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Showing posts from September, 2021

जैसे जैसे मेरी उम्र में वृद्धि होती गई

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  जैसे जैसे मेरी उम्र में वृद्धि होती गई, मुझे समझ आती गई कि अगर मैं Rs. 300 की घड़ी पहनूं या Rs. 30000 की, दोनों समय एक जैसा ही बताएंगी। मेरे पास Rs. 300 का बैग हो या Rs. 30000 का, इसके अंदर के सामान में कोई परिवर्तन नहीं होंगा। मैं 300 गज के मकान में रहूं या 3000 गज के मकान में, तन्हाई का एहसास एक जैसा ही होगा। आख़िर में मुझे यह भी पता चला कि यदि मैं बिजनेस क्लास में यात्रा करूं या इक्नामी क्लास में, अपनी मंजिल पर उसी नियत समय पर ही पहुँचूँगा। इसीलिए, अपने बच्चों को बहुत ज्यादा अमीर होने के लिए प्रोत्साहित मत करो बल्कि उन्हें यह सिखाओ कि वे खुश कैसे रह सकते हैं और जब बड़े हों, तो चीजों के महत्व को देखें, उसकी कीमत को नहीं। फ्रांस के एक वाणिज्य मंत्री का कहना था - ब्रांडेड चीजें व्यापारिक दुनिया का सबसे बड़ा झूठ होती हैं, जिनका असल उद्देश्य तो अमीरों की जेब से पैसा निकालना होता है, लेकिन गरीब और मध्यम वर्ग लोग इससे बहुत ज्यादा प्रभावित होते हैं। क्या यह आवश्यक है कि मैं Iphone लेकर चलूं फिरू, ताकि लोग मुझे बुद्धिमान और समझदार मानें?? क्या यह आवश्यक है कि मैं रोजाना Mac'd या KFC मे

शब्दों का भी अपना एक संसार होता है.....

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  पता नहीं किस रचनाकार की कृति है। पर उत्तम है। शब्द रचे जाते हैं,  शब्द गढ़े जाते हैं,   शब्द मढ़े जाते हैं,    शब्द लिखे जाते हैं,     शब्द पढ़े जाते हैं,      शब्द बोले जाते हैं,       शब्द तौले जाते हैं,        शब्द टटोले जाते हैं,         शब्द खंगाले जाते हैं,                ... इस प्रकार शब्द बनते हैं,  शब्द संवरते हैं,   शब्द सुधरते हैं,    शब्द निखरते हैं,     शब्द हंसाते हैं,      शब्द मनाते हैं,       शब्द रूलाते हैं,        शब्द मुस्कुराते हैं,         शब्द खिलखिलाते हैं,          शब्द गुदगुदाते हैं,           शब्द मुखर हो जाते हैं            शब्द प्रखर हो जाते हैं             शब्द मधुर हो जाते हैं                ... इतना होने के बाद भी शब्द चुभते हैं,  शब्द बिकते हैं,   शब्द रूठते हैं,    शब्द घाव देते हैं,     शब्द ताव देते हैं,      शब्द लड़ते हैं,       शब्द झगड़ते हैं,        शब्द बिगड़ते हैं,         शब्द बिखरते हैं          शब्द सिहरते हैं                ... परन्तु शब्द कभी मरते नहीं  शब्द कभी थकते नहीं   शब्द कभी रुकते नहीं    शब्द कभी चुकते नहीं                ... अ

संसार में “सबसे पवित्र खाद्य पदार्थ” क्या है...??

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  गुरु जी- बताओ बच्चों, संसार में “सबसे पवित्र खाद्य पदार्थ” क्या है...?? ? ? ? ? ? ? ? ? ? ? ? बहुत समय बीत गया, किसी ने कोई उत्तर नहीं दिया.... आखिर में मांगीलाल खड़े हुए और बोले गुरु जी मैं बताऊं...?? गुरु जी- खुशी से बताओ बेटा मांगीलाल - “ तंबाकू ....” किसी भी दिन चलती, ग्यारस के दिन, बारस के दिन, किसी भी त्यौहार के दिन, अमावस्या के दिन, पूर्णिमा के दिन, सुबह सुबह और तो और, रात के २बजे भी, ३६५ दिन, दिन-रात चलती, इतनी पवित्र की किसी की भी चलती कोई छुआछूत नहीं, अंतिम संस्कार के समय या किसी के जन्म के वक्त भी चलती, इसको खाने का कोई बंधन नहीं, कोई जात-पात नहीं, कोई धर्म नहीं कोई मसल के तो कोई चूना लगा के खाता है, इतनी पवित्र वनस्पति है, ये। और तो और मल मूत्र त्याग के वक़्त भी अछूत नही होती है, पैसे से ज्यादा महत्वपूर्ण बिना भूले बिसरे जेब में रखते है और कुछ भूल सकते हैं मगर तंबाकू नहीं भूलते। आगंतुक मित्र को भले ही समय नहीं देंगे पर किसी कोने में जाकर तंबाकू जरुर मसलेगे। अतिप्रिय खाद्य। 1000 रुपए किलो है सर काजू से भी महंगी है फिर भी गरीब से गरीब भी इसे खाता है। काजू कभी कोई जेब में रखत

तरक्की की फसल तो हम भी काट लेते...

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  "तरक्की की फसल तो हम भी काट लेते, थोडे से तलवे अगर हम भी चाट लेते.... हाँ !बस हमारे लहजे में सिर्फ़"जी हुजूर"न था, इसके अलावा हमारा और कोई कसूर न था.. अगर पल भर को भी हम बे-जमीर हो जाते, यकीन मानिए, हमभी कबके वजीर हो जाते. सब कूछ जो ज़ायज़ हो, वो हमने करके देखा, पर किसीके जंजीरोंमे बँधे पालतू ना हो सके, अफसोस तो आज सिर्फ़ इस बात का ही हैं, की नेकी का जज्बा बहोत हैं अब भी दिल मे , पर नेकी की दलाली मे किसीके काम ना आ सके...!

उम्मीद का दिया जलाए रखें...

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   एक घर मे पांच दिए जल रहे थे। एक दिन पहले एक दिए ने कहा - इतना जलकर भी मेरी रोशनी की लोगो को कोई कदर नही है... तो बेहतर यही होगा कि मैं बुझ जाऊं। वह दिया खुद को व्यर्थ समझ कर बुझ गया । जानते है वह दिया कौन था ? वह दिया था उत्साह का प्रतीक । यह देख दूसरा दिया जो शांति का प्रतीक था, कहने लगा - मुझे भी बुझ जाना चाहिए। निरंतर शांति की रोशनी देने के बावजूद भी लोग हिंसा कर रहे है। और शांति का दिया बुझ गया । उत्साह और शांति के दिये के बुझने के बाद, जो तीसरा दिया हिम्मत का था, वह भी अपनी हिम्मत खो बैठा और बुझ गया। उत्साह, शांति और अब हिम्मत के न रहने पर चौथे दिए ने बुझना ही उचित समझा। चौथा दिया समृद्धि का प्रतीक था। सभी दिए बुझने के बाद केवल पांचवां दिया अकेला ही जल रहा था। हालांकि पांचवां दिया सबसे छोटा था मगर फिर भी वह निरंतर जल रहा था। तब उस घर मे एक लड़के ने प्रवेश किया। उसने देखा कि उस घर में सिर्फ एक ही दिया जल रहा है। वह खुशी से झूम उठा। चार दिए बुझने की वजह से वह दुखी नही हुआ बल्कि खुश हुआ। यह सोचकर कि कम से कम एक दिया तो जल रहा है। उसने तुरंत पांचवां दिया उठाया और बाकी के चार दिए फिर

नजर की वासना..

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वासना है तुम्हारी नजर ही में तो मैं क्या क्या ढकूं, तू ही बता क्या करूं के चैन की जिंदगी जी सकूं।। साडी पहनती हूं तो तुझे मेरी कमर दिखती है चलती हूं तो मेरी लचक पर अंगुली उठती है।। दुप्पटे को क्या शरीर पर नाप के लगाउ मै। कैसे अपने शरीर की संरचना को तुमसे छुपाउ मैं ।। पीठ दिख जाए तो वो भी काम निशानी है। क्या क्या छुपाउ तुमसे तुम्हारी तो मेरे हर अंग को देख के बहकती जवानी है।। घाघरा चोली पहनू तो  स्तनो पर तुम्हारी नजर टिकती है, पीछे से मेरे नितंम्बो पर तेरी आंखे सटती है ।। केश खोल के रखू तो वो भी बेहयाई है। क्या करे तू भी तेरी निगाहों  मे समायी काम परछाई है।। हाथो को कगंन से ढक लूं चेहरे पर घुंघट का परदा रखलूं किसी की जागिर हूं दिखाने के लिए अपनी मांग भरलूं।। पर तुम्हे क्या परवाह मैं किसकी  बेटी किसकी पत्नी किसकी बहन हूं। तुम्हारे लिए तो बस तुम्हारी वासना को मिलने वाला चयन हूं।। सिर से पांव के नख तक को छुपालूंगी तो भी कुछ नहीं बदलेगा, तेरी वासना का भूजंग तो नया बहाना बनकर के हमें डस लेगा।।     सोच बदलो समाज बदलेगा ✍✍

आजकल की नालायक व संस्कारहीन संतान का उपचार !

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  आजकल की नालायक व संस्कारहीन संतान का उपचार !                  ----- अब 50+ की पीढ़ी को बहुत समझदार होने की जरूरत है। इस तरह के केस हर दूसरे घर की कहानी हो गई है। मेरे एक दोस्त के माता-पिता बहुत ही शान्त स्वभाव के थे, मेरा मित्र उनकी इकलौती संतान था उसकी शादी हो चुकी थी व उसके दो बच्चे थे। अचानक उसकी मां का देहांत हो जाता है। एक दिन मेरा मित्र अपने पिता जी को कहता है कि पापा आप गैरेज में शिफ्ट हो जाओ क्योंकि आपकी वजह से आपकी बहू को परेशानी होती है। माताजी के गुजरने के बाद घर के सारे काम उसे करने पड़ते हैं। और आपके सामने उसे साड़ी पहन कर कार्य करने में परेशानी होती है। अंकल बिना कोई बात किये गैरेज में शिफ्ट हो जाते हैं। करीब पन्द्रह दिन बाद बेटे को बुलाकर उसके पूरे परिवार के लिए दस दिन का विदेश ट्रिप का पास देते हैं और कहते हैं कि जा बेटा सभी को घुमा ला सभी का मन हल्का हो जाएगा। पुत्र के जाने के बाद अंकल ने अपना छः करोड़ का मकान तुरंत तीन करोड़ में बेच दिया। अपने लिए एक अपार्टमेंट में अच्छा फ्लैट लिया। तथा बेटे का सारा सामान एक दूसरा फ्लैट किराये पर ले कर उसमें शिफ्ट कर दिया। जब बेटा घ

अर्धागिंनी....

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              "रामलाल..!! तुम अपनी बीबी से.. इतना क्यों डरते हो..??" मैने अपने.. नौकर से पूछा।। "मै डरता नहीं, मैडम..!!  उसकी कद्र करता हूँ, उसका सम्मान करता हूँ। "उसने जबाव दिया। मैं हँसी और बोल:- "ऐसा क्या है उसमें, ना शक्ल सूरत, ना पढ़ी लिखी।" जबाब मिला :--"कोई फर्क नहीं पड़ता मैडम.. कि.. वो कैसी है पर.. मुझे सबसे प्यारा रिश्ता.. उसीका लगता है।" "जोरू का गुलाम।" मेरे मुँह से.. निकला।" और सारे रिश्ते कोई मायने नहीं रखते तेरे लिये.."मैंने पूछा। उसने बहुत इत्मिनान से जबाब दिया.. "मैडम जी..!! माँ बाप रिश्तेदार नहीं होते, वो.. भगवान होते हैं। उनसे रिश्ता नहीं निभाते, उनकी पूजा करते हैं। भाई बहन के रिश्ते.. जन्मजात होते हैं, दोस्ती का रिश्ता भी.. ज्यादातर मतलब का.. ही होता है। आपका मेरा रिश्ता भी.. जरूरत और पैसे का है।  पर.., पत्नी बिना किसी.. करीबी रिश्ते के होते हुए भी.. हमेशा के लिये हमारी हो जाती है। अपने सारे रिश्ते को.. पीछे छोड़कर, और हमारे हर सुख-दुख की सहभागी बन जाती है, वो भी.. आखिरी साँसों तक।" अब मैं.. अचरज से

यह भी नहीं रहने वाला...

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  यह भी नहीं रहने वाला   🙏🏻🌹🙏🏻          एक साधु देश में यात्रा के लिए पैदल निकला हुआ था। एक बार रात हो जाने पर वह एक गाँव में आनंद नाम के व्यक्ति के दरवाजे पर रुका। आनंद ने साधू  की खूब सेवा की। दूसरे दिन आनंद ने बहुत सारे उपहार देकर साधू को विदा किया। साधू ने आनंद के लिए प्रार्थना की  - "भगवान करे तू दिनों दिन बढ़ता ही रहे।"        साधू की बात सुनकर आनंद हँस पड़ा और बोला - "अरे, महात्मा जी! जो है यह भी नहीं रहने वाला ।" साधू आनंद  की ओर देखता रह गया और वहाँ से चला गया ।       दो वर्ष बाद साधू फिर आनंद के घर गया और देखा कि सारा वैभव समाप्त हो गया है । पता चला कि आनंद अब बगल के गाँव में एक जमींदार के यहाँ नौकरी करता है । साधू आनंद से मिलने गया। आनंद ने अभाव में भी साधू का स्वागत किया । झोंपड़ी में फटी चटाई पर बिठाया । खाने के लिए सूखी रोटी दी । दूसरे दिन जाते समय साधू की आँखों में आँसू थे । साधू कहने लगा - "हे भगवान् ! ये तूने क्या किया ?"      आनंद पुन: हँस पड़ा और बोला - "महाराज  आप क्यों दु:खी हो रहे है ? महापुरुषों ने कहा है कि भगवान्  इन्सान क

एक चाट वाला था।

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  एक चाट वाला था।  जब भी उसके पास चाट खाने जाओ तो ऐसा लगता कि वह हमारा ही रास्ता देख रहा हो। हर विषय पर बात करने में उसे बड़ा मज़ा आता था। कई बार उसे कहा कि भाई देर हो जाती है, जल्दी चाट लगा दिया करो पर उसकी बात ख़त्म ही नहीं होती। एक दिन अचानक उसके साथ मेरी कर्म और भाग्य पर बात शुरू हो गई। तक़दीर और तदबीर की बात सुन मैंने सोचा कि चलो आज उसकी फ़िलासफ़ी भी देख ही लेते हैं। मैंने उससे एक सवाल पूछ लिया। मेरा सवाल उस चाट वाले से था कि, आदमी मेहनत से आगे बढ़ता है या भाग्य से ? और उसने जो जवाब दिया उसके जवाब को सुन कर मेरे दिमाग़ के सारे जाले ही साफ़ हो गए। वो चाट वाला मेरे से कहने लगा आपका किसी बैंक में लॉकर तो होगा? मैंने कहा हाँ, तो उस चाट वाले ने मेरे से कहा कि उस लाकर की चाबियां ही इस सवाल का जवाब है। हर लॉकर की दो चाबियां होती हैं। एक आपके पास होती है और एक मैनेजर के पास। आपके पास जो चाबी है वह है परिश्रम और मैनेजर के पास वाली चाबी भाग्य है। जब तक दोनों चाबियां नहीं लगती लाॅकर का ताला नहीं खुल सकता। आप कर्मयोगी पुरुष हैं और मैनेजर भगवान। आपको अपनी चाबी भी लगाते रहना चाहिये। पता नहीं ऊप

एक बार मुड़ कर तो देखिये ...

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   पहले भटूरे को फुलाने के लिये उसमें ENO डालिये फिर भटूरे से फूले पेट को पिचकाने के लिये ENO पीजिये जीवन के कुछ गूढ़ रहस्य आप कभी नहीं समझ पायेंगे पांचवीं तक स्लेट की बत्ती को जीभ से चाटकर कैल्शियम की कमी पूरी करना हमारी स्थाई आदत थी लेकिन इसमें पापबोध भी था कि कहीं विद्यामाता नाराज न हो जायें ...!!! पढ़ाई के तनाव हमने पेन्सिल का पिछला हिस्सा चबाकर मिटाया था ...!!! पुस्तक के बीच पौधे की पत्ती और मोरपंख रखने से हम होशियार हो जाएंगे ... ऐसा हमारा दृढ विश्वास था कपड़े के थैले में किताब-कॉपियां जमाने का विन्यास हमारा रचनात्मक कौशल था ...!!! हर साल जब नई कक्षा के बस्ते बंधते तब कॉपी किताबों पर जिल्द चढ़ाना हमारे जीवन का वार्षिक उत्सव मानते थे ...!!! माता - पिता को हमारी पढ़ाई की कोई फ़िक्र नहीं थी, न हमारी पढ़ाई उनकी जेब पर बोझा थी ... सालों साल बीत जाते पर माता - पिता के कदम हमारे स्कूल में न पड़ते थे ...!!! एक दोस्त को साईकिल के बिच वाले डंडे पर और दूसरे को पीछे कैरियर पर बिठा हमने कितने रास्ते नापें हैं, यह अब याद नहीं बस कुछ धुंधली सी स्मृतियां हैं ...!!! स्कूल में पिटते हुए और मुर्गा बनते हम

याद है पहले रोज कहा था....

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  याद है पहले रोज कहा था साथ चलो तो पूरे सफर तक मर जाने की अगली खबर तक.... देखो फिर तुम छोड़ ना जाना छोड़ गए तो फिर ना आना... छोड़ दिया जो तेरा नही है चला गया जो मेरा नही हैं.... याद है पहले रोज कहा था या तो टूट के प्यार ना करना या फिर पीठ पर वार ना करना.... जब नादानी हो जाती हैं नई कहानी हो जाती है .... नई कहानी लिख लाऊंगा अगले रोज मैं बिक जाऊंगा... तेरे गुल जब खिल जाएँगे मुझको पैसे मिल जाएंगे.... याद हैं पहले रोज कहा था 🔥 बिछड़ गए तो मौज उड़ाना.... वापस मेरे पास ना आना जब कोई जाकर वापस आए रोए ,तड़पे या पछताए.... मैं फिर उसको मिलता नही हूँ साथ दोबारा चलता नही हूँ..... गुम जाता हूँ ,खो जाता हूँ मैं पत्थर का हो जाता हूँ... याद है पहले रोज कहा था....