ये गृहणियाँ भी थोड़ी पागल होती हैं ...
सलीके से आकार दे कर रोटियों को गोल बनाती हैं अौर अपने शरीर को ही आकार देना भूल जाती हैं ये गृहणियाँ भी थोड़ी पागल सी होती हैं।। ढेरों वक्त़ लगा कर घर का हर कोना कोना चमकाती हैं उलझी बिखरी ज़ुल्फ़ों को ज़रा सा वक्त़ नही दे पाती हैं ये गृहणियाँ भी थोड़ी पागल सी होती हैं।। किसी के बीमार होते ही सारा घर सिर पर उठाती हैं कर अनदेखा अपने दर्द सब तकलीफ़ें टाल जाती हैं ये गृहणियाँ भी थोड़ी पागल सी होती हैं ।। खून पसीना एक कर सबके सपनों को सजाती हैं अपनी अधूरी ख्वाहिशें सभी दिल में दफ़न कर जाती हैं ये गृहणियाँ भी थोड़ी पागल सी होती हैं।। सबकी बलाएँ लेती हैं सबकी नज़र उतारती हैं ज़रा सी ऊँच नीच हो तो नज़रों से उतर ये जाती हैं ये गृहणियाँ भी थोड़ी पागल सी होती हैं।। एक बंधन में बँध कर कई रिश्तें साथ ले चलती हैं कितनी भी आए मुश्किलें प्यार से सबको रखती हैं ये गृहणियाँ भी थोड़ी पागल सी होती हैं।। मायके से सासरे तक हर जिम्मेदारी निभाती है कल की भोली गुड़िया रानी आज समझदार हो जाती हैं ये गृहणियाँ भी..... वक्त़ के साथ ढल जाती हैं।।