मैं एक टेडी बियर हूँ ...

 


टेडी बियर की उत्तपत्ति कब ? कहाँ ? कैसे ? और किसके द्वारा ? हुई थी इस बारे में मैं उतना ही जानता हूँ जितना आदमी खुद के बारे में जानता है।

विज्ञान की पुस्तकों में जो और जितना लिखा गया है वह सिर्फ ये सिद्ध करता है कि हमारा ज्ञान अभी यहाँ तक पहुँचा है – हो सकता है भविष्य में जब और जानकारी मिले – और तथ्य सिद्ध हुए तो पुरानी परिभाषाएं – मान्यतायें बदल जाये। ठीक वैसे ही जैसे – पहले धरती चपटी बतायी गयी थी अब गोल हो गयी है– हो सकता है भविष्य में कुछ और ही सिद्ध हो जाये – कुछ और ही कहा जाने लगे।

खैर, मैं कहाँ खुद का इतिहास बताते-बताते आपका इतिहास बाँचने लगा।

कुल मिला कर मैं एक सुंदर-सा मुलायम-सा प्यारा-सा खिलौना हूँ। जिसकी शक्ल जंगली भालू से मिलती है। सिर्फ शक्ल ही मिलती है रंग भी मिलने लगे तो पोलर बियर की तो कोई इज्जत भी हो काले भालू को कौन खरीदेगा ?

मादरी जुबान में मुझें मुलायम खिलौना भालू ही कहेंगे पर मादरी जुबान में कहने पर मुझमें आकर्षण का अभाव हो जायेगा शायद इसी लिए मेरा टेडी बियर नाम मशहूर किया गया है। टेडी बियर कहते ही जेहन में मेरा ध्यान आता है।

आज दिनांक 10 फरवरी मनुष्यों में टेडी डे के तौर पर मनाया जाता है।

यानि मेरा दिन ।

क्या वाकई ?

चलिये मेरे साथ एक दिन की यात्रा कीजिये।

मैं एक टेडी बियर हूँ –आपके लिये एक निर्जीव सॉफ्ट मटेरियल से निर्मित सॉफ्ट टॉय।

जो न बोल सकता है– न सुन सकता है – न ही कोई प्रतिक्रिया देता है – न मेरे चेहरे की भाव-भंगिमा परिवर्तित होती है – न कुछ अभिव्यक्त कर पाने की मुझमें क्षमता है।

पर मैं सब कुछ देख सकता हूँ – सुन सकता हूँ – भला- बुरा सोच सकता हूँ –समझ सकता हूँ। चूँकि मुझें कुछ बोलने की इजाज़त नहीं – इसलिये मैं खामोश रहता हूँ।

लगभग साल भर से मैं गिफ्ट हाउस में पड़ा हुआ था।

कई ग्राहकों ने मुझें देखा टटोला परखा पर किसी ने मुझें खरीदा नहीं।

बार-बार रेपर से बाहर निकाल कर ग्राहकों को दिखाने – फिर वापस रेपर में पैक करने के क्रम में कब मेरी पीठ पर से सिलाई उधड़ गयी ये दुकानदार को भी तब पता चला जब किसी ग्राहक ने उधड़ी सिलाई की तरफ उसका ध्यानाकर्षण कराया।

मैं जो फर्स्ट का माल था तुरन्त ही सेकेंड का माल हो गया।

अब दुकानदार मुझें बेच कर लाभ कमाने के बजाय मुझें निपटा कर लागत वसूलना चाहता था।

दुकानदार ने मेरी सिलाई ठीक करवायी पर सर्जरी के बाद जैसे निशान रह जाता है वैसे ही गौर से देखने पर पारखी परख लेते थे।

प्रेमियों का टेडी डे आया तो मुझें फिर निकाला गया। मेरी प्राइस कम कर दी गयी। ब्रश मार कर धूल उड़ा दिया गया। टाई ठीक कर दी गयी।

रमेश मोना का प्रेमी था। बजट कम था।

इसलियें वह चॉकलेट डे के दिन मुझें सस्ता समझ कर खरीदा और टेडी डे के दिन यानि 10 फरवरी को मोना को भेंट कर दिया।

मोना असमंजस में थी।

वह टेडी डे के दिन गिफ्ट तो चाहती थी पर 12 इंच के टेडी बियर का क्या करती ?

घर ले जाती तो माँ-बाप सवाल पूछते – उसने अपने दूसरे फ्रेंड जॉन को टेडी बियर यानी मुझें गिफ्ट कर दिया।

 जॉन टेडी बियर पा कर हडबडाया –बोला – "अरे गिफ्ट तो मुझें करना था तुम क्यों कर रही हो?"

ये कहाँ लिखा है कि लड़का ही लड़की को गिफ्ट करें लड़की भी तो लड़के को गिफ्ट कर सकती है।"

" प - पर गिफ्ट तो मुझें लाना था।"

 " ठीक है तुम भी दे देना पर  इसे तो संभालों।"

 जॉन ने मोना को गिफ्ट में मोबाइल फोन दिलवाया।

 मोना तो चली गयी मैं जॉन के साथ उसकी कार में सफर कर रहा था।

जॉन अमीर बाप का इकलौता बेटा था। शादीशुदा था पर अभी भी सुधरा न था। कई लड़कियों से अभी भी उसके प्रेम सम्बन्ध जारी थे।

अब जॉन के लिये मैं मुसीबत बन चुका था। न वह मुझें घर ले जा सकता था न कार में छोड़ सकता था। चाहता तो मुझें कचरे के ड्रम में फेंक सकता था पर ढाई सौ रुपये के टेडीबियर पर उसने पन्द्रह हज़ार का मोबाइल फोन इन्वेस्ट किया था – ऐसे ही कैसे फेंक देता ? – जॉन ने "आई लव यू माई डार्लिंग " – रोजी से कहा – और मुझें रोजी के हवाले कर दिया।

मुश्किल से आठ घँटे के वक्फे में मैं सात जोड़ो के हाथों से गुजरता हुआ वापस रमेश के घर पहुँच गया।

रमेश की बहन रेखा को उसके पुराने मित्र सुरेश ने हैप्पी टेडी डे कह कर टेडी डे विश किया।

अब मेरा मुकाम रेखा के बेड रूम में था। मुझें भी सकूँन मिला कि चलो देर से ही सही – मुझें कोई ठौर तो मिला।

शाम हो चली थी – टेडी डे का समापन होने वाला था – अगला दिन प्रॉमिस डे था – यानी सच्चें-झूठें वादों का दिन – कल टेडी बियर की कोई पूछ नहीं होने वाली थी। यानि मेरे भटकते जीवन को ठहराव मिल चुका था।

अब मैं इत्मीनान से रह सकता था।

कितना बेवकूफ था मैं ।

बदनसीबी की कलम से जिसकी तक़दीर लिखी गयी होती है उसे चैन कहाँ नसीब होता है।

रेखा रेपर से निकाल कर मुझें अपने पलँग के सिरहाने रख ही रही थी कि रमेश कमरे में आ गया।

रेखा के हाथ में टेडी बियर देख कर ही वह भड़क गया।

रेखा के हाथ से मुझें झपट लिया। जाना-पहचाना टेडी बियर –गौर से देखा तो उधड़ी हुई सिलाई की रिपेरिंग मार्क तुरन्त उसके पकड़ में आ गयी। वह भौचक्का-सा रह गया।

भाई बहन में बहस शुरू हुई जो जल्दी ही मार-पीट में बदल गयी।

" वही काम –जब तुम करो तो पूण्य है मैं करुं तो पाप!" – रेखा चीख कर बोली।

रमेश बहुत गुस्से में था। मुझें दो बार जमीन पर पटका –मुझें तोड़ने - मरोड़ने - फाड़ने की कोशिश की – फिर क्रोध की अधिकता के कारण मुझें घर से बाहर सड़क पर फेंक दिया।

वातावरण में अंधेरा फैल चुका था।

मैं देर तक सड़क पर ठंड में पड़ा रहा। मेरा शरीर आत्मा भावनायें सब चोटिल था।

मेरा अन्तर्मन कराह रहा था। तभी एक बच्चा जो अपनी माँ के साथ कहीं से लौट रहा था– मुझें सड़क पर पड़ा देखकर उठा लिया।
मुझें पा कर उसका मन-मयूर नाँच उठा।

उसके हर्ष की कोई सीमा न रही।

वह एक भिखारन का बेटा था। उसके हाथ गंदे थे कपड़े मैले थे– पर मन साफ था।

मैं सुबह से कई साफ सुथरे – तन वालों – कपड़े वालों के हाथों से गुजरा – सबके मन काले थे –वासना से भरे थे – निर्मल ह्रदय से तो मेरी अब मुलाकात हुई थी।

खिलौना बच्चों की चीज़ है इसकी महत्ता कोई बच्चा ही समझ सकता है।

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