गोल गप्पे ...
तेज बरसात और चप्पल टूट गयी है
सामने राजू मोची का बोर्ड है
राहत की सांस लेती हूँ
चप्पल सिल गयी है
कितना हुआ ?
बोलता नहीं.. मेरी ओर देखता है
शरमाया सा धीरे से कहता है
गोलगप्पे खिला देंगी
पैसे तो दीदी ले लेती है..
मान जाती हूँ
दस बारह साल का राजू
खुश हो जाता है ..
अब जब भी उधर से गुजरती हूँ
बहाने से थमती हूँ और हम दोनों
बाते करते है
गोलगप्पे भी खाते है
अब हम दोस्त है
तरह तरह के सवाल पूछता है
पढ़ना चाहता है ... एक शाम
उसकी बातें रोक कर बताती हूँ
दो दिन बाद जा रही हूँ
अपने बेटे के पास .. साल भर
बाद ही वापिस आना होगा
ये भी की कल मेरा जन्म दिन है
जो मनाती नहीं हूँ ...
घर आ जाती हूँ
जन्मदिन की सुबह .. अखबार में
लिपटी गिफ्ट दरवाजे से देकर
झट चला जाता है
हरे रंग की सूती साड़ी है ..
पहनती हूँ .. उसकी सिली चप्पल भी .
चल देती हूँ .
दुकान पर चुपचाप बैठा है
मुझे देखते ही पास आता है
हंसता है .. तारीफ़ करता है
तुमने कैसे जाना मेरी पसंद का रंग ?
पूछती हूँ ..
“ माँ को यही रंग अच्छा लगता था “
पानी बरस रहा है
हम दोनों के चेहरे भीगे है
मालूम नहीं बरसात है
या आंसू ....
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