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Showing posts from October, 2021

सभी गृहणीयो को समर्पित...

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  रसायनशास्त्र से शायद ना पड़ा हो पाला  पर सारा रसोईघर प्रयोगशाला दूध में साइटरीक एसिड डालकर पनीर बनाना या सोडियम बाई कार्बोनेट से केक फूलाना चम्मच से सोडियम क्लोराइड का सही अनुपात तोलती रोज कितने ही प्रयोग कर डालती हैं पर खुद को कोई  वैज्ञानिक नही   बस गृहिणी ही मानती हैं रसोई गैस की बढ़े कीमते या सब्जी के बढ़े भाव  पैट्रोल डीजल महँगा हो या तेल मे आए उछाल  घर के बिगड़े हुए बजट को झट से सम्हालती है अर्थशास्त्री होकर भी  खुद को बस गृहिणी ही मानती हैं मसालों के नाम पर भर रखा आयूर्वेद का खजाना गमलो मे उगा रखे हैं  तुलसी गिलोय करीपत्ता छोटी मोटी बीमारियों को काढ़े से भगाना जानती है पर खुद को बस गृहिणी ही मानती हैं   सुंदर रंगोली और मेहँदी में नजर आती इनकी चित्रकारी सुव्यवस्थित घर में झलकती है इनकी कलाकारी  ढोलक की थाप पर गीत गाती नाचती है  कितनी ही कलाए जानती है पर खुद को बस गृहिणी ही मानती हैं समाजशास्त्र ना पढ़ा हो शायद  पर इतना पता है कि  परिवार समाज की इकाई है परिवार को उन्नत कर  समाज की उन्नति में पूरा योगदान डालती है पर खुद को बस गृहिणी ही मानती हैं  मनो वैज्ञानिक भले ही ना हो पर घर

ऑनलाइन इश्क़ क्या है....???

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  बार - बार पूछते हो ना कि ऑनलाइन इश्क़ क्या है , तो सुनो:- गुफ्तगू करने की.. अनगिनत ख्वाहिशों के बीच..  "ऑनलाइन" होकर भी चीखती खामोशियाँ.. इश्क़ है..😍 मशरुफ़ियत.. कितनी भी भारी पड़े कैफ़ियत पूछने पर.. बस इक बार.. "Last seen" देखने वाली बेचैनियाँ.. इश्क़ है..😍 व्हाट्सअप पर एक ही msg को बार- बार, हज़ार बार पढ़ना इश्क़ है, उनके msg का इंतज़ार करना इश्क़ है, msg के डबल लाइन को ब्लू लाइन में बदलते देखना इश्क़ है....😍 उसकी "typing..." पर, खुशी से काँपती  उँगलियाँ.. इश्क़ है..😍 उसकी "New profile pic" को.. मिनटों तक.. एकटक झाँकती पलकों की पंखुड़ियाँ.. इश्क़ है..😍 जरा सी आहट पे.. फोन पकड़ कर बैठ जाना.. वो "notification" की टनटनाती घंटियाँ..फिर फ़ोन को म्यूट करना इश्क़ है..😍 कैसे हो? पूछने पर.. "i am fine" बताना लिख कर मिटाना.. मिटा कर छिपाना, वो "draft" में बेबस पड़ी अनकही अर्जियाँ .. इश्क़ है..😍 उसका नाम सुन कर धड़कनों का बढ़ जाना.. और.. उसका नाम सुना कर सहेलियों की मन-मर्जियाँ.. इश्क़ है..😍 देर तक चलने वाली "convo&quo

खैर सबकुछ ठीक ही है...

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  मन खाली सा हो गया है...कुछ भी ठहरता नहीं बहुत देर तक... गुस्सा जितनी जल्दी आता है उतना ही जल्दी शांत भी हो जाता है... रोना कुछ देर का ही है फिर "सब ठीक है" ...कहकर चीजें हटा दी जाती है, दिल और दिमाग से... कहने को बहुत से लोग हैं साथ पर अकेलापन ज्यादा सुखद लगता है अब...  नहीं पता समझदारी घर कर चुकी है या बेवकूफी कर रहा हूं आजकल... फॉर्मल चीजें ,जो करनी भी जरूरी है वो भी नहीं करता..  किसी जान पहचान वाले को देखकर छुप जाने का मन करता है इसलिये नहीं कि वो बात करेगा, चंद सवालात करेगा इसलिये कि अब बातें ही शुरू नहीं करना चाहता शुरू से मैं..   लगता है जो छूट गया सो छूट गया...जो है सो है... नहीं है तो भी कोई गम नहीं और है भी तो क्या पता कल न हो... कुछ सपने जो कभी देखे थे अब जिम्मेदारी से महसूस होते हैं और जिम्मेदारियां एक वक्त के बाद बोझिल होने लगती है... ना खुद से ना दुनिया से कोई शिकायत रही ना ही उन लोगों से कोई शिकवा है जिन्होंने इन आँखो को आँसू दिये... माफ किया ये तो नहीं कह सकता बस अब फर्क नहीं पड़ता कि किसने क्या दिया  खैर सबकुछ ठीक ही है...

हमें यह नहीं पता कि क्या ढ़कना है और क्या खुला रखना है ...??

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  हमें यह नहीं पता कि क्या ढ़कना है और क्या खुला रखना है ...?? हम भारतवासियों को कवर चढ़ाने का बहुत शौक है...।। बाज़ार से बहुत सुंदर सोफा खरीदेंगे लेकिन फिर उसे सफेद जाली के कवर से ढक देंगे |🤔 बढ़िया रंग का सुंदर सूटकेस खरीदेंगे, फिर उस पर मिलिट्री रंग का कपड़ा चढ़ा देंगे |🤔 मखमल की रजाई पर फूल वाले फर्द का कवर!🤔 फ्रिज पर कवर!🤔 माइक्रोवेव पर कवर!🤔 वाशिंग मशीन पर कवर!🤔 मिक्सी पर कवर!🤔 थर्मस वाली बोतल पर कवर!🤔 TV पर कवर!🤔 कार पर कवर!🤔 कार की कवर्ड सीट पर एक और कवर!🤔 स्टेयरिंग पर कवर!🤔 गियर पर कवर!🤔 फुट मैट पर एक ओर कवर!🤔 सुंदर शीशे वाली डाइनिंग टेबल पर प्लास्टिक का कवर!🤔 स्टूल कवर!🤔 चेयर कवर!🤔 मोबाइल कवर!🤔 बेडशीट के ऊपर बेड कवर!🤔 गैस के सिलिंडर पर कवर!🤔 RO पर कवर!🤔 किताबों पर कवर!🤔 . काली कमाई पर कवर!🤔 गलत हरकतों पर कवर!🤔 बुरी नियत पर कवर!🤔 लेकिन.......... . कचरे के डिब्बे पर ढक्कन नदारद!!😁 खुली नालियों के कवर नदारद!!😁 कमोड पर ढक्कन नदारद!!😁 मैनहोल के ढक्कन नदारद!!😁 सर से हेलमेट नदारद!!😁 खुले खाने पर से कवर नदारद!!😁 आधुनिकता में तन से कपडे नदारद!!😁 इंसानों के द

कर्मो का लेख...

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बेटा बन कर,बेटी बनकर, दामाद बनकर,और बहु  बनकर कौन आता है ?  जिसका तुम्हारे साथ कर्मों का लेना देना होता है। लेना देना नहीं होगा तो नहीं आयेगा। एक फौजी था। उसके मां बाप नहीं थे। शादी नहीं की, ,भाई नहीं, बहन नहीं, अकेला ही कमा कमा के फौज में जमा करता जा रहा था।  थोड़े दिन में एक सेठ जी जो फौज में माल सप्लाई करते थे उनसे उनका परिचय हो गया और दोस्ती हो गई । सेठ जी ने कहा जो तुम्हारे पास पैसा है वो उतने के उतने ही पड़ा हैं ।तुम मुझे दे दो मैं कारोबार में लगा दूं तो पैसे से पैसा बढ़ जायेगा इसलिए तुम मुझे दे दो। फौजी ने सेठ जी को पैसा दे दिया। सेठ जी ने कारोबार में लगा दिया। कारोबार उनका चमक गया, खूब कमाई होने लगी कारोबार बढ़ गया। थोड़े ही दिन में लड़ाई छिड़ गई। लड़ाई में फौजी घोड़ी पर चढ़कर लड़ने गया। घोड़ी इतनी बदतमीज थी कि जितनी ज़ोर- ज़ोर से लगाम खींचे उतनी ही तेज़ भागे। खीेंचते खींचते उसके गल्फर तक कट गये लेकिन वो दौड़कर दुश्मनों के गोल घेरे में जाकर खड़ी हो गई। दुश्मनों के साथ संघर्ष में जवान शहीद हो गया घोड़ी भी मर गई। अब सेठ जी को मालूम हुआ कि फौजी नही रहा, तो सेठ जी बहुत खुश हुए कि उसका कोई वारिस त

बुजुर्गों का सम्मान...

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,छोटे ने कहा," भैया, दादी कई बार कह चुकी हैं कभी मुझे भी अपने साथ होटल ले जाया करो."* गौरव बोला, " ले तो जायें पर चार लोगों के खाने पर कितना खर्च होगा.  याद है, पिछली बार जब हम तीनों ने डिनर लिया था, तब सोलह सौ का बिल आया था.  हमारे पास अब इतने पैसे कहाँ बचे हैं. " पिंकी ने बताया," मेरे पास पाकेटमनी के कुछ पैसे बचे हुए हैं."  तीनों ने मिलकर तय किया कि इस बार दादी को भी लेकर चलेंगे,  इस बार मँहगी पनीर की सब्जी की जगह मिक्सवैज मँगवायेंगे और आइसक्रीम भी नहीं खायेंगे. छोटू, गौरव और पिंकी तीनों दादी के कमरे में गये और बोले, "दादी इस' संडे को लंच बाहर लेंगे, चलोगी हमारे साथ." दादी ने खुश होकर कहा," तुम ले चलोगे अपने साथ."  "हाँ दादी " संडे को दादी सुबह से ही बहुत खुश थी.  आज उन्होंने अपना सबसे बढिया वाला सूट पहना, हल्का सा मेकअप किया, बालों को एक नये ढंग से बाँधा. आँखों पर सुनहरे फ्रेमवाला नया चश्मा लगाया. यह चश्मा उनका मँझला बेटा बनवाकर दे गया था जब वह पिछली बार लंदन से आया था.  किन्तु वह उसे पहनती नहीं थी, कहती थी, इतना सुन्दर

बचपन की दुनिया

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  एक ऐसी पोस्ट, जिसकी पहली लाइन पढ़ते ही आप खुद इसके मुख्य पात्र हो जाएंगे।❤️ ** बचपन में स्कूल के दिनों में क्लास के दौरान टीचर द्वारा पेन माँगते ही हम बच्चों के बीच राकेट गति से गिरते पड़ते सबसे पहले उनकी टेबल तक पहुँच कर पेन देने की अघोषित प्रतियोगिता होती थी। जब कभी मैम किसी बच्चे को क्लास में कापी वितरण में अपनी मदद करने पास बुला ले, तो मैडम की सहायता करने वाला बच्चा अकड़ के साथ "अजीमो शाह शहंशाह" बना क्लास में घूम-घूम कर कापियाँ बाँटता और बाकी के बच्चें मुँह उतारे गरीब प्रजा की तरह अपनी चेयर से न हिलने की बाध्यता लिए बैठे रहते। 🙄 उस मासूम सी उम्र में उपलब्धियों के मायने कितने अलग होते थे टीचर ने क्लास में सभी बच्चो के बीच गर हमें हमारे नाम से पुकार लिया .....टीचर ने अपना रजिस्टर स्टाफ रूम में रखकर आने  का बोल दिया तो समझो कैबिनेट मिनिस्टरी में चयन का गर्व होता था। 😁 आज भी याद है जब बहुत छोटे थे, तब बाज़ार या किसी समारोह में हमारी टीचर दिख जाए तो भीड़ की आड़ ले छिप जाते थे। जाने क्यों, किसी भी सार्वजनिक जगह पर टीचर को देख हम छिप जाते थे ?        कैसे भूल सकते है उन हिंदी शि

4 पैसे क्यों ज़रूरी हैं ?

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बचपन में बुजुर्गों से एक कहानी सुनते थे कि... इंसान 4 पैसे कमाने के लिए मेहनत करता है या... बेटा कुछ काम करोगे तो 4 पैसे घर में आएँगे या... आज चार पैसे होते तो कोई ऐसे ना बोलता, आख़िर क्यों चाहिए ये चार पैसे और चार ही क्यों तीन या पाँच क्यों नहीं?❓ तीन पैसों में क्या कमी हो जायेगी या पांच से क्या बढ़ जायेगा?❓ आइये...   समझते हैं कि इन चार पैसों का क्या करना है? पहला पैसा भोजन है, दूसरे पैसे से पिछला कर्ज़ उतारना है, तीसरे पैसे का  आगे क़र्ज़ देना है और चौथे पैसे को कुएं में डालना है। 4 पैसों का रहस्य 1) भोजन:- अर्थात अपना तथा अपने परिवार पत्नी, बच्चों का भरण-पोषण करना, पेट भरने के लिए। 2) पिछला क़र्ज़ उतारना:- अपने माता-पिता की सेवा के लिए उनके द्वारा किए गये हमारे पालन-पोषण कर्ज़ उतारने के लिए। 3) आगे कर्ज़ देना:- सन्तान को पढ़ा-लिखा कर क़ाबिल बनाने के लिए ताकि आगे वृद्धावस्था में वे आपका ख़्याल रख सकें। 4) कुएं में डालने के लिए:- अर्थात शुभ कार्य करने के लिए दान, सन्त सेवा, असहायों की सहायता करने के लिए, यानि निष्काम सेवा करना, क्योंकि हमारे द्वारा किए गये इन्हीं शुभ कर्मों का फल हम

छोले पूड़ी सी नमकीन हलवे सी मीठी यादें...

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  "तेरे पास कितने रुपये इकठ्ठे हुए" "19" हैं?????? 😲 "तो मेरे पास 18 कैसे हैं".... 😧 कौनसी आंटी ने नहीं बुलाया मुझे???? मन में ये सवाल पूरा दिन खनकता था उन सिक्कों की तरह... 50 पैसे, 1 रुपैया और किस्मत रईस होती तो वो 2 रुपए का गुलाबी सा नोट... अगर नई नवेली गड्डी में से कड़कता नोट मिल जाता तो ख़ुशी युँ होती जैसे 100 रुपये का सौदा कर लाएंगे इससे....और कहीं लाल सुनहरी चुन्नी, प्लेट, मिल जाती तो हम देवी की तरह पूजी जाने कंजिकाओं को वो आंटी खुद "देवी" से कम न लगती थी... 👣🙏 सिक्कों का ये हिसाब किताब सुलझता नहीं कि कहीं से आवाज़ आ जाती आओ "कन्या " जल्दी आ जाओ.. और मन में एक और सिक्का बढ़ जाने की ख़ुशी फिर से पंख फैला लेती... 😄 पेट चने पूड़ी हलवे से ऐसा भरा हुआ के एक चना भी खाया तो पेट फूट जाए और न खायें तो रुपैया छूट जाए... 😉 "आंटी हम दोनों एक में ही खा लेंगे" कह कर दिल और पेट का वजन एडजस्ट करने की कोशिश कर लेते थे.... 😉 वो दो दिन बस हमारे होते थे "सिर्फ हमारे" आज सिक्के बड़े नोट और गिफ्ट बन गए पर "कंजक और कंजिकाओं का

सरदार जी की 'कन्याएं'

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  मुहल्ले की औरतें कन्या पूजन के लिए तैयार थी, मिली नहीं कोई लड़की, उन्होंने हार अपनी मान ली ! फिर किसी ने बताया, अपने मोहल्ले के है बाहर जी, बारह बेटियों का बाप, है सरदार जी ! सुन कर उसकी बात, हँस कर मैंने यह कह दिया, बेटे के चक्कर में सरदार, बेटियां बारह कर के बैठ गया ! पड़ोसियों को साथ लेकर, जा पहुँचा उसके घर पे, सत श्री अकाल कहा, मैंने प्रणाम उसे कर के ! कन्या पूजन के लिए आपकी बेटियां घर लेकर जानी है, आपकी पत्नी ने कन्या बिठा ली, या बिठानी है ? सुन के मेरी बात बोला, आपको कोई गलतफहमी हुई है, किसकी पत्नी जी ? मेरी तो अभी शादी भी नहीं हुई है ! सुन के उसकी बात, मैं तो चकरा गया, बातों-बातों में वो मुझे क्या-क्या बता गया ! मत पूछो इनके बारे में, जो बातें मैंने छुपाई है, क्या बताऊँ आपको, कि मैंने कहाँ-कहाँ से उठाई हैं ! माँ-बाप इनके हैवानियत की हदें सब तोड़ गए, मन्दिर, मस्ज़िद और कई हस्पतालों में थे छोड़ गए ! बड़े-बड़े दरिंदे है, अपने इस जहान में, यह जो दो छोटियां है, मिली थी मुझेे कूड़ेदान में ! इसका बाप कितना निर्दयी होगा, जिसे दया ना आई नन्ही सी जान पे, हम मुर्दों को लेकर जाते हैं, वो

पति-पत्नी का रिश्ता

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  बहुत ही मार्मिक कहानी है, थोड़ा समय निकाल कर जरूर पढ़ें। पति-पत्नी रोज साथ में तय समय पर एक ही ट्रेन में सफर करते थे। एक युवक और था, वो भी उसी ट्रेन से सफर करता था, वो पति-पत्नी को रोज देखता। ट्रेन में बैठकर पति-पत्नी ढेरों बातें करते। पत्नी बात करते-करते स्वेटर बुनती रहती। उन दोनों को जोड़ी एकदम परफेक्ट थी। एक दिन जब पति-पत्नी ट्रेन में नहीं आए तो उस युवक को थोड़ा अटपटा लगा, क्योंकि उसे रोज उन्हें देखने की आदत हो चुकी थी। करीब 1 महीने तक पति-पत्नी ने उस ट्रेन में सफर नहीं किया। युवक को लगा शायद वे कहीं बाहर गए होंगे।  एक दिन युवक ने देखा कि सिर्फ पति ही ट्रेन में सफर रहा है, साथ में पत्नी नहीं है। पति का चेहरा भी उतरा हुआ था, अस्त-व्यस्त कपड़े और बड़ी हुई दाढ़ी। युवक से रहा नहीं गया और उसने जाकर पति से पूछ ही लिया- आज आपकी पत्नी साथ में नहीं है। पति ने कोई जवाब नहीं दिया। युवक ने एक बार फिर पूछा- आप इतने दिन से कहां थे, कहीं बाहर गए थे क्या? इस बार भी पति ने कोई जवाब नहीं दिया। युवक ने एक बार फिर उनकी पत्नी के बारे में पूछा। पति ने जवाब दिया- वो अब इस दुनिया में नहीं है, उसे कैंसर था।  

90 का दूरदर्शन और हम

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  90 का दूरदर्शन और हम - 1.सन्डे को सुबह-2 नहा-धो कर टीवी के सामने बैठ जाना 2."रंगोली"में शुरू में पुराने फिर नए गानों का इंतज़ार करना 3."जंगल-बुक"देखने के लिए जिन दोस्तों के पास टीवी नहीं था उनका घर पर आना 4."चंद्रकांता"की कास्टिंग से ले कर अंत तक देखना 5.हर बार सस्पेंस बना कर छोड़ना चंद्रकांता में और हमारा अगले हफ्ते तक सोचना 6.शनिवार और रविवार की शाम को फिल्मों का इंतजार करना 7.किसी नेता के मरने पर कोई सीरियल ना आए तो उस नेता को और गालियाँ देना 8.सचिन के आउट होते ही टीवी बंद कर के खुद बैट-बॉल ले कर खेलने निकल जाना 9."मूक-बधिर"समाचार में टीवी एंकर के इशारों की नक़ल करना 10.कभी हवा से ऐन्टेना घूम जाये तो छत पर जा कर ठीक करना बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता, दोस्त पर अब वो प्यार नहीं आता। जब वो कहता था तो निकल पड़ते थे बिना घडी देखे, अब घडी में वो समय वो वार नहीं आता। बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता...।।। वो साईकिल अब भी मुझे बहुत याद आती है, जिसपे मैं उसके पीछे बैठ कर खुश हो जाया करता था। अब कार में भी वो आराम नहीं आता...।।। ज

तपस्या का मूलमंत्र...

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एक साधु व एक डाकू एक ही दिन मरकर यमलोक पहुँचे. धर्मराज उनके कर्मों का लेखा-जोखा खोलकर बैठे थे, और उसके अनुसार उनकी गति का हिसाब करने लगे. निर्णय करने से पहले धर्मराज ने दोनों से कहा ~ मैं अपना निर्णय तो सुनाऊँगा, लेकिन ... यदि तुम दोनों अपने बारे में कुछ कहना चाहते हो, तो मैं अवसर देता हूँ , कह सकते हो.   डाकू ने हमेशा हिंसक कर्म ही किए थे. उसे इसका पछतावा भी हो रहा था, अतः , वो अत्यंत विनम्र शब्दों में बोला ......  महाराज, मैंने जीवन भर पापकर्म किए. अब जिसने केवल पाप ही किया हो, वह क्या आशा रखे ? आप जो दंड दें, मुझे स्वीकार है. डाकू के चुप होते ही, साधु बोला ~  महाराज, मैंने आजीवन तपस्या और भक्ति की है. मैं कभी असत्य के मार्ग पर नहीं चला. सदैव सत्कर्म ही किए, इसलिए आप कृपा कर मेरे लिए स्वर्ग के सुख-साधनों का प्रबंध करें. धर्मराज ने दोनों की बात सुनी....... फिर डाकू से कहा ~ तुम्हें दंड दिया जाता है, कि तुम आज से इस साधु की सेवा करो. डाकू ने सिर झुकाकर आज्ञा स्वीकार कर ली.   यमराज की यह आज्ञा सुनकर .... साधु ने आपत्ति जताते हुए कहा ~ महाराज, इस पापी के स्पर्श से मैं अपवित्र हो

हे गांधी मुझको मांफ करो...

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  हे गांधी मुझको मांफ करो,  मै झूंठ नहीं लिख पाउँगा । राष्ट्रपिता कहने से पहले,  अपनी नजरों में गिर जाऊँगा ।। माना आजादी के हवनकुंड में, तुमने भी था हव्य चढ़ाया । लाठी खायी जेल गए और, सत्याग्रह उपवास कराया ।। पर छलछंद खेल कर किसने,  सुभाष का निष्कासन करवाया था ? तुम नेहरू से नेह कर रहे,  हमने योद्धा वीर गंवाया था ।। भगत सिंह से क्रांतिपुत्र,  क्यों तुमको बागी लगते थे ? झूल गये फांसी के फंदे,  क्यों तुमको दागी लगते थे ?? जलियावालाबाग़ की ज्वाला, तुमको नहीं पड़ी दिखलाई | पर डायर के वध पर तेरी, फूट पड़ी थी करूण रुलाई ||   भारत माँ के टुकड़े तुमने, नेहरू हेतु करा डाला । खूब बहा घड़ियाली आंसू,  सांपो को यहाँ बसा पाला ।। भगवा तुम्हे खटकता था,  और हरा हो गया प्यारा जी । बकरी बनी तुम्हारी माता,  गाय विदेशी चारा जी ।। आ गया वही दिन दोबारा,  झूठे ढोल ढपोल बजेंगे | तकली से तलवार हराने के,  कायर गीदड़ शोर मचेंगे || चतुर गीदड़ों की कायरता, अहिंसा का झूंठा मंत्र बनी । गीता के मंत्र पढ़े आधे, जनता वैचारिक परतंत्र बनी ।। याद करो केसव की गीता, जिसने सारा भेद बताया । धर्मार्थ शत्रु का शीश कुचलना, सत्य धर्म सन्मा

मिडिल क्लास पति ...

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  मिडिल क्लास पति बीवी से प्यार ज़ाहिर करने के लिए उसे ऐनिवर्सरी पर ताजमहल या नैनीताल नहीं ले जा पाता. वो रात में घर में जब सब सो जाते हैं तब ऑफ़िस वाले बैग में से चाँदी की एक जोड़ी पायल और लाल काँच की चूड़ियाँ धीरे से निकाल कर बीवी को पहनाता है और.. उसके माथे पर पसीने से फैल चुके सिंदूर को उँगलियों से पोछते हुए ख़ुद से वादा करता है कि अगली गर्मी से पहले वो कूलर ख़रीद लाएगा. और शर्ट की जेब टटोल कर #500 रूपये  हाथ में देते हुए कहता है, घर जाना तो अम्मा और भाभी के लिए कुछ ख़रीद लेना. क्या पता तब हाथ में पैसे रहे न रहे..🍁 🙂 हर कोई चाहता है प्यार में ताजमहल बनाना परंतु जीवन का सच है दो टाइम की रोटी का जुगाड़ लगाना🙏🏼 जिंदगी तब बहुत आसान हो जाती है, साथी परखने वाला नहीं, बल्कि समझने वाला हो...!! 😊🌹🌹

आज की वेश्या

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 कहा जाता है कि प्राचीन काल में एक वैश्या का नाच देखने के लिए लोग उसके खास मकान(कोठे) पर जाया करते थे। तो वो वैश्या  देखने वालों को अपनी मनमोहक नृत्य शैली और अपने नग्नता के जरिए वाह वाही लूटती थी। अगर उस वैश्या से पूछा जाता कि वो ये काम क्यो करती है? तो 100 में से 99.99 लोगों.का ये जवाब होता है कि....  मजबूरी है मैं मजबूर हूं अपने शोक में ये काम नहीं करती हूं। वो मजबूरी अगर पता लगाने की कोशिश की जाती हैं तो हर किसी की एक अपनी दिल को दहलाने वाली कहानी होती हैं। मगर आज की वैश्या को क्या हो गया है? पता नहीं में बात कर रहा हूं  उन कुछ Tik Tok , Instagram Reels,   वाली लड़कियों की। जी हां मुझको पता है कि बहुत से लोगों को मेरी बात बहुत ही बुरी लग रही होगी मगर ये बात करनी भी ज़रूर है तो मैं कहना चाहूंगा उन लोगो से की भाई जरा अपने दिमाग पे ज़ोर डालो और सोचो के हमारे आस पास कितनी निर्लज्जता है क्या ये Tik Tok , Instagram Reels और इस जैसे दूसरे ऐप्स इसके लिए जिम्मेदार नहीं है..... जिन महानुभावो को मेरी बात बुरी लगी हो तो लगे मुझे फर्क नहीं पड़ता... यह हमारी भारतीय संस्कृति का उपहास है और हिन्दू ध