तरक्की की फसल तो हम भी काट लेते...


 

"तरक्की की फसल तो हम भी काट लेते,
थोडे से तलवे अगर हम भी चाट लेते....

हाँ !बस हमारे लहजे में सिर्फ़"जी हुजूर"न था,
इसके अलावा हमारा और कोई कसूर न था..

अगर पल भर को भी हम बे-जमीर हो जाते,
यकीन मानिए, हमभी कबके वजीर हो जाते.

सब कूछ जो ज़ायज़ हो, वो हमने करके देखा,
पर किसीके जंजीरोंमे बँधे पालतू ना हो सके,

अफसोस तो आज सिर्फ़ इस बात का ही हैं,

की नेकी का जज्बा बहोत हैं अब भी दिल मे ,
पर नेकी की दलाली मे किसीके काम ना आ सके...!

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