भगवा धोती तिलक कौन रोक रहा है सर ?

 


एक दर्द पैदा करती पोस्ट- हमें बदलना होगा पीढ़ियों के लिये तुरंत 😔🤔
 

एक मुस्लिम महिला की कलम से...... हिजाब के सम्बन्ध में ...

भगवा धोती तिलक कौन रोक रहा है सर?

आप ही लोग तो पीछा छुड़ाएं बैठे है इन चीजों से ! मुस्लिमों ने अपनी जड़ें न कल छोड़ी थीं न आज छोड़ने को राजी हैं!

आप लोगों को तो खुद कुछ साल पहले तिलक, भगवा, शिखा, से शर्म आती थी, आप ही लोगों ने आधुनिकता के नाम पर सब कुछ त्याग दिया!

आप नहीं त्यागते तो स्कूल में धोती कुर्ता पहनना नॉर्मल माना जाता!

 बीएचयू में डिग्री लेते वक्त बच्चों का भारतीय पारंपरिक पोशाक पहनना खबर बनता है, जबकि यह तो नॉर्मल होना चाहिए था न ?

खबर तो यह होती न कि हिंदू छात्रों ने गाउन पहन कर डिग्री ली!

आपने खुद अपनी संस्कृति, अपने रीति रिवाज अपनी जड़ों को पिछड़ेपन के नाम पर त्यागा है!

आज इतने साल बाद आप लोगों की नींद खुली है तो आप लोगो को उनकी जड़ों की तरफ लौटने के लिए कहते फिरते हैं!

अपनी नाकामी, अपनी लापरवाही का गुस्सा हमारी जड़ों को काट कर क्यों निकालना चाहते हैं आप?

आप के बच्चे कॉन्वेंट से पढ़ने के बाद पोएम सुनाते थे तो आपका सर ऊंचा होता था ! हमारे मुस्लिम घरों में बाप का सिर तब झुक जाता है जब बच्चा रिश्तेदार के सामने कोई दुआ न सुना पाए !

हमारे घरों में बच्चा बोलना सीखता है तो हम सिखाते हैं कि सलाम करना सीखो बड़ों से, आप लोगों ने नमस्कार को हैलो हाय से बदल दिया तो यह हमारी गलती है ?

हमारे यहां बच्चा चलना सीखता है तो बाप की उंगलियां पकड़ कर मस्जिद जाता है!

आप लोगो ने खुद मंदिरों की तरफ देखना छोड़ दिया तो बच्चे कैसे जानेंगे कि मंदिर के जाकर क्या करना है, यह हमारी गलती है?

आप लोगो ने नामकरण और मुंडन जैसे फंक्शन को बर्थ-डे और एनिवरसिरी से बदल दिया तो यह हमारी गलती है?

आप ने जब नया घर लिया तो पुराने घर से गीता लेकर नहीं आए तो यह भी हमारी गलती है?

आपके पास तो सब कुछ था- संस्कृति, इतिहास, परंपराएं!

आपने उन सब को पिछड़ेपन की निशानी मान कर त्याग दिया, हम ने नहीं त्यागा बस इतना फर्क है!क्या सिखा रहे हैं आप अपनी पीढ़ी को?

आपको देखकर, आपके आचरण, आपके रहन सहन , आपकी आदतों से क्या सीखेगी आपकी आने वाली पीढ़ी?

तिलक तो घर से निकलने से पहले लगाते थे न आप लोग? क्यों छोड़ दिया? किसने रोका आपको?

आप का बच्चा कॉन्वेंट से पढ़ कर आता है और आप उसके बड़े होने पर अफसोस करते है कि देखो कॉन्वेंट हमारा कल्चर खा गया!
पर कभी सोचा है कि बच्चा स्कूल से आकर तो आप ही के साथ आप के ही पास था? आपने क्या किया तब?

हमारे मजहब का लड़का कॉन्वेंट से आकर उर्दू अरबी पढ़ने बैठ जाता है!

आप को आज हिजाब के मामले पर याद आया कि यार हम भी तो भगवा गमछा ओढ़ सकते हैं!

पर इसके पहले आपने कोशिश क्यों नहीं की कभी? कल्चर तो बनाइए इसको पहले, तब बराबरी कीजिएगा कि हम भी पहनेंगे, ऐसा न हो कि जोश जोश में आप इजाजत ले लो, फिर आने वाली पीढ़ी खुद ही पहनना छोड़ दे!

         कृपया अवश्य विचार करें!

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