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Showing posts from June, 2020

बस इसी का नाम ज़िन्दगी है ....

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कुछ दबी हुई ख़्वाहिशें है, कुछ मंद मुस्कुराहटें... कुछ खोए हुए सपने है, कुछ अनसुनी आहटें... कुछ दर्द भरे लम्हे है, कुछ सुकून भरे लम्हात... कुछ थमे हुए तूफ़ाँ हैं, कुछ मद्धम सी बरसात... कुछ अनकहे अल्फ़ाज़ हैं, कुछ नासमझ इशारे... कुछ ऐसे मंझधार हैं, जिनके मिलते नहीं किनारे... कुछ उलझनें है राहों में, कुछ कोशिशें बेहिसाब.... बस इसी का नाम ज़िन्दगी है चलते रहिये, जनाब...

ऐ मेरे दोस्त तू आँसू बहाता क्यों है....

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ऐ मेरे दोस्त तू आँसू बहाता क्यों है,  जहाँ तेरी कद्र ना हो उस गली जाता क्यों है?   तू खुद ही ज़िम्मेदार है अपनी रुसवाई का,  आखिर ग़ैरों की बातों में आता क्यों है?  कड़वा ही सही मगर सच बोलना सीख,  बेमतलब यूं बहाने बनाता क्यों है?  तू तो कहता है कि तू हमदर्द है मेरा,   मदद करके फिर एहसान जताता क्यों है?  जब ग़म-ए-मोहब्बत से परहेज़ ही करना है,  तो ख़ामख़ाह किसी से दिल लगाता क्यों है?  इन्हें तो बस मज़ा लेने में मज़ा आता है,  ज़माने भर को अपने ज़ख्म दिखाता क्यों है?  अरे कुछ तो सबक लिया कर अपनी गलतियों से,  हर बार वही गलतियां दौहराता क्यों है?  ये लोग जलते हैं तुझे ख़ुश होता देखकर,  यूं बेवजह मुस्कुराकर इन्हें जलाता क्यों है?

मैंने कल एक झलक जिंदगी को देखा....

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🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂 मैंने कल एक झलक जिंदगी को देखा, वो मेरी राह में गुनगुना रही थी ...  मैं ढूंढ़ रहा था उसे इधर उधर, वो ऑंख मिचोली कर मुस्कुरा रही थी ...  एक अरसे के बाद आया मुझे करार, वो थपकी दे मुझे सुला रही थी ...  हम दोनों क्यों ख़फा हैं एक दुसरे से, मैं उसे और वो मुझे बता रही थी ... मैंने पुछा तूने मुझे इतना दर्द क्यों दिया ?  उसने कहाँ मैं जिंदगी हू ... "तुजे जीना सीखा रही थी" 🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂

मनुष्य है ही ऐसा.....

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मनुष्य है ही ऐसा..      लक्ष्य भी है, मंज़र भी है, चुभता मुश्किलों का, खंज़र भी है !!      प्यास भी है, आस भी है, ख्वाबो का उलझा, एहसास भी है !!     रहता भी है, सहता भी है, बनकर दरिया सा, बहता भी है!!     पाता भी है, खोता भी है, लिपट लिपट कर फिर, रोता भी है !!     थकता भी है, चलता भी है, मोम सा दुखों में, पिघलता भी है !!     गिरता भी है, संभलता भी है, सपने फिर से नए, बुनता भी है !!         मनुष्य है ही ऐसा..

जिंदगी क्या है......

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कभी तानों में कटेगी, कभी तारीफों में; ये जिंदगी है यारों, पल पल घटेगी !! पाने को कुछ नहीं, ले जाने को कुछ नहीं; फिर भी क्यों चिंता करते हो, इससे सिर्फ खूबसूरती घटेगी, ये जिंदगी है यारों पल-पल घटेगी! बार बार रफू करता रहता हूँ, ..जिन्दगी की जेब !! कम्बखत फिर भी, निकल जाते हैं..., खुशियों के कुछ लम्हें !! ज़िन्दगी में सारा झगड़ा ही... ख़्वाहिशों का है !! ना तो किसी को गम चाहिए, ना ही किसी को कम चाहिए !! खटखटाते रहिए दरवाजा... एक दूसरे के मन का; मुलाकातें ना सही, आहटें आती रहनी चाहिए !! उड़ जाएंगे एक दिन ... तस्वीर से रंगों की तरह ! हम वक्त की टहनी पर..... बेठे हैं परिंदों की तरह !! बोली बता देती है,इंसान कैसा है! बहस बता देती है, ज्ञान कैसा है! घमण्ड बता देता है, कितना पैसा है। संस्कार बता देते है, परिवार कैसा है !! ना राज़ है... "ज़िन्दगी", ना नाराज़ है... "ज़िन्दगी"; बस जो है, वो आज है, ज़िन्दगी! जीवन की किताबों पर, बेशक नया कवर चढ़ाइये; पर...बिखरे पन्नों को, पहले प्यार से चिपकाइये !!

'भारत' में रहकर 'भारत' को गाली देने वाले कुत्तों के लिए समर्पित कहानी....

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एक बादशाह अपने कुत्ते के साथ नाव में यात्रा कर रहा था। उस नाव में अन्य यात्रियों के साथ एक दार्शनिक भी था। कुत्ते ने कभी नौका में सफर नहीं किया था, इसलिए वह अपने को सहज महसूस नहीं कर पा रहा था। वह उछल-कूद कर रहा था और किसी को चैन से नहीं बैठने दे रहा था। मल्लाह उसकी उछल-कूद से परेशान था कि ऐसी स्थिति में यात्रियों की हड़बड़ाहट से नाव डूब जाएगी। वह भी डूबेगा और दूसरों को भी ले डूबेगा। परन्तु कुत्ता अपने स्वभाव के कारण उछल-कूद में लगा था। ऐसी स्थिति देखकर बादशाह भी गुस्से में था, पर कुत्ते को सुधारने का कोई उपाय उन्हें समझ में नहीं आ रहा था। नाव में बैठे दार्शनिक से रहा नहीं गया। वह बादशाह के पास गया और बोला : "सरकार। अगर आप इजाजत दें तो मैं इस कुत्ते को भीगी बिल्ली बना सकता हूँ।"  बादशाह ने तत्काल अनुमति दे दी। दार्शनिक ने दो यात्रियों का सहारा लिया और उस कुत्ते को नाव से उठाकर नदी में फेंक दिया।  कुत्ता तैरता हुआ नाव के खूंटे को पकड़ने लगा। उसको अब अपनी जान के लाले पड़ रहे थे। कुछ देर बाद दार्शनिक ने उसे खींचकर नाव में चढ़ा लिया। वह कुत्ता चुपके से जाकर एक कोने मे

चाय सिर्फ़ चाय ही नहीं होती...

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चाय सिर्फ़ चाय ही नहीं होती... ✍🏻 जब कोई पूछता है "चाय पियेंगे" तो बस नहीं पूछता वो तुमसे दूध, चीनी और चायपत्ती को उबालकर बनी हुई  एक कप चाय के लिए।✍🏻 वो पूछता हैं... क्या आप बांटना चाहेंगे कुछ चीनी सी मीठी यादें कुछ चायपत्ती सी कड़वी दुःख भरी बातें..!✍🏻 वो पूछता है.. क्या आप चाहेंगे बाँटना मुझसे अपने कुछ अनुभव, मुझसे कुछ आशाएं कुछ नयी उम्मीदें..?✍🏻 उस एक प्याली चाय के साथ वो बाँटना चाहता है अपनी जिंदगी के वो पल तुमसे जो अनकही है अबतक दास्ताँ जो अनसुनी है अबतक✍🏻 वो कहना चाहता है.. तुमसे तमाम किस्से जो सुना नहीं पाया  अपनों को कभी..✍🏻 एक प्याली चाय के साथ को अपने उन टूटे और खत्म हुए ख्वाबों को एक बार और  जी लेना चाहता है।✍🏻 वो उस गर्म चाय की प्याली  के साथ उठते हुए धुओँ के साथ कुछ पल को अपनी सारी फ़िक्र उड़ा देना चाहता है ✍🏻 इस दो कप चाय के साथ  शायद इतनी बातें दो अजनबी कर लेते हैं जितनी तो अपनों के बीच भी नहीं हो पाती।✍🏻 तो बस जब पूछे कोई अगली बार तुमसे  "चाय पियेंगे..?" ✍🏻 तो हाँ कहकर  बाँट लेना उसके साथ अपनी चीनी सी मीठी यादें और चायपत्ती सी कड़व

फिर मनाएगा कौन ???????

मैं रूठा ,       तुम भी रूठ गए            फिर मनाएगा कौन ? आज दरार है ,            कल खाई होगी                 फिर भरेगा कौन ? मैं चुप ,      तुम भी चुप            इस चुप्पी को फिर तोडे़गा कौन ? छोटी बात को लगा लोगे दिल से ,            तो रिश्ता फिर निभाएगा कौन ? दुखी मैं भी और  तुम भी बिछड़कर ,                     सोचो हाथ फिर बढ़ाएगा कौन ? न मैं राजी ,        न तुम राजी ,    फिर माफ़ करने का बड़प्पन                                        दिखाएगा कौन ? डूब जाएगा यादों में दिल कभी ,         तो फिर धैर्य बंधायेगा कौन ? एक अहम् मेरे ,        एक तेरे भीतर भी ,                 इस अहम् को फिर हराएगा कौन ? ज़िंदगी किसको मिली है सदा के लिए ?               फिर इन लम्हों में अकेला                                      रह जाएगा कौन ? मूंद ली दोनों में से गर किसी दिन            एक ने आँखें....                 तो कल इस बात पर फिर                                       पछतायेगा कौन ?  _Respect Each Other_                 _Ignore Mistakes_                                      _Avoid Ego_

कहाँ पर बोलना है और कहाँ पर बोल जाते हैं...

कहाँ पर बोलना है और कहाँ पर बोल जाते हैं। जहाँ खामोश रहना है वहाँ मुँह खोल जाते हैं।। कटा जब शीश सैनिक का तो हम खामोश रहते हैं। कटा एक सीन पिक्चर का तो सारे बोल जाते हैं।। नयी नस्लों के ये बच्चे जमाने भर की सुनते हैं। मगर माँ बाप कुछ बोले तो बच्चे बोल जाते हैं।। बहुत ऊँची दुकानों में कटाते जेब सब अपनी। मगर मज़दूर माँगेगा तो सिक्के बोल जाते हैं।। अगर मखमल करे गलती तो कोई कुछ नहीँ कहता। फटी चादर की गलती हो तो सारे बोल जाते हैं।। हवाओं की तबाही को सभी चुपचाप सहते हैं। च़रागों से हुई गलती तो सारे बोल जाते हैं।। बनाते फिरते हैं रिश्ते जमाने भर से अक्सर हम मगर घर में जरूरत हो तो रिश्ते भूल जाते हैं।।   कहाँ पर बोलना है और कहाँ पर बोल जाते हैं जहाँ खामोश रहना है वहाँ मुँह खोल जाते हैं।। .

The Vulture & the little Girl

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👆🏼👆🏼Remember the picture? The name of the picture was "The vulture & the little girl. In the picture, a vulture is waiting for the death of a hungry little girl. Kevin Carter, a South African photojournalist, captured the March 1993 famine in Sudan. He was awarded the "Pulitzer Prize" for the film. But Carter committed suicide at the age of 33, despite receiving so much respect. But what was the reason for suicide? In fact, when he was busy celebrating such a great honor at the time, the news of his receiving the award was being shown on various TV channels, at that time someone asked in a phone interview what happened to the girl in the end? Carter replied that he could not say because he was in a hurry to catch his flight. "How many vultures were there?" He asked again. "I think there was one," Carter said. The man on the other end of the phone said, "I'm saying there were two vultures that day, one of them with a camer

जो कह दिया वह शब्द थे...

जो कह दिया वह शब्द थे ;       जो नहीं कह सके               वो अनुभूति थी ।। और,       जो कहना है मगर ;            कह नहीं सकते,                    वो मर्यादा है ।। जिंदगी का क्या है ?             आ कर नहाया ....                       और,              नहाकर चल दिए ।। बात पर गौर करना- ---- पत्तों सी होती है          कई रिश्तों की उम्र,  आज हरे-------! कल सूखे -------! क्यों न हम,  जड़ों से;  रिश्ते निभाना सीखें ।। रिश्तों को निभाने के लिए,  कभी अंधा , कभी   गूँगा ,     और कभी बहरा ;             होना ही पड़ता है ।। बरसात गिरी  और कानों में इतना कह गई कि---------! गर्मी हमेशा,  किसी की भी नहीं रहती ।। नसीहत ,                नर्म लहजे में ही अच्छी लगती है । क्योंकि,  दस्तक का मकसद,     दरवाजा खुलवाना होता है;                           तोड़ना नहीं ।। घमंड-----------!  किसी का भी नहीं रहा,  टूटने से पहले, गुल्लक को भी लगता है कि ; सारे पैसे उसी के हैं । जिस बात पर , कोई   मुस्कुरा दे; बात --------! बस वही खूबसूरत है ।। थमती नहीं,  जिंदगी कभी,  किसी के बिना ।। मगर,  यह गुजरती भी नह

मेरा हिसाब कर दीजिये....

लिपिका जी डाक्टर साहब के क्लिनिक पर भागी भागी गईं, थोड़ी घबराई हुई थोड़ी सहमी हुई उनके चेहरे पर कुछ बुरा होने के आसार दिखाई दे रहे थे। डाक्टर साहब की उनपर नज़र पड़ी तो डाक्टर को लगा कि इस औरत को इंतज़ार में लगे बाक़ी पेशंट से पहले इलाज होना चाहिये, अपने नियम को भूलकर डाक्टर साहब ने उन्हें पहले बुलवा लिया। "जी, क्या प्राब्लम है आपकी?" डाक्टर साहब ने निहायत संजीदगी से पूछा जो संजीदगी वह अपने खास पेशंट को ही दिखाते थे। "डाक्टर साहब, मुझे कोई प्राब्लम नहीं है.. प्राब्लम मेरे हसबैंड में हैं मुझे लगता है कि वो मानसिक रोगी होते जा रहे हैं।" लिपिका जी ने इत्मीनान से जवाब दिया। "अच्छा, क्या करते हैं? आप पर हाथ उठाते हैं या आपके साथ मिसबिहेव करते हैं?" डाक्टर साहब ने पूछा। "नहीं नहीं, हाथ तो अभी तक नहीं उठाया है और न ही कभी ऐसी हिम्मत हुई पर धमकियां देते हैं और साथ ये भी कहते हैं कि "मेरा हिसाब कर दो".. "मेरा हिसाब कर दो।" ..ये कहते ही लिपिका जी ख़ामोश हो गईं। "आप परेशान न हों, कहां हैं आपके हसबैंड साथ नहीं लाए आप उनको?" डाक्टर सा

एक आँसू बोल पड़ा....

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एक आँसू बोल पड़ा, किस की खातिर इतना रोते हो.. क्या गम है तुझकों, कि सारी रात जागते रहते हो.. किसी बात की फिक्र हैं तुम्हें, क्यों इतना डरते हो... क्यों तन्हा,क्यों बेचैन, क्यों इतना खामोश रहते हो.. हो कोई गम तो बांट लो मुझसे, अपना दोस्त समझ कर... क्यों इस रंगीन दुनियां में तुम, यूँ सुने सुने से रहते हो... रखते हो सबकों खुश, फिर क्यों ख़ुद दुःखी रहते हो... ऐसी क्या बात लगी है दिल पर, जो ख़ुद तन्हा सहते हो... क्या कहूँ ए आँसू, अब सब कुछ गवारा लगता है... जो सब था कभी अपना, अब सब पराया लगता है... दिखावे की हे ये दुनियां, यहां सब फ़रेब के रिश्ते है... जो रोशन करता है सबकों, उसी से ये लोग जलते है... कर बैठा मैं भी ये गुनाह, सबकों खुशियां बांट दी... मैंने तो अपनी ज़िंदगी, इन्ही की खुशियों में काट दी...