लाचार आँखे ...

 


लघुकथा --

रजनी अपने विदेश में पढ़ रहे बेटे के जन्मदिन पर इसबार... वृद्धाश्रम गई थी। हर साल वह ऐसे ही अलग-अलग जगह जाती थी। 


वृद्धाश्रम के बाहर बगीचे में बहुत से बुजुर्ग कुछ काम कर रहे थे कुछ बैठे थे, कुछ बगीचे में पानी दे रहे थे..कुछ पौधों की कटिंग में व्यस्त थे।


 तभी उसकी नजर एक बहुत बुजुर्ग अम्मा जो एक कोने में अकेले बैठी कंपकपातें हाथों से अपने बालों को सुलझा रही थी। 


  वह उनके पास गई और बोली लाइये मैं आपके बालों को सुलझा देती हूँ कहकर कंघा उनके हाथों से ले लिया।
चेहरा झुर्रियों  से भरा पर सुंदर था शायद बहुत सुंदर रही होगी वह अपने समय में।


  वह अम्मा बहुत खुश हो गई  शायद बहुत दिनों बाद किसी ने इस तरह उनके सिर को सहलाया था।
उनकी आँखों भर आई थी। वह उसको प्यार भरी मार्मिक निगाहों से देखने लगी। उसने भी धीरे धीरे उनके बालों को अपने हाथों से सहला दिया ,वह बहुत भावुक हो गई और उसको अपनी कहानी सुनाने लगी।


   तीन बच्चों की माँ थी वह,  जिनको उन्होनें पति के  अचानक गुजर जाने बाद खुद के बल पर पाला था।
 आज वह तीनों अपने परिवार बीबी बच्चों को संभालने बहुत व्यस्त है ।


बड़ी कम्पनियों में जॉब करते है, पत्नियां भी नौकरी करती  है ।सभी व्यस्त है मुझकों कौन संभालता ।थोड़े थोड़े दिन अलग बेटों के पास रहती  रहती थी।


एक दिन तीनों ने यह कहकर कि माँ आप घर में अकेली रहती हो हम लोगों को भी देर हो जाती है इस कारण आपका पूरा ध्यान नही रख पाते है,यहाँ पर तुम्हें अपने हमउम्र साथी मिलेंगे समय भी कट जायेगा तुमको अकेलापन भी नही लगेगा ये कह कर छोड़ गये मुझे यहां पर....! 


हम जब भी वक्त मिलेगा छुट्टी होगी आपसे मिलने आ जायेंगे व त्यौहार पर आपको घर ले जाया करेंगे ,और उस दिन से वह बस उनका इन्जार कर रही है।


उनकी लाचार आंखों से बहते आंसू दर्द का एहसास करा रहे थे अपने बच्चों से दूर रहने का दर्द, जिसको वह भी अंदर तक महसूस कर पा रही थी।


 क्योंकि वह भी तो अपने बेटे से दूर थी.....! उन आँखों मे वह देख पा रही थी इंतजार अपने बच्चों के आने का उनसे कभी मिलने की आस में....!

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