दिसम्बर....सिर्फ साल का अंतिम महीना नहीं होता ...




दिसम्बर, महीना होता है जब पूरे साल के दरम्यान गई गुजरी हर एक बात एक बार फिर आपकी आंखों के आगे से घूम जाती है। जब ओस भरी सुबह और मुलायम कम्बल के रेशों के बीच नींद खुलती है और अंगड़ाई लेते हुए आप बिस्तर छोड़ने की कोशिश करते हैं, उस वक़्त एक ख्याल जरूर आता है मन मे कि आज दिसम्बर की फलां तारीख हो गई, अब बस इतने दिन और बचे हैं इसे पूरा होने को! भले ही यह ख्याल किसी और महीने में आए या ना आए, दिसम्बर में जरूर आता है।


इस दिसम्बर की धूप सिर्फ अपने साथ उजाला और तन को सुकून देने वाली गर्माहट ही नहीं लेकर आती, बल्कि वो लेकर आती है उन तमाम गुजरे हुए पलों को और उन सभी खट्टी मीठी यादों को, जिनमे से कुछ को आप दोबारा जी लेना चाहते हैं , उस समय मे वापस पहुँचकर, तो कुछ से बस पीछा छुड़ा लेना चाहते हैं!


यह वो महीना होता है जब एक साथ उत्साह और अफसोस दोनों आपके पीछे पड़ जाते हैं! उत्साह, पूरे साल भर किए गए अच्छे कामों का और आपके द्वारा गुजारे गए खूबसूरत पलों का.....और अफसोस उन गलतियों के लिए, जिन्होने भले ही आपके सीख तो दी, लेकिन नुकसान भी किया!


इसी दिसम्बर की गुनगुनाती दोपहरी में छत पर बैठे, पेड़ों को हिलते काँपते देखते हुए आप कभी कुछ याद करके मुस्कुरा भी उठते हैं तो कभी अगला ही ख्याल आपको अचानक से डूबा देता है और मुंह लटक जाता है आपका!
मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि जाने क्यों इस महीने में, इस मौसम में अचानक से मुझे भी बस कहीं डूब जाने को, किसी ख्याल में खो जाने का मन करने लगता है! अचानक से धूम धड़ाक वाले गानों से उकता कर मन गुलाम अली और जगजीत जी को सुनना चाहने लगता है!


वो डूब जाना चाहता है जगजीत जी की सरगम में, तो कभी गुलाम अली जी के शब्दों में छलकते दर्द में! कभी अहमद और मोहम्मद हुसैन साहब की गजलों में तो कभी जॉन एलिया और निदा फाजली की शायरी में!
यह दिसम्बर..... नहीं लेकर आता सिर्फ गिने चुने इकत्तीस दिन, बल्कि यह लेकर आता है तमाम रूहानियत और रुमानियत भरे एहसास, जिन्हें एक बार मे न तो स्याही से कागज पर उतारना मुमकिन है, और ना ही अंगूठे से टाइप कर पाना!


यह दिसम्बर.... सिर्फ साल का अंतिम महीना भर नहीं, बल्कि पूरे साल बिताई हुई आपकी जिंदगी का निचोड़ है, सारांश है!


यह दिसम्बर.... सिर्फ साल का अंतिम महीना भर नहीं!

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