हे गांधी मुझको मांफ करो...

 


हे गांधी मुझको मांफ करो,  मै झूंठ नहीं लिख पाउँगा ।
राष्ट्रपिता कहने से पहले,  अपनी नजरों में गिर जाऊँगा ।।

माना आजादी के हवनकुंड में, तुमने भी था हव्य चढ़ाया ।
लाठी खायी जेल गए और, सत्याग्रह उपवास कराया ।।

पर छलछंद खेल कर किसने,  सुभाष का निष्कासन करवाया था ?
तुम नेहरू से नेह कर रहे,  हमने योद्धा वीर गंवाया था ।।

भगत सिंह से क्रांतिपुत्र,  क्यों तुमको बागी लगते थे ?
झूल गये फांसी के फंदे,  क्यों तुमको दागी लगते थे ??

जलियावालाबाग़ की ज्वाला, तुमको नहीं पड़ी दिखलाई |
पर डायर के वध पर तेरी, फूट पड़ी थी करूण रुलाई ||  

भारत माँ के टुकड़े तुमने, नेहरू हेतु करा डाला ।
खूब बहा घड़ियाली आंसू,  सांपो को यहाँ बसा पाला ।।

भगवा तुम्हे खटकता था,  और हरा हो गया प्यारा जी ।
बकरी बनी तुम्हारी माता,  गाय विदेशी चारा जी ।।

आ गया वही दिन दोबारा,  झूठे ढोल ढपोल बजेंगे |
तकली से तलवार हराने के,  कायर गीदड़ शोर मचेंगे ||

चतुर गीदड़ों की कायरता, अहिंसा का झूंठा मंत्र बनी ।
गीता के मंत्र पढ़े आधे, जनता वैचारिक परतंत्र बनी ।।

याद करो केसव की गीता, जिसने सारा भेद बताया ।
धर्मार्थ शत्रु का शीश कुचलना, सत्य धर्म सन्मार्ग सिखाया ।।

पय पान कराती गाय यहाँ,  बूचड़खाने में कट जाती है ।
गांधी तेरी अहिंसा आखिर,  किस कोने में सुसताती है ।।

सब लोग तुम्हें बापू बोलें, या राष्ट्रपिता स्विकार करें ।
अहिंसा जननी है पापों की, यह तर्क भी अंगीकार करें ।।

हिंदी तुमको लगी काटने,  हिंदुस्तानी नाम बनाया ।
राम तुम्हारे बादशाह थे,  सीता बेगम नाम सुझाया ।।

काश्मीर की गलियों में भी, तुमने था विष बमन कराया।
और हैदराबाद पे आके, तर्क तुम्हारा पलटी खाया ।।

भोली भाली बालाओं पर,  करते ब्रह्मचर्य का साधन ।
कुत्सित कर्म किये सब काले, बापू बने रहे पर पावन ||   

जो सर्वश्व लुटा दुष्टों को, किसी भांति दिल्ली आये ।
गांधी तेरी तुष्टनीति से, उनके भाग्य गए ठुकराये ।।

माघ -पूष की ठिठुरन में,  उनने अम्बर को था बस्त्र बनाया ।
चढ़ उनकी की लाशों पर तुमने, तुष्टिकरण का शस्त्र चलाया ।।

वो हिन्दू थे इस लिए तुझे, मानवता रास नहीं आई |
जो भूख प्यास से बिलख रहे, उनपर भी लाठी चलवाई ||

यह राष्ट्र समाहित रहा सदा , ऋषि मुनिओं की परिपाटी में |
राम कृष्ण औ परशुराम भी, खेले हैं इसकी माटी में ||

वो सब इसके ही बालक हैं, यह धरती उनकी माता है |
शर्म नहीं आती तुझको, जो राष्ट्रपिता कहलाता है ||

भारत के दो दो टुकड़े कर, तूने दुश्मन राष्ट्र बना डाला |
तू राष्ट्रपिता निश्चित उनका, सांपो को जहाँ बसा पाला ||
 
  जैसे रावण है मरा नहीं, हर वर्ष जलाया जाता है |
 कालनेमि हे कलयुग के, तू हर वर्ष जिलाया जाता है ||

मर गयी अहिंसा बार बार, पर कालनेमि तू डरा नहीं |
भाग्य राष्ट्र का फूट गया, गांधी तू मरकर मरा नहीं ||

तू जीवित है कायरता में, कायरता मरा नहीं करती |
धर छद्म भेष चल चाल नई, कामुकता डरा नहीं करती ||   

हे कालनेमि तू भला कहीं,  मारे से मर सकता है |
तू रहता संग कुटिलता के, यह जीवन दर्शन कहता है ||

कवि छील छील कर अंदर की, काली करतूत दिखाता है |
श्वेत वश्त्र में छिपी हुयी, मौनी बंदूक दिखाता है  ||       

जब तक भारत की धरती पे, कालनेमि पद वंदन होगा |
दुर्भाग्य रहेगा सर पर ही, हिन्दू हित का क्रंदन होगा ||  

पिछले सत्तर वर्षों से, तेरा नित बंदन होता है |
इसीलिए चौराहों पर, हिन्दू का मर्दन होता है ||

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