सुनो न......

 


ये जो तुम हमेशा कहती हो की, हम तुम्हें समझते नहीं हैं, क्या तुम्हें सच में ऐसा लगता है?
क्या तुम्हें नहीं लगता कि तुम्हें हमसे ज़्यादा कोई नहीं समझ सका...?

अपना ग़म ज़ाहिर कर देना आसान है, मुश्किल है तो उस ग़म को भीतर छुपा के रखना,
तुम तो सबकुछ कह देती हो, ग़ुस्सा आए तो बात भी ना करती हो, गुस्से मे आखें भी दिखाती हो 😌मगर हम क्या करें?
जब गुस्सा करती हो तो मैं सहेम सा जाता हूँ,
 
"बात बात पर झगड़ता नहीं हूं ।"

तो कैसे ज़ाहिर करें ख़ुद को!

तुम्हारा एक छोटा सा सेंटिमेंटल मैसेज आता है, और हमारी पूरी रात सिर्फ़ करवटें बदलने में बीत जाती है... मगर हम उसका जवाब नहीं देते हैं, जानती हो क्यों?

फिर तुम्हारा सर दर्द होगा तुम्हारा तबियत ख़राब हो जाता है ।
और हमसे नहीं देखी जाता तुम्हारा सर दर्द ओर तुम्हे बीमार, तो क्या करू?

कभी -कभी हमारा भी मन करता है कि भाग चलें तुम्हारे संग कहीं दूर, इतनी दूर जहाँ हम भी सड़कों पर नाच सके!

इतनी दूर जहाँ हम तुम्हारे साथ गोलगप्पे खा सके! इतनी दूर जहाँ हम तुम्हारे कांधे पर सिर रख के चंद पल बिता सके !

इतनी दूर जहाँ हम तुम्हें बता सके की ये रूड बिहेवियर, ये ईगो में रहना ये सब झूठ है! इतनी दूर जहाँ हम तुम्हें ये सच बता सकें की हमारे अंदर छुपा बैठे है, एक बहुत ही नर्म,और मासूम सा बच्चा!

इतनी दूर जहाँ हम तुम्हें ये यक़ीन दिला सके की हम तुम्हें बहुत समझते है,
बस  समझा नहीं पाते!

मगर तुम कहती हो कैसे भागे इन ज़िम्मेदारियों को छोड़ कर? तुम तो लड़का हो ना, तुम तो ज़िम्मेदारियों का मतलब अच्छे से समझते हो ।

ओर आज तक समझता ही आ रही हूँ
कभी जिद ही नहीं किया,
ओर आज कहती हो, तुम मुझे समझ ही नहीं पाए...
सच कहती हो कभी नहीं समझ पाया तुम्हे,  जानती हो,
"तुम्हारे हर मुश्किलों के साथ,ओर सभी शर्तों के साथ  तुम्हे प्रेमी रहना स्वीकार किया है...

कितने काम है... सबके बीच मे कभी नहीं बात कर सकता हूं  कही बाहर रहूंगा तो मैसेज नहीं कर सकता, ऑफिस पर सबके सामने ... Meeting में सभी लोग होंगे तो कॉल मत करना मैं बात नहीं कर पाउंगा कहता हूं... अपनी तरफ से फ़ोन करूंगा ज़ब समय मिलेगा तो ही मेसेज पर बीच बीच मे बात होंगी तुम इंतजार करना ..

 बदले में क्या मिलता है हमको ..???
सिर्फ तन्हाई के चंद पल...मगर यकीन करो वो पल सिर्फ तुम्हारे होते हैं ओर तुम कहती हो कभी समझ ही नहीं पाए मुझे ...
सही बोल रही हो नहीं समझ पाया तुम्हे कभी, ओर
बीच समाज में कई आवरण ओढ़े रहता हूं मगर तुम्हरे सामने बिल्कुल मोम सा होता हूं... हर मुखौटे से बाहर... असली रूप में...
मुझे अपने प्रेम को खोजने के लिए पढ़ना होता है तुम्हारी आंखों को.. और मेरे लिए कितना आसान है ये... तुम्हारे मासूम से चेहरे पर एक छोटी सी मुस्कराहट ... होती है मेरे प्यार की निशानी..

सब कुछ तो कह दिया है आज... मगर फिर भी नहीं कह पाऊंगा... तो सिर्फ तुम्हारा नाम... आज भी तुम एक अ... अजनबी... अनदेखा सा प्रेम  बनकर रह जायेगा... सारी दुनिया के लिए.. समझे न तुम मेरी बुढ़िया ओर मैं तुम्हारा बुढ़वा ,
ओर माफ़ कर देना नहीं समझ पाया तुम्हे कभी....I

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