मनुष्य है ही ऐसा.....
मनुष्य है ही ऐसा..
लक्ष्य भी है, मंज़र भी है,
चुभता मुश्किलों का, खंज़र भी है !!
प्यास भी है, आस भी है,
ख्वाबो का उलझा, एहसास भी है !!
रहता भी है, सहता भी है,
बनकर दरिया सा, बहता भी है!!
पाता भी है, खोता भी है,
लिपट लिपट कर फिर, रोता भी है !!
थकता भी है, चलता भी है,
मोम सा दुखों में, पिघलता भी है !!
गिरता भी है, संभलता भी है,
सपने फिर से नए, बुनता भी है !!
मनुष्य है ही ऐसा..
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