प्रणाम करने का स्वभाव..

 


प्राचीन काल में मृकण्ड नाम के एक विख्यात मुनि थे। उनका एक पुत्र था।

एक दिन एक सिद्ध ज्ञानी ने उस बालक की ओर बहुत गंभीरता से देखा और कुछ गहन विचार किया।

पिता ने पूछा कि मेरे पुत्र की कितनी आयु है...?

सिद्ध ज्ञानी बोले कि इसके जीवन में अब केवल 6 माह और शेष रह गए हैं।

उस बालक की आयु केवल 5 वर्ष 6 माह की थी।

उस सिद्ध ज्ञानी की बात सुनकर बालक के पिता ने बालक का उपनयन संस्कार कर दिया और उससे कहा बेटा तुम जबभी जिस किसी मुनि को देखो उन्हें प्रणाम करो।

सप्तऋषियों ने उस बालक को दीर्घायु होने का आशीर्वाद दिया ।

इतना करने के बाद जब उन्होंने उसकी आयु पर विचार किया तब 5 ही दिन की आयु शेष जानकर उन्हें बड़ा दु:ख हुआ।

फिर वे उस बालक को लेकर ब्रह्मा जी के पास गए।

बालक ने ब्रह्मा जी के चरणों में प्रणाम किया।

ब्रह्मा जी ने भी उसे चिरायु होने का आशीर्वाद दिया।

पितामह का वचन सुनकर ऋषियों को बड़ी प्रसन्नता हुई ,तत्पश्चात ब्रह्मा जी ने उनसे पूछा "आप लोग किस काम से यहां आए हैं तथा यह बालक कौन है.....?"

ऋषियों ने कहा कि यह बालक मृकण्ड का पुत्र है, इसकी आयु क्षीण हो चुकी है। इसका सब को प्रणाम करने का स्वभाव हो गया है।  एक दिन हम लोग उधर से जा रहे थे, इस बालक ने सब को प्रणाम किया। उस समय हम लोगों के मुख से चिरायु होने का आशीर्वाद निकल गया। आप भी इसे चिरंजीवी होने का आशीर्वाद दे चुके हैं। अतः आप इस बालक के प्राणों को बचाइए।

ब्रह्माजी बोले यह बालक मार्कंडेय, आयु में मेरे समान होगा। यह कल्प की आदि और अंत में भी श्रेष्ठ मुनियों से घिरा हुआ सदा जीवित रहेगा।

इस प्रकार सप्त ऋषियों ने ब्रह्मा से वरदान दिलवाकर  उस बालक को पुन: पृथ्वी पर भेज दिया

 कहा भी गया है -
 अभिवादनशीलस्य,  नित्यं वृध्दोपसेविनः ।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते, आयुर्विद्या यशोबलम् ।।

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