ख़याल जिस का था मुझे ख़याल में मिला मुझे - मुनीर नियाज़ी
ख़याल जिस का था मुझे ख़याल में मिला मुझे....
सवाल का जवाब भी सवाल में मिला मुझे...
गया तो इस तरह गया कि मुद्दतों नहीं मिला...
मिला जो फिर तो यूँ कि वो मलाल में मिला मुझे...
तमाम इल्म ज़ीस्त का गुज़िश्तगाँ से ही हुआ...
अमल गुज़िश्ता दौर का मिसाल में मिला मुझे...
हर एक सख़्त वक़्त के बाद और वक़्त है...
निशाँ कमाल-ए-फ़िक्र का ज़वाल में मिला मुझे...
निहाल सब्ज़ रंग में जमाल जिस का है 'मुनीर'...
किसी क़दीम ख़्वाब के मुहाल में मिला मुझे....
सवाल का जवाब भी सवाल में मिला मुझे...
गया तो इस तरह गया कि मुद्दतों नहीं मिला...
मिला जो फिर तो यूँ कि वो मलाल में मिला मुझे...
तमाम इल्म ज़ीस्त का गुज़िश्तगाँ से ही हुआ...
अमल गुज़िश्ता दौर का मिसाल में मिला मुझे...
हर एक सख़्त वक़्त के बाद और वक़्त है...
निशाँ कमाल-ए-फ़िक्र का ज़वाल में मिला मुझे...
निहाल सब्ज़ रंग में जमाल जिस का है 'मुनीर'...
किसी क़दीम ख़्वाब के मुहाल में मिला मुझे....
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