एक आँसू बोल पड़ा....

एक आँसू बोल पड़ा, किस की खातिर इतना रोते हो..
क्या गम है तुझकों, कि सारी रात जागते रहते हो..

किसी बात की फिक्र हैं तुम्हें, क्यों इतना डरते हो...
क्यों तन्हा,क्यों बेचैन, क्यों इतना खामोश रहते हो..

हो कोई गम तो बांट लो मुझसे, अपना दोस्त समझ कर...
क्यों इस रंगीन दुनियां में तुम, यूँ सुने सुने से रहते हो...

रखते हो सबकों खुश, फिर क्यों ख़ुद दुःखी रहते हो...
ऐसी क्या बात लगी है दिल पर, जो ख़ुद तन्हा सहते हो...

क्या कहूँ ए आँसू, अब सब कुछ गवारा लगता है...
जो सब था कभी अपना, अब सब पराया लगता है...

दिखावे की हे ये दुनियां, यहां सब फ़रेब के रिश्ते है...
जो रोशन करता है सबकों, उसी से ये लोग जलते है...

कर बैठा मैं भी ये गुनाह, सबकों खुशियां बांट दी...
मैंने तो अपनी ज़िंदगी, इन्ही की खुशियों में काट दी...

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