स्त्री...



स्त्री प्रेम में रो सकती है, सो सकती है और किसी को धो भी सकती है।

स्त्री प्रेम में टूट सकती है, रूठ सकती है, लूट सकती है और किसी को कूट भी सकती है।

स्त्री प्रेम में जोड़ सकती है, तोड़ सकती है, मोड़ सकती है और किसी का सिर फोड़ भी सकती है।

स्त्री प्रेम में डर सकती है, वर सकती है, मर सकती है और किसी के एक दो धर भी सकती है।

स्त्री प्रेम में भटक सकती है, खटक सकती है, मटक सकती है और पटक भी सकती है।

स्त्री प्रेम में लजा सकती है, सजा सकती है और किसी के कान नीचे बजा भी सकती है।

स्त्री प्रेम में ढल सकती है, गल सकती है, जल सकती है और किसी को छल भी सकती है।

स्त्री प्रेम में झेल सकती है तो किसी के साथ खेल भी सकती है।

स्त्री प्रेम में गा सकती है, आ सकती है और जा भी सकती है।

नारी सबको प्यारी हो सकती है, तो सब पे भारी भी हो सकती है 🌹🌹

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