खैर सबकुछ ठीक ही है...
मन खाली सा हो गया है...कुछ भी ठहरता नहीं बहुत देर तक... गुस्सा जितनी जल्दी आता है उतना ही जल्दी शांत भी हो जाता है... रोना कुछ देर का ही है फिर "सब ठीक है" ...कहकर चीजें हटा दी जाती है, दिल और दिमाग से... कहने को बहुत से लोग हैं साथ पर अकेलापन ज्यादा सुखद लगता है अब...
नहीं पता समझदारी घर कर चुकी है या बेवकूफी कर रहा हूं आजकल...
फॉर्मल चीजें ,जो करनी भी जरूरी है वो भी नहीं करता..
किसी जान पहचान वाले को देखकर छुप जाने का मन करता है इसलिये नहीं कि वो बात करेगा, चंद सवालात करेगा इसलिये कि अब बातें ही शुरू नहीं करना चाहता शुरू से मैं..
लगता है जो छूट गया सो छूट गया...जो है सो है...
नहीं है तो भी कोई गम नहीं और है भी तो क्या पता कल न हो... कुछ सपने जो कभी देखे थे अब जिम्मेदारी से महसूस होते हैं और जिम्मेदारियां एक वक्त के बाद बोझिल होने लगती है...
ना खुद से ना दुनिया से कोई शिकायत रही ना ही उन लोगों से कोई शिकवा है जिन्होंने इन आँखो को आँसू दिये...
माफ किया ये तो नहीं कह सकता बस अब फर्क नहीं पड़ता कि किसने क्या दिया
खैर सबकुछ ठीक ही है...
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