ऐ मेरे दोस्त तू आँसू बहाता क्यों है....


ऐ मेरे दोस्त तू आँसू बहाता क्यों है, 
जहाँ तेरी कद्र ना हो उस गली जाता क्यों है?  

तू खुद ही ज़िम्मेदार है अपनी रुसवाई का, 
आखिर ग़ैरों की बातों में आता क्यों है? 

कड़वा ही सही मगर सच बोलना सीख, 
बेमतलब यूं बहाने बनाता क्यों है? 

तू तो कहता है कि तू हमदर्द है मेरा,  
मदद करके फिर एहसान जताता क्यों है? 

जब ग़म-ए-मोहब्बत से परहेज़ ही करना है, 
तो ख़ामख़ाह किसी से दिल लगाता क्यों है? 

इन्हें तो बस मज़ा लेने में मज़ा आता है, 
ज़माने भर को अपने ज़ख्म दिखाता क्यों है? 

अरे कुछ तो सबक लिया कर अपनी गलतियों से, 
हर बार वही गलतियां दौहराता क्यों है? 

ये लोग जलते हैं तुझे ख़ुश होता देखकर, 
यूं बेवजह मुस्कुराकर इन्हें जलाता क्यों है?

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