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Showing posts from January, 2022

हमारा भी एक जमाना था...

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खुद ही स्कूल जाना पड़ता था क्योंकि साइकिल बस आदि से भेजने की रीत नहीं थी, स्कूल भेजने के बाद कुछ अच्छा बुरा होगा ऐसा हमारे मां-बाप कभी सोचते भी नहीं थे... उनको किसी बात का डर भी नहीं होता था, 🤪 पास/नापास यही हमको मालूम था... % से हमारा कभी संबंध ही नहीं था... 😛 ट्यूशन लगाई है ऐसा बताने में भी शर्म आती थी क्योंकि हमको ढपोर शंख समझा जा सकता था... 🤣🤣🤣 किताबों में पीपल के पत्ते, विद्या के पत्ते, मोर पंख रखकर हम होशियार हो सकते हैं ऐसी हमारी धारणाएं थी... ☺️☺️ कपड़े की थैली में...बस्तों में..और बाद में एल्यूमीनियम की पेटियों में...किताब कॉपियां बेहतरीन तरीके से जमा कर रखने में हमें महारत हासिल थी.. .. 😁 हर साल जब नई क्लास का बस्ता जमाते थे उसके पहले किताब कापी के ऊपर रद्दी पेपर की जिल्द चढ़ाते थे और यह काम...एक वार्षिक उत्सव या त्योहार की तरह होता था.....  🤗  साल खत्म होने के बाद किताबें बेचना और अगले साल की पुरानी किताबें खरीदने में हमें किसी प्रकार की शर्म नहीं होती थी..क्योंकि तब हर साल न किताब बदलती थी और न ही पाठ्यक्रम... 🤪 हमारे माताजी पिताजी को हमारी पढ़ाई का बोझ है..ऐसा कभी 

थेथर होती हैं औरतें ..

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  🙏 सर्दियों में शादियों में स्त्रियों के स्वेटर न पहनने पर खूब बात होती है ..चुटकुले बनते हैं ..वजह तो पता होगी..न पता हो तो मैं बता देती हूँ .. थेथर होती हैं औरतें .. कभी सर्दी की ठण्ड सुबह जब आप रजाई में दुबके होते हो..तब नहा कर चौके में जाकर आपके लिए नाश्ता बनाती हैं.. स्त्रियाँ किस मिट्टी की बनी होती हैं उन्हें ठण्ड क्यों नहीं लगती..उस वक्त आप उन्हें ममतामई ,महान, देवी और जाने क्या कह कर बेवकूफ बना ले जाते हैं..तब चुटकुले आपकी हलक में फंस जाते हैं.. मई जून की गर्मी में जब चौका तप रहा होता है आप एयर कंडिशनर, कूलर पंखा( जो भी आपकी हैसियत में हो) में बैठे होते है आपके लिए गरमागरम फुल्के उतारे जा रहे होते हैं । कभी उनके साथ उस गर्मी में जाकर काम करके देखिये शहरी औरतें तो सुविधाजनक कपड़ों में होती हैं ग्रामीण स्त्रियाँ सिंथेटिक साड़ियों में सिर ढंके आधा जीवन चौके में बिता देती हैं । उनकी पीठ पेट गर्दन पर घमौरियों की परतें चढ़ती जाती है । घर का वह हिस्सा जो सबसे गर्म होता है वहां ए सी पंखा कूलर क्यों नहीं लगता सोचियेगा कभी .. अधिकाँश पुराने घरों में रसोई में खिड़की तक नहीं होती थी..और कभी

औरत क्या है ?

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  जब कोई औरत बच्चे की पैदाइश के वक्त दर्द से चीख रही होती है, तड़प रही होती है तो मेरा दिल चाहता है कि मै उस वक्त उसके पति को ला कर इधर खडा करू ताकि उसे पता चले की उसकी बीवी उसके वंश को बढ़ाने की खातिर कैसे तड़प रही है ताकि उसे बाद मे ये ना कह सके कि " तुमने क्या किया है मेरे लिए..?? तुमने औलाद पैदा कर के कोई अनोखा काम नही किया! कभी उसे घर से निकाल देने और तलाक़ की धमकी ना दे, एक पल मे ना कह दे उसके माँ बाप को के ले जाओ अपनी बेटी को! काश, काश के एक पल मे औरत को एक कौडी का कर देने वाले मर्द भी उस दर्द का अंदाजा कर सके जो बीस हड्डियो के एक साथ टूटने के बराबर होती है! औरत..... औरत क्या है ? हॉट है, चोट है, या सड़क पर गिरा नोट है? अकेली दिखती है तो,.ललचाती है,.बहलाती है, बड़े-बड़े योगियों को भरमाती है अपनी कोख से जनती है, पीर पैगम्बर फिर भी पाप का द्वार कहलाती है चुप रहना ही स्वीकार्य है, बस बोले तो मार दी जाती है। प्रेम और विश्वास है गुण उसका उन से ही ठग ली जाती है। जिस को पाला निज वत्सल से जिस छाती से जीवन सींचा उस छाती के कारण ही वो उन की नजरों में आती है। मेरा तन मेरा है, कह दे तो मर

वो कैसी औरतें थीं...

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  वो कैसी औरतें थीं... जो गीली लकड़ियों को फूंक कर चूल्हा जलाती थीं जो सिल पर सुर्ख़ मिर्चें पीस कर सालन पकाती थीं सुबह से शाम तक मसरूफ़, लेकिन मुस्कुराती थीं भरी दोपहर में सर अपना ढक कर मिलने आती थीं जो दरवाज़े पे रुक कर देर तक रस्में निभाती थीं पलंगों पर नफ़ासत से दरी-चादर बिछाती थीं बसद इसरार मेहमानों को सिरहाने बिठाती थीं अगर गर्मी ज़्यादा हो तो रुहआफ्ज़ा पिलाती थीं जो अपनी बेटियों को स्वेटर बुनना सिखाती थीं जो "क़लमे" काढ़ कर लकड़ी के फ्रेमों में सजाती थीं दुआएं फूंक कर बच्चों को बिस्तर पर सुलाती थीं अपनी जा-नमाज़ें मोड़ कर तकिया लगाती थीं कोई साईल जो दस्तक दे, उसे खाना खिलाती थीं पड़ोसन मांग ले कुछ तो बा-ख़ुशी देती-दिलाती थीं जो रिश्तों को बरतने के कई गुर सिखाती थीं मुहल्ले में कोई मर जाए तो आँसू बहाती थीं कोई बीमार पड़ जाए तो उसके पास जाती थीं कोई त्योहार पड़ जाए तो ख़ूब मिलजुल कर मनाती थीं वह क्या दिन थे किसी भी दोस्त के हम घर जो जाते थे तो उसकी माँ उसे जो देतीं वह हमको खिलाती थीं मुहल्ले में किसी के घर अगर शादी की महफ़िल हो तो उसके घर के मेहमानों को अपने घर सुलाती थी

हॉ मैं पुरुष हूँ...

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  हॉ मैं पुरुष हूँ...!! एक साधारण पुरुष... शिव नहीं... जो कि सती की प्रदीप्त चिता को हथेली पर रखकर सम्पूर्ण विश्व में तान्डव कर सकूँ... शायद शिव जी द्वारा सती के लिए किया गया यह कार्य किसी भी पुरुष का एक स्त्री के लिए सर्व सम्पूर्ण समर्पण था..!!! मै सम्पूर्ण समर्पण नही कर पाऊँगा पर ईश्वर ना करे कि ऐसा हो... फिर भी यदि ऐसा होता है तो उस दिन दो चिताएँ जलेंगी... एक श्मशान घाट पर तो दूसरी इस हृदय में, श्मशान घाट की चिता ठन्डी भी पड जाय पर हृदय की चिता अनवरत जलती रहेगी... हमेशा हमेशा के लिए....!!!! मैं पुरुष हूँ....  लेकिन फिर भी मैं पुरुरवा नही हू... कि उर्वशी के प्रेम में उत्तराखन्ड की भूमि नापता रह जाऊँ... मेरा प्रेम मेरी प्रेमिका के लिए सच्चा होगा... परन्तु वह इतना बलशाली नही होगा कि मेरी जिम्मेदारियो से मुझे विमुख करके सिर्फ अपनी तरफ खींच ले जाय...!!!! मैं पुरुष हूँ....  पर मै महाराजा अज नहीं कि रानी इन्दुमती के मृत्यु के कुछ समय पश्चात ही अपने प्राण त्याग दूँगा... मै जीवित रहूँगा.. पर जब रोज की भागदौड से रोज की व्यस्तता से वापस लौटकर अपने मकान पर पहुचूगा तो वहॉ से मेरे तिल तिल घटने की

तू एक बार लड़का बन कर तो देख...

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लाड प्यार से ज्यादा जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाया जाता है.. कितनी मुश्किल से कमाया जाता है पैसा.. बचपन से बस यही सिखाया जाता है..।। तू लड़का है, तू किसी हाल मे रो नहीं सकता है.. खिलौना टूटे या दिल टूटे.. तू पलके भिगो नहीं सकता है..।। किसी के दिल का नूर है तू.. किसी की मांग का सिंदूर है तू.. कौन समझेगा और किसे समझाएगा कि,  कितना थकान से चूर है तू..।। तू तो मर्द है, रोकर दिखा नहीं सकता.. कितना भी टूटा हो दिल तेरा, तू आंसू बहा नही सकता..।। तू दिन-रात, सुबह-शाम ख्वाहिशों की भट्ठी मे जलकर तो देख.. तू एक बार लड़का बनकर तो देख..।। क्या तू देख पाएगा इस उम्र मे मां बाप को काम करते हुए, या फिर देख पाएगा बीवी बच्चों को अभाव मे पलते हुए..।। तुझे कृष्ण बनकर प्रेम का राग सुनाना पड़ेगा.. मन मे बसी हो राधा लेकिन रूक्मणी से ब्याह रचाना पड़ेगा..।। तू अपनी इच्छाओं पर आदर्शों का चोला पहन कर तो देख.. तू एक बार लड़का बनकर तो देख..।। 🌷🙏

आपके जीवन का रंग ......

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  एक सिद्ध गुरु जी ने 30 वर्षीय युवक को भरी सभा में खडा कर पूछा कि आप मुम्बई मेँ जुहू चौपाटी पर चल रहे हैं और सामने से एक सुन्दर लडकी आ रही है तो आप क्या करोगे ? युवक ने कहा - उस पर नजर जायेगी, उसे देखने लगेंगे। गुरु जी ने पूछा - वह लडकी आगे बढ गयी तो क्या पीछे मुडकर भी देखोगे ? लडके ने कहा - हाँ, अगर धर्मपत्नी साथ नहीं है तो। (सभा में सभी हँस पडे) गुरु जी ने फिर पूछा - जरा यह बताओ वह सुन्दर चेहरा आपको कब तक याद रहेगा ? युवक ने कहा 5 - 10 मिनट तक, जब तक कोई दूसरा सुन्दर चेहरा सामने न आ जाए। गुरु जी ने उस युवक से कहा - अब जरा सोचिए, आप जयपुर से मुम्बई जा रहे हैं और मैंने आपको एक पुस्तकों का पैकेट देते हुए कहा कि मुम्बई में अमुक महानुभाव के यहाँ यह पैकेट पहुँचा देना। आप पैकेट देने मुम्बई में उनके घर गए। उनका घर देखा तो आपको पता चला कि ये तो बडे अरबपति हैं। घर के बाहर 10 गाडियाँ और 5 चौकीदार खडे हैं। आपने पैकेट की सूचना अन्दर भिजवाई तो वे महानुभाव खुद बाहर आए। आप से पैकेट लिया। आप जाने लगे तो आपको आग्रह करके घर में ले गए। पास में बैठकर गरम खाना खिलाया। जाते समय आप से पूछा - किसमें आए हो ?

कुछ पुरुष अनोखे होते है....

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  कुछ पुरुष अनोखे होते है....  वो जिस किसी पे भी दिल हारते है...  अपना सब कुछ हार देते है... वो सिर्फ प्रेम नहीं करते कोई पूजा हो जैसे ऐसे पूजते है!! कुछ पुरुष अनोखे होते है... वो माँग नहीं भरते लेकिन...  ज़िन्दगी का खालीपन भर देते है.... वो समाज के सामने नहीं आते... लेकिन तुम्हे समाज से लड़ने की ताकत दे देते है!! कुछ पुरुष अनोखे होते है... वो कोई मंगलसूत्र नहीं डालते गले मे... वो डालते है तो ऐसा सूत्र डालते है की जैसे मानो नया जन्म हुआ हो तुम्हारा!! कुछ पुरुष अनोखे होते है... वो कसमे झूठी नहीं खाते है...  वो हज़ार तरह की बाते करते है...  मग़र उन बातों को जितना हो सकता है वो उतना सच करने में लग जाते है!! कुछ पुरुष अनोखे होते है... कुछ पुरुष वाकई में अनोखे ही होते है... आज की इस बदलती हुई दुनिया मे भी तुमको सच्चे प्रेम का महत्व समझाते है... प्रेम पूजा भी हो सकता...  प्रेम पवित्र भी हो सकता है...  वो ये सब दिखलाते है!! कुछ पुरुष अनोखे होते हैं.. 🌹

जब वो मांग में सिंदूर आते ही ....

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  जब वो मांग में सिंदूर आते ही लड़की से औरत बन जाती है। जब वो शादी के तुरंत बाद दीदी से आंटी बन जाती है जबकि उसका पति दो बच्चों के बाद भी भैया ही बना रहता है। जब शादी की अगली सुबह बेटे को आराम करने दिया जाता है और उसे रसोई में प्रवेश मिल जाता है। सबकी पसंद का खाना बना के खिलाओ ,अपनी पसंद का कोई पूछेने वाला नही जब उसकी हर ग़लती भी उसकी और उसके पति की हर ग़लती भी उसी की ग़लती कहलाती है। जब उसका शादी से बाहर का आकर्षण उसको धोखे बाज़ बना देता है और उसके पति का आकर्षण उसके प्यार की कमी कहलाता है। जब मायके आने के लिए किसी की इजाजत जरूरी हो जाती है। जब मायके की यादों की उदासी को उसके काम ना करने का बहाना करार दिया जाता है। जब जरूरत पड़ने पर ना वो पति से पैसे मांग पाती है और ना ही पिता से। जब उसकी माँ उसे समझौता करने को कहती रहती है। और अपनी सफल शादी की दुहाई देती रहती है जब ऑफिस से थक कर आने के बाद कोई पानी तक नहीं पूछता है। जब रात को पति के बाद सोती है और सुबह पति से पहले उठती है। जब अपने सपने/ख्वाहिशें भूल जाती है और कोई पुरानी सहेली उसको याद दिलाती है। शादी सभी के लिए उतनी मीठी नहीं होती जितनी

बीवी का दिमाग ...

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   बीवी गांव वाली हो या पढ़ी-लिखी, सभी औरतों का दिमाग ऊपर वाला एक ही फैक्टरी में  बनाता है !!!! 😝 😝 आप उस दिमाग को जानना चाहते हैं ना.. ➡चावल में पानी ज्यादा हुआ तो...            💁  - "चावल नया था," ➡रोटियाँ कड़क हो गई तो...      💁- "कमबख्त ने अच्छा आटा पीस कर ही नहीं दिया," ➡चाय ज्यादा मीठी हो गयी...        💁 - "शक्कर ही मोटी थी" चाय पतली हो गयी तो ... 💁"दूध में पानी ज्यादा था," ➡शादी या किसी Function में जाते समय...              💁 - "कौन सी साड़ी पहनूं ?" "मेरे पास अच्छी साड़ी ही नहीं है !" ➡घर पर जल्दी आ गए तो...              💁 -"आज जल्दी कैसे आ गए ?" ➡लेट हो गए तो....          💁 - "इतने वक़्त तक कहाँ थे ?" ➡कोई चीज सस्ती मिल जाए तो...     💁- "तुमको सभी फंसा देते हैं" ... ➡महंगी लाई तो...          💁-"तुमको किसने कहा था लाने को ?" ➡खाने की तारीफ़ कर दो तो...            💁 - "मैं तो रोज ऐसा ही खाना बनाती हूँ ." ➡खाने को गलत कहा तो...     💁  - "तुमको तो मेरी कदर ही

ये लौकी भगवान ने क्यों बनाई ??

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इसकी दो वजह हो सकती है ! पहली बात तो ये कि वो यह चाहते हों कि औरतो के पास कम से कम एक आध तो ऐसा मारक हथियार तो हो ही जिससे वो आदमियो को परास्त कर सके ! औरत लौकी बनाये बिना रह नही सकती ! लौकी नाराजगी जताने का सबसे कारगर तरीका है औरतो का ! थाली मे लौकी देखते ही बेवकूफ से बेवकूफ आदमी ये समझ जाता है कि उससे कोई बडी चूक हो चुकी है ! आदमी लौकी की वजह से ही दबता है अपनी बीबी से ! कायदे से रहता है ! आदमी को तमीज सिखाने का क्रैडिट यदि किसी को दिया जा सकता है तो वो लौकी ही है ! मेरी यह समझ मे यह बात कभी आयी नही कि लौकी से कैसे निपटें ! लौकी आती है थाली में तो थाली थरथराने लगती है ! रोटियाँ मायूस होकर किसी कोने मे सिमट जाती हैं ! जीभ लटपटा जाती है ! आप अचार, चटनी, पापड या दही के भरोसे हो जाते हैं ! हर कौर के बाद पानी का गिलास तलाशते हैं आप ! आपको लगने लगता है कि आपकी तबियत खराब है, आप ICU मे भर्ती हैं ! बंदा डिप्रेशन मे चला जाता है ! दुनिया वीरान वीरान सी महसूस होती है !  कुछ अच्छा होने की कोई उम्मीद बाकी नही रह जाती ! मन गिर जाता है ! लगता है अकेले पड गये हैं !   दरअसल लौकी, लौकी नही होती, वो आप

स्त्री...

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स्त्री प्रेम में रो सकती है, सो सकती है और किसी को धो भी सकती है। स्त्री प्रेम में टूट सकती है, रूठ सकती है, लूट सकती है और किसी को कूट भी सकती है। स्त्री प्रेम में जोड़ सकती है, तोड़ सकती है, मोड़ सकती है और किसी का सिर फोड़ भी सकती है। स्त्री प्रेम में डर सकती है, वर सकती है, मर सकती है और किसी के एक दो धर भी सकती है। स्त्री प्रेम में भटक सकती है, खटक सकती है, मटक सकती है और पटक भी सकती है। स्त्री प्रेम में लजा सकती है, सजा सकती है और किसी के कान नीचे बजा भी सकती है। स्त्री प्रेम में ढल सकती है, गल सकती है, जल सकती है और किसी को छल भी सकती है। स्त्री प्रेम में झेल सकती है तो किसी के साथ खेल भी सकती है। स्त्री प्रेम में गा सकती है, आ सकती है और जा भी सकती है। नारी सबको प्यारी हो सकती है, तो सब पे भारी भी हो सकती है 🌹🌹

गंदे पापा ....

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मिडिल क्लास फॅमिली में  पली बढ़ी खुशबू  अपने जिंदगी में सबसे ज्यादा गुस्सा अपने पापा  से थी। पापा के लिए उसके मन में नफरत के अलावा कुछ न था। 22 साल की हो चुकी खुशबू  ने आज तक एक भी वेलेंटाइन  नहीं बनाया था...जबकि उसकी क्लास मेट्स.... हर साल अलग अलग बॉयज के साथ वेलेंटाइन डे मनाती थी ... खैर,  आज खुशबू  आग्नेय से शादी के वक़्त सबसे ज्यादा खुश थी... कि आखिर इस बेहद स्ट्रिक्ट, कड़क और डिसिप्लिनड  पापा से छुटकारा तो मिला।"ये न करो" "वो न करो" ऐसे कपड़े न पहनों",लेट नाईट पार्टियाँ नहीं,"लड़कों से दोस्ती नहीं।" आज तक एक  स्मार्टफोन खरीद तक नहीं दिया...!... सारे सपनों और अरमानों को अपने नैरो माइंडेड सोच के कारण कुचलकर रख दिया ।अब मैं आग्नेय के साथ सारी दबी इच्छाएँ पूरी करूँगी।....आग्नेय और खुशबू  पिछले तीन सालों से एक ही कॉलेज में साथ साथ पढ़ते थे और एक दूसरे को अच्छी तरह जानते थे एक दूसरे की पसंद नापसंद का अच्छे से ख्याल रखते थे। खुशबू  ने बहुत डरते डरते पापा  से आग्नेय के साथ शादी की इच्छा जताई थी।और पापा  ने आग्नेय और उसके परिवार वालों से मिलकर शादी के लिए हामी

मेरे मन की अलमारी ..

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   उम्र का मौसम बदलने लगा है तो मन की अलमारी लगाने बैठ गई, सबसे ऊपर हैंगर में टंगे मिले कुछ सपने, जो अब पुराने पड़ चुके हैं, सोचा या तो किसी को दे दिए जाएं या ठीक-ठाक करके एक बार दोबारा ट्राई करके देखें जाएं क्या पता इस उम्र में भी फिट हो जाएं, लेकिन फिर एक डर भी तो है, कहीं अब आऊटडेटिड लगे तो, लेकिन देखती हूं अल्टर और डाई करवा के ! एक रैक में कुछ धूल जमे रिश्ते तहाए पड़े हैं कागज़ों में लिपटे, जब बनाए तब लगा था हमेशा चलेंगें , लेकिन जल्दी ही बेरंग हो गए , कई उधड़ गए , कुछ बड़े हो गए हैं , कुछ आज भी छोटे लगते हैं ! एक दो रिश्ते तो कोई राह चलता दे गया था, मन नहीं था रखने का , लेकिन वाकई , वही खूब चल रहे हैं आज भी, पहले से ज्यादा चमक ,विश्वास और अपनापन! मालूम है ? जब ये नए थे , तब इतने चमकदार नहीं थे, इनकी चमक वक्त के साथ बढ़ी है ! कुछेक महंगे वादे पड़े हैं लाकर में, कुछ तो वक्त जरूरत पर बेच दिए, कुछ आज भी पहन कर इठलाती हूं, कुछ यादें पड़ी हैं चोर लाकर वाली सुनहरी  डिबिया में , माँ के आँचल की खुशबू, स्कूल की आधी छुट्टी में टिफिन से निकले आलू के परांठे बहन की ठिटोली, पहली तनख्वाह, मेरी वि

जागो भारत वासियो जागो

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   मेरे परदादा, संस्कृत और हिंदी जानते थे। माथे पे तिलक, और सर पर पगड़ी बाँधते थे।। फिर मेरे दादा जी का, दौर आया। उन्होंने पगड़ी उतारी, पर जनेऊ बचाया।। मेरे दादा जी, अंग्रेजी बिलकुल नहीं जानते थे। जानना तो दूर, अंग्रेजी के नाम से कन्नी काटते थे।।   मेरे पिताजी को अंग्रेजी, थोड़ी थोड़ी समझ में आई। कुछ खुद समझे, कुछ अर्थ चक्र ने समझाई।। पर वो अंग्रेजी का प्रयोग, मज़बूरी में करते थे। यानि सभी सरकारी फार्म, हिन्दी में ही भरते थे।। जनेऊ उनका भी, अक्षुण्य था। पर संस्कृत का प्रयोग, नगण्य था।। वही दौर था, जब संस्कृत के साथ, संस्कृति खो रही थी। इसीलिए संस्कृत, मृत भाषा घोषित हो रही थी।। धीरे धीरे समय बदला, और नया दौर आया। मैंने अंग्रेजी को पढ़ा ही नहीं, अच्छे से चबाया।। मैंने खुद को, हिन्दी से अंग्रेजी में लिफ्ट किया। साथ ही जनेऊ को, पूजा घर में शिफ्ट किया।। मै बेवजह ही दो चार वाक्य, अंग्रेजी में झाड जाता हूँ। शायद इसीलिए समाज में, पढ़ा लिखा कहलाता हूँ।। और तो और, मैंने बदल लिए कई रिश्ते नाते हैं। मामा, चाचा, फूफा, अब अंकल नाम से जाने जाते हैं।। मै टोन बदल कर वेद को वेदा, और राम को रामा कहता हूँ। और अ

लाचार आँखे ...

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  लघुकथा -- रजनी अपने विदेश में पढ़ रहे बेटे के जन्मदिन पर इसबार... वृद्धाश्रम गई थी। हर साल वह ऐसे ही अलग-अलग जगह जाती थी।  वृद्धाश्रम के बाहर बगीचे में बहुत से बुजुर्ग कुछ काम कर रहे थे कुछ बैठे थे, कुछ बगीचे में पानी दे रहे थे..कुछ पौधों की कटिंग में व्यस्त थे।  तभी उसकी नजर एक बहुत बुजुर्ग अम्मा जो एक कोने में अकेले बैठी कंपकपातें हाथों से अपने बालों को सुलझा रही थी।    वह उनके पास गई और बोली लाइये मैं आपके बालों को सुलझा देती हूँ कहकर कंघा उनके हाथों से ले लिया। चेहरा झुर्रियों  से भरा पर सुंदर था शायद बहुत सुंदर रही होगी वह अपने समय में।   वह अम्मा बहुत खुश हो गई  शायद बहुत दिनों बाद किसी ने इस तरह उनके सिर को सहलाया था। उनकी आँखों भर आई थी। वह उसको प्यार भरी मार्मिक निगाहों से देखने लगी। उसने भी धीरे धीरे उनके बालों को अपने हाथों से सहला दिया ,वह बहुत भावुक हो गई और उसको अपनी कहानी सुनाने लगी।    तीन बच्चों की माँ थी वह,  जिनको उन्होनें पति के  अचानक गुजर जाने बाद खुद के बल पर पाला था।  आज वह तीनों अपने परिवार बीबी बच्चों को संभालने बहुत व्यस्त है । बड़ी कम्पनियों में जॉब करते है,

एक चुटकी सिंदूर

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  आखिर तुम्हारा क्या है मेरे पास ? जो मुझपर इतना हक जमाते हो _ न तुमने मुझे जन्म दिया , न तुमने मुझे बड़ा किया _ न पढ़ाया न ही लिखाया , डर पर कैसे पानी है विजय वो सिखाया , मैं खुद को पहचान और समझ सकूं इस काबिल ही बनाया !! फिर क्यों मुझपर अपना अधिकार जताते हो ? मुझे जन्म मेरी माँ ने दिया _ सुरक्षा पिता ने दिया , भाई बहनों ने लाड़ दिया ! मुझे इस काबिल बनाया कि मैं _ अपना घर छोड़ दूसरे घर को संभाल सकूं  ! पिता ने कभी भी उनके खिलाये निवाले का , एहसान नहीं जताया !! जी करता था तो करती थी काम _ नहीं करता था तो भी किसी ने काम के लिए नहीं सुनाया ! फिर क्यों तुम मुझे ताने सुनाते हो ? अरे हाँ याद आया _ है तुम्हारा दिया कुछ मेरे पास जिसे सदियों से , एक पुरुष देता आया है औरत को _ वो है एक चुटकी सिंदूर , जिसे वो चाहे न चाहे लेना _ वो मांगे न मांगे किसी से , पर उसे दिया जाता है  ! "रिवाज जो है " !! तुमने भी दी है मुझे भेंट स्वरूप एक चुटकी सिंदूर _ जिसे मैंने स्वेच्छा के स्वीकार किया , सिर्फ इस भरोसे पर कि तुम भी उतना ही दोगे_ मुझे मान जितना पिता ने दिया  ! उतना ही करोगे लाड़ जितना माँ ने किय

नहीं.. अभी मैं कबाड़ नहीं हुआ हूँ

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  पत्नी के अंतिम संस्कार व तेरहवीं के बाद रिटायर्ड पोस्टमैन मनोहर गाँव छोड़कर मुम्बई में अपने पुत्र सुनील के बड़े से मकान में आये हुए हैं। सुनील बहुत मनुहार के बाद यहाँ ला पाया है। यद्यपि वह पहले भी कई बार प्रयास कर चुका था किंतु अम्मा ही बाबूजी को यह कह कर रोक देती थी कि 'कहाँ वहाँ बेटे बहू की ज़िंदगी में दखल देने चलेंगे। यहीं ठीक है। सारी जिंदगी यहीं गुजरी है और जो थोड़ी सी बची है उसे भी यहीं रह कर काट लेंगे। ठीक है न!' बस बाबूजी की इच्छा मर जाती। पर इस बार कोई साक्षात अवरोध नहीं था और पत्नी की स्मृतियों में बेटे के स्नेह से अधिक ताकत नहीं थी इसलिए मनोहर बम्बई आ ही गए हैं। सुनील एक बड़ी कंस्ट्रक्शन कम्पनी में इंजीनियर है। उसने आलीशान घर व गाड़ी ले रखी है। घर में घुसते ही मनोहर ठिठक कर रुक गए। गुदगुदी मैट पर पैर रखे ही नहीं जा रहे हैं उनके। दरवाजे पर उन्हें रुका देख कर सुनील बोला - "आइये बाबूजी, अंदर आइये।" - "बेटा, मेरे गन्दे पैरों से यह कालीन गन्दी तो नहीं हो जाएगी।" - "बाबूजी, आप उसकी चिंता न करें। आइये यहाँ सोफे पर बैठ जाइए।" सहमें हुए कदमों में चलत

माँ कभी वापिस नहीं आती...

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  उम्र - दो साल -- मम्मा कहाँ है ? मम्मा को दिखा दो, मम्मा को देख लूँ, मम्मा कहाँ गयी ?... उम्र - चार  साल -- मम्मी कहाँ हो ? मैं स्कूल जाऊँ ? अच्छा bye मुझे आपकी याद आती है स्कूल में... उम्र - आठ साल -- मम्मा, लव यू, आज टिफिन में क्या भेजोगी ? मम्मा स्कूल में बहुत होम वर्क मिला है... उम्र - बारह साल -- पापा, मम्मा कहाँ है ? स्कूल से आते ही मम्मी नहीं दिखती, तो अच्छा नहीं लगता... उम्र - चौदह साल -- मम्मी आप पास बैठो ना, खूब सारी बातें करनी है आपसे... उम्र - अठारह साल -- ओफ्फो मम्मी समझो ना, आप पापा से कह दो ना, आज पार्टी में जाने दें... उम्र - बाईस साल -- क्या माँ ? ज़माना बदल रहा है, आपको कुछ नहीं पता, समझते ही नहीं हो... उम्र - पच्चीस साल -- माँ, माँ जब देखो नसीहतें देती रहती हो, मैं दुध पीता बच्चा नहीं... उम्र - अठाईस साल -- माँ, वो मेरी पत्नी है, आप समझा करो ना, आप अपनी मानसिकता बदलो... उम्र - तीस साल -- माँ, वो भी माँ है, उसे आता हैं बच्चों को सम्भालना, हर बात में दखलंदाजी नहीं किया करो... और उस के बाद, माँ को कभी पूछा ही नहीं। माँ कब बूढ़ी हो गयी, पता ही नहीं उसे। माँ तो

सफर एक कहानी ...

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ट्रेन चलने को ही थी कि अचानक कोई जाना पहचाना सा चेहरा जेनरल बोगी में आ गया। मैं अकेली सफर पर थी सब अजनबी चेहरे थे स्लीपर का टिकट नही मिला तो जेनरल डिब्बे में ही बैठना पड़ा मगर यहां ऐसे हालात में उस शख्स से मिलना जिंदगी के लिए एक संजीवनी के समान था। जिंदगी भी कमबख्त कभी कभी अजीब से मोड़ पर ले आती है ऐसे हालातों से सामना करवा देती है जिसकी कल्पना तो क्या कभी ख्याल भी नही कर सकते। वो आया और मेरे पास ही खाली जगह पर बैठ गया ना मेरी तरफ देखा ना पहचानने की कोशिश की कुछ इंच की दूरी बना कर चुप चाप पास आकर बैठ गया। बाहर सावन की रिमझिम लगी थी इस कारण वो कुछ भीग गया था मैने कनखियों से नजर बचा कर उसे देखा। उम्र के इस मोड़ पर भी कमबख्त वैसा का वैसा ही था। हां कुछ भारी हो गया था। मगर इतना ज्यादा भी नही फिर उसने जेब से चश्मा निकाला और मोबाइल में लग गया। चश्मा देख कर मुझे कुछ आश्चर्य हुआ उम्र का यही एक निशान उस पर नजर आया था कि आंखों पर चश्मा चढ़ गया था चेहरे पर और सर पे मैने सफेद बाल खोजने की कोशिश की मगर मुझे नही दिखे। मैंने जल्दी से सर पर साड़ी का पल्लू डाल लिया बालों को डाई किए काफी दिन हो गए थे मु

वे शिक्षक थे ...

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  वे शिक्षक थे, पूरी व्यवस्था के अधीक्षक थे, फिर भी पढ़ाते रहे ! जनगणना सर्वे कराते हुए, वोटर आईडी कार्ड बनाते हुए, चुनाव-उपचुनाव में व्यवस्थाएं बनाते हुए, पोलियो की दो बूंद  पिलाते हुए, वैक्सीनों की जानकारियां जुटाते हुए, वे पढ़ाते रहे ! अँगूठा छापों के मातहत रहकर, लचर व्यवस्था के मूक दर्शक बनकर शिक्षा का फैलता कारोबार देखकर वे पढ़ाते रहे ! नाम लिखवाने को, किस्मत चमकवाने को, समाज बदलवाने को, देश गढवा़ने को, वे पढ़ाते रहे! कभी बिन कुर्सियों के , कभी टूटी कुर्सियों पर, कभी नीम बुखार में, कभी गला खराश में, वे पढ़ाते रहे ! मन में ऊँचे ख्वाब लेकर, टिफिन में रोटी-दाल लेकर, शिक्षा का हाल बेहाल देखकर, सिर पर टोपी, गले में गमछा, रुमाल लेकर, वे पढ़ाते रहे ! कभी तंग कमरों में, कभी बिन कमरों के, कभी बाग में, कभी गाँव में, कभी टीन में, कभी टप्पर में, कभी शहर में, कभी छप्पर में, कभी टाट पर, कभी ठाट में, कभी सूट में, कभी बूट में, वे पढ़ाते रहे! कभी छतरी लेकर, कभी बैनर लेकर, कभी माईक पकड़कर, कभी डिजिटल होकर, वे पढ़ाते रहे! बाबुओं की डाँट सुनकर, प्रिंसिपलों की फटकार चुनकर, अभिभावको से सुनी औकात गुनकर,

प्लंबर ...

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  रसोई में नल से पानी रिस रहा था, तो मैंने एक प्लंबर को बुला लिया।   मैं उसको काम करते देख रहा था... उसने अपने थैले से एक रिंच निकाली। रिंच की डंडी टूटी हुई थी। मैं चुपचाप देखता रहा कि वह इस रिंच से कैसे काम करेगा? उसने पाइप से नल को अलग किया। पाइप का जो हिस्सा गल गया था, उसे काटना था।   उसने फिर थैले में हाथ डाला और एक पतली-सी आरी  निकाली। आरी भी आधी टूटी हुई थी।.   मैं मन ही मन सोच रहा था कि पता नहीं किसे बुला लिया हूं? इसके औजार ही ठीक नहीं तो फिर इससे क्या काम होगा? वह धीरे-धीरे अपनी मुठ्टी में आरी पकड़ कर पाइप पर चला रहा था। उसके हाथ सधे हुए थे। कुछ मिनट तक आरी आगे-पीछे किया और पाइप के दो टुकड़े हो गए। उसने गले हिस्से को बाहर निकाला और बाकी हिस्से में नल को फिट कर दिया। इस पूरे काम में उसे दस मिनट का समय लगा।   मैंने उसे मजूरी के 100 रूपये दिए तो उसने कहा कि इतने पैसे नहीं बनते साहब। आप आधे दीजिए।      उसकी बात पर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। मैंने उससे पूछा- “क्यों भाई? पैसे भी कोई छोड़ता है क्या?” लेकिन उसके उत्तर ने मुझे सच का ऐसा साक्षात्कार कराया की मैं हैरान हो गया।   उसने कहा कि 

औरत तो पराई होवे ...

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  औरत तो पराई होवे, यह शब्द आज भी मेरे कानों में गूंजते हैं हुआ यूं था कि एक बार मेरे पति के साथ मुझे उनके जान पहचान वालों के यहां जाना पड़ा।  उनके साथ उनके सहकर्मी जिनकी माताजी का पथरी का ऑपरेशन हुआ था, सो उन्हें देखने जाना था जैसे ही हम वहां पहुंचे तो उनकी माताजी बिस्तर से उठ कर बैठ गई ; और अपनी बहू को आवाज लगाते हुए बोली की मेहमानों के लिए चाय पानी का इंतजाम किया जाए।  बहु बहुत पढ़ी लिखी थी और दहेज भी बहुत सारा लाई थी परंतु मॉडर्न थी, यूं तो सासु जी प्रसन्न हीं थी परंतु उन्हें एक कमी बार-बार खल रही थी कि बहू ने जींस टॉप पहना हुआ है! कोई बात नहीं जींस टॉप पहना हुआ है तो पर सिर पर कुछ रख तो सकती है! चुन्नी से ढक तो सकती है ! घुंघट ना करें," पर सिर पर तो कुछ ना कुछ होना ही चाहिए " हमारे यहां तो ऐसा चलता नहीं है ऐसा कह कर सासु जी ने अपने लाड प्यार सबका सत्यानाश कर दिया।वे अपने मन को समझा रहीं थी कि नहीं बहुत अच्छी है पर फिर भी हमारे यहां दुनिया क्या कहती है , दुनिया क्या कहेगी, ऐसा सोच कर वे बार-बार दुखी हो जाती इस पर मैंने उन्हें समझाया कि कोई बात नहीं शर्म घुंघट में नहीं आंख

मां के पल्लू ...

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  गुरुजी ने कहा कि "मां के पल्लू" पर निबन्ध लिखो.. 😂😂 तो लिखने वाले छात्र ने क्या खूब लिखा                        आदरणीय गुरुजी जी..      माँ के पल्लू का सिद्धाँत माँ को गरिमामयी छवि प्रदान करने के लिए था.   इसके साथ ही ... यह गरम बर्तन को चूल्हा से हटाते समय गरम बर्तन को पकड़ने के काम भी आता था. पल्लू की बात ही निराली थी. पल्लू पर तो बहुत कुछ लिखा जा सकता है.  पल्लू ... बच्चों का पसीना, आँसू पोंछने, गंदे कान, मुँह की सफाई के लिए भी इस्तेमाल किया जाता था.    माँ इसको अपना हाथ पोंछने के लिए तौलिया के रूप में भी इस्तेमाल कर लेती थी. खाना खाने के बाद पल्लू से  मुँह साफ करने का अपना ही आनंद होता था. कभी आँख में दर्द होने पर ... माँ अपने पल्लू को गोल बनाकर, फूँक मारकर, गरम करके आँख में लगा देतीं थी, दर्द उसी समय गायब हो जाता था. माँ की गोद में सोने वाले बच्चों के लिए उसकी गोद गद्दा और उसका पल्लू चादर का काम करता था. जब भी कोई अंजान घर पर आता, तो बच्चा उसको माँ के पल्लू की ओट ले कर देखता था. जब भी बच्चे को किसी बात पर शर्म आती, वो पल्लू से अपना मुँह ढक कर छुप जाता था. जब बच्चों को