नाटक, ड्रामा, थियेटर का एक अपना दृष्टिकोण होता है, सामान्य आमने सामने की झड़प में जो हीरो आधी मिनट में हांफ जाए वह भी फ़िल्म में पांव घुमाकर धरती पर मार दे तो पचास सो आदमी तो चारों तरफ उड़ उड़कर जा गिरेंगे.... सीता वियोग में प्रभु श्रीराम उतने नहीं रोए होंगे जितने स्टेज पर नाटक में श्रीराम बने कलाकार रोते हैं चीख चीख़कर.... ड्रामे में राक्षस बनने वाला व्यक्ति इतना हंसता है कि संवाद भी सुनाई नहीं देते उसके, चेलेंज से कह रहा हूँ कि एक साधारण से बांस के बने धनुष पर प्रत्यंचा न चढ़ा पाएंगे प्रभास , लेकिन बाहुबली में तीन तीन बाण एकसाथ चला रहे हैं, यानी कई हज़ार नाटक फिल्में आदि देखने के बाद सो बातों की एक बात यह कह रहा हूँ  कि सबकुछ बहुत बढ़ा चढ़ाकर दिखाया जाता है.... लेकिन मेरे तमाम देखे जाने हुए में the काश्मीर फाइल्स पहली ऐसी फ़िल्म है जो बहाव के विपरीत गई है, यानी कश्मीर में हिंदुओं पर जो गुजरा, उनके ऊपर गुजरी यातनाएं, डर से थर थर कांपते कलेजे, बलात्कर की पीड़ा और चीखों से गूंजता अम्बर, घरों से उठती लपटें, मुर्गे की तरह भुने हुए गोश्त बनी पड़ी हिंदुओं

ज़िंदगी मुट्ठी में रेत की तरह होती है ...

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  कल मैं दुकान से जल्दी घर चला आया। आम तौर पर रात में 10 बजे के बाद आता हूं, कल 8 बजे ही चला आया। सोचा था घर जाकर थोड़ी देर पत्नी से बातें करूंगा, फिर कहूंगा कि कहीं बाहर खाना खाने चलते हैं। बहुत साल पहले, , हम ऐसा करते थे। घर आया तो पत्नी टीवी देख रही थी। मुझे लगा कि जब तक वो ये वाला सीरियल देख रही है, मैं कम्यूटर पर कुछ मेल चेक कर लूं। मैं मेल चेक करने लगा, कुछ देर बाद पत्नी चाय लेकर आई, तो मैं चाय पीता हुआ दुकान के काम करने लगा। अब मन में था कि पत्नी के साथ बैठ कर बातें करूंगा, फिर खाना खाने बाहर जाऊंगा, पर कब 8 से 11 बज गए, पता ही नहीं चला। पत्नी ने वहीं टेबल पर खाना लगा दिया, मैं चुपचाप खाना खाने लगा। खाना खाते हुए मैंने कहा कि खा कर हम लोग नीचे टहलने चलेंगे, गप करेंगे। पत्नी खुश हो गई। हम खाना खाते रहे, इस बीच मेरी पसंद का सीरियल आने लगा और मैं खाते-खाते सीरियल में डूब गया। सीरियल देखते हुए सोफा पर ही मैं सो गया था। जब नींद खुली तब आधी रात हो चुकी थी। बहुत अफसोस हुआ। मन में सोच कर घर आया था कि जल्दी आने का फायदा उठाते हुए आज कुछ समय पत्नी के साथ बिताऊंगा। पर यहां तो शाम क्या आधी

एक मुहावरा है ....

एक मुहावरा है ..... अल्लाह मेहरबान तो गदहा पहलवान।  सवाल उठता है कि पहलवानी से गदहे का क्या ताल्लुक। पहलवान आदमी होता है जानवर नहीं। दरअसल,  मूल मुहावरे में  गदहा नहीं गदा शब्द था। फारसी में गदा का अर्थ  होता है भिखारी। अर्थात यदि अल्लाह मेहरबानी करें तो  कमजोर भिखारी भी ताकतवर हो सकता है। हिन्दी में गदा शब्द दूसरे अर्थ में प्रचलित है, आमलोग फारसी के गदा शब्द से परिचित नहीं थे। गदहा प्रत्यक्ष था।  इसलिए गदा के बदले गदहा प्रचलित हो गया। इसी तरह एक मुहावरा है अक्ल बड़ी या भैंस अक्ल से भैस का क्या रिश्ता। दरअसल, इस मुहावरे में भैंस नहीं वयस शब्द था। वयस का अर्थ होता है उम्र। मुहावरे का अर्थ था अक्ल बड़ी या उम्र।उच्चारण दोष के कारण वयस पहले वैस बना फिर  धीरे-धीरे भैंस में बदल गया और प्रचलित हो गया। मूल  मुहावरा था अक्ल  बड़ी या वयस। इसी वयस शब्द से बना है वयस्क। एक मुहावरा है ... धोबी का कुत्ता  न घर का न घाट का .... मूल मुहावरे में कुता नहीं कुतका शब्द था। कुतका लकड़ी की खूँटी को कहा जाता है जो घर के बाहर लगी रहती थी।  उस पर गंदे कपड़े लटकाए जाते थे। धोबी उस कुतके से गंदे कपड़े उठाकर घाट

प्रोटोकॉल को ना कहें।

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  भारत में सेवा करने वाले ब्रिटिश अधिकारियों को इंग्लैंड लौटने पर सार्वजनिक पद/जिम्मेदारी नहीं दी जाती थी।  तर्क यह था कि उन्होंने एक गुलाम राष्ट्र पर शासन किया है जिस जी वजह से उनके दृष्टिकोण और व्यवहार में फर्क आ गया होगा।  अगर उनको यहां ऐसी  जिम्मेदारी दी जाए, तो वह आजाद ब्रिटिश नागरिकों के साथ भी उसी तरह से ही व्यवहार करेंगे।  इस बात को समझने के लिए नीचे दिया गया वाक्य जरूर पढ़ें....  एक ब्रिटिश महिला जिसका पति ब्रिटिश शासन के दौरान पाकिस्तान और भारत में एक सिविल सेवा अधिकारी था।  महिला ने अपने जीवन के कई साल भारत के विभिन्न हिस्सों में बिताए।  अपनी वापसी पर उन्होंने अपने संस्मरणों पर आधारित एक सुंदर पुस्तक लिखी।  महिला ने लिखा कि जब मेरे पति एक जिले के डिप्टी कमिश्नर थे तो मेरा बेटा करीब चार साल का था और मेरी बेटी एक साल की थी। डिप्टी कलेक्टर को मिलने वाली कई एकड़ में बनी एक हवेली में रहते थे।  सैकड़ों लोग डीसी के घर और परिवार की सेवा में लगे रहते थे।  हर दिन पार्टियां होती थीं, जिले के बड़े जमींदार हमें अपने शिकार कार्यक्रमों में आमंत्रित करने में गर्व महसूस करते थे, और हम जिसके

समय का खेल ...

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  कौन बडा कौन छोटा जो कल था वो आज नही है और जो आज है वो कल नही ... 1998 में Kodak में 1,70,000 कर्मचारी काम करते थे और वो दुनिया का 85% फ़ोटो पेपर बेचते थे..चंद सालों में ही Digital photography ने उनको बाज़ार से बाहर कर दिया.. Kodak दिवालिया हो गयी और उनके सब कर्मचारी सड़क पे आ गए । HMT (घडी) BAJAJ (स्कूटर) DYNORA (टीवी) MURPHY (रेडियो) NOKIA (मोबाइल) RAJDOOT (बाईक) AMBASDOR (कार) मित्रों, इन सभी की गुणवक्ता में कोई कमी नहीं थी फिर भी बाजार से बाहर हो गए!! कारण...??? उन्होंने समय के साथ बदलाव नहीं किया.!! आपको अंदाजा है कि आने वाले 10 सालों में दुनिया पूरी तरह बदल जायेगी और आज चलने वाले 70 से 90% उद्योग बंद हो जायेंगे। चौथी औद्योगिक क्रान्ति में आपका स्वागत है... Uber सिर्फ एक software है। उनकी अपनी खुद की एक भी Car नहीं इसके बावजूद वो दुनिया की सबसे बड़ी Taxi Company है। Airbnb दुनिया की सबसे बड़ी Hotel Company है, जब कि उनके पास अपना खुद का एक भी होटल नहीं है। Paytm, ola cabs , oyo rooms जैसे अनेक उदाहरण हैं। US में अब युवा वकीलों के लिए कोई काम नहीं बचा है, क्यों कि IBM Watson नामक S

पांच सौ तेरे औऱ पांच सौ मेरे..

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  " पांच सौ तेरे औऱ पांच सौ मेरे.....सिर्फ़ दस लीटर की ही तो बात है मेरे भाई.... तेरे मालिक को कुछ भी पता नहीं चलेगा "......मुन्ना ने राजू के कंधे पर अपना हाथ रखते हुए उसे समझाना चाहा । दरअसल राजू एक बड़े साहब का ड्राइवर था औऱ वो गाड़ी की सर्विसिंग कराने मुन्ना के गैरेज में आया हुआ था । मुन्ना उससे बार बार गाड़ी से पेट्रोल निकाल कर बेचने के लिए कह रहा था । " अबे साले तेरी पगार ही कितनी है ? क्यों इतना ज़्यादा सोच रहा है ? मेरी बात सुन, फ़ायदे में रहेगा "...मुन्ना ने फ़िर राजू को समझाना चाहा । राजू सोच में पड़ गया । " बात तो तू सही ही बोल रहा है मेरे भाई , इस पांच सौ रुपए में तो मैं शाम को अपनी गुड़िया का जन्मदिन भी मना सकता हूँ......केक औऱ मिटाई के पैसे तो एक झटके में आ ही जाएंगे ".......चिंतित मुद्रा में राजू बोला । सुन मेरी बात , तुझसे पहले इस धन पशु साहब के जितने भी ड्राइवर थे, वे महीने में बीस तीस लीटर पेट्रोल तो ऐसे ही हवा कर देते थे । तू बेकार में ज़्यादा मत सोच ........मुन्ना ने फ़िर अपनी बात बढ़ाई । अबे तू जानता नहीं है ,इतने मोटे साहब लोगों को इन सब चीज़ों से

जंग सीमाओं पर नहीं, औरतों के शरीरों पर भी लड़ी जाती है ...

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  जंग सीमाओं पर नहीं, औरतों के शरीरों पर भी लड़ी जाती है ताकि मर्द अपनी हार का गुस्सा या जीत का जश्न मना सकें! "13 साल की थी, जब खेत पर जाते हुए जापानी सैनिकों ने मुझे उठा लिया और लॉरी में डालकर मुंह में मोजे ठूंस दिए, बदबूदार- ग्रीस और कीचड़ से सने हुए। फिर बारी-बारी से सबने मेरा रेप किया। कितनों ने, नहीं पता। मैं बेहोश हो चुकी थी। होश आया तो जापान के किसी हिस्से में थी। एक लंबे कमरे में तीन संकरे रोशनदान थे, जहां लगभग 400 कोरियन लड़कियां थीं। उसी रात पता लगा कि हमें 5 हजार से ज्यादा जापानी सैनिकों को ‘खुश करना’ है। यानी एक कोरियन लड़की को रोज 40 से ज्यादा मर्दों का रेप सहना है।” चोंग ओके सन (Chong Ok-sun) का ये बयान साल 1996 में यूनाइटेड नेशन्स की रिपोर्ट में छपा था। इस रिपोर्ट पर कभी खुलकर बात नहीं हुई। ये दरअसल शरीर का वो खुला हिस्सा था, जिसे छिपाए रखने में ही बेहतरी थी, वरना इंसानियत नंगी हो जाती। बात दूसरे विश्व युद्ध की है। जापान ताकतवर था। उसके लाखों सैनिक जंग लड़ रहे थे। राशन और गोला-बारूद तो उनके पास थे, लेकिन शरीर की जरूरत के लिए लड़कियां नहीं थीं। तो बेहद ऑर्गेनाइज्ड जा